मथुरा की Holi क्यों होती है खास, देखें Ashish के कैमरे की नजर से…
रंगों के त्योहार होली में अब कुछ दिन शेष रह गए हैं। पूरे भारत विशेषकर उत्तरी राज्यों में यह त्योहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।
जहां देश के दूसरे हिस्सों में रंगों से होली खेली जाती है वहीं सिर्फ मथुरा एक ऐसी जगह है जहां रंगों के अलावा फूलों से भी होली खेलने का रिवाज है।
मथुरा की होली को देखने देश ही नहीं विदेशों से भी सैलानियों की भीड़ उमड़ती है। होली में ब्रज की होली की छटा ही अलग है।
वैसे तो ज्यादातर जगहों पर होली 1 दिन खेली जाती है। वहीं मथुरा, वृंदावन, गोकुल, नंदगांव, बरसाने में कुल एक हफ्ते तक होली चलती है। हर दिन की होली अलग तरह की होती है।
लठमार होली-
मथुरा के कस्बे बरसाने में लठमार होली सबसे अलग होती है। लठमार होली डंडो और ढाल से खेली जाती है। इसमें महिलाएं पुरुषों को डंडे से मारती हैं। वहीं पुरुष महिलाओं के इस लठ के वार से बचने की कोशिश करते हैं।
वृंदावन की फूलों की होली-
फागुन की एकादशी को वृंदावन में फूलों की होली मनाई जाती है। बांके बिहारी मंदिर में फूलों की ये होली सिर्फ 15-20 मिनट तक चलती है।
शाम 4 बजे की इस होली के लिए समय का पाबंद होना बहुत जरूरी है। इसमें बांके बिहारी मंदिर के कपाट खुलते ही पुजारी भक्तों पर फूलों की वर्षा करते हैं।
मथुरा की विधवा होली-
वृंदावन में देश के कई कोनों से आई विधवाएं रहती हैं। यहां विधवा महिलाएं भी जमकर होली खेलती हैं। जीवन के रंगों से दूर इन विधवाओं को होली खेलते देखना बहुत सुंदर होता है।
Photo Credit : Ashish Ramesh (Photo Journalist)
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