कांशीराम का सपना अधूरा, क्या मायावती कर पाएंगी पूरा ?

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कभी यूपी की सत्ता का जो केंद्र रही, जो दलितों को अपना का वोट बैंक समझती थी। जो अपनी पार्टी के जनाधार के दम बड़े बड़ों को धूल चटा चुकी थी, जिसके आगे पार्टी के नेता आंख उठाने से भी सहम जाते थे, उस मायावती के आज सितारे गर्दिश में है।

साल 2007 में जब मायावती ने बंपर बहुमत के साथ यूपी की सत्ता संभाली तो बड़े बड़े राजनैतिक सूरमा सिहर गए। लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में माया को अखिलेश यादव ने ऐसी पटकनी दी वो आज तक नहीं उबर पाई और फिर 2014 का लोकसभा चुनाव हो या फिर 2017 का विधानसभा हार का सिलसिला लगातार जारी है।

मायावती ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि ऐसा राजनैतिक संकट पैदा होगा। उनको राज्यसभा जाने के भी लाले पड़ जाएंगे। मायावती को ये एहसास नहीं रहा होगा कि जिन दलितों वो अपना वोट बैंक समझती हैं। वही दलित वोटर माया का साथ छोड़ देंगे। और माया का राजनैतिक साम्राज्य ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर गिर जाएगा। माया के सामने बीएसपी के संस्थापक कांशी राम के सपने को बचाना सबसे बड़ी चुनौती है।

2017 के विधान सभा चुनाव में माया की सबसे बड़ी शिकस्त

2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद मायावती को उम्मीद थी कि 2017 में एक बार फिर बीएसपी सत्ता में वापसी करेगी और वो उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनेंगी। लेकिन मायावती का ये सपना नरेन्द्र मोदी की आंधी और अमित शाह के कुशल चुनाव प्रबंधन के आगे धराशायी हो गया। और मायावती के राजनीति के सितारे एक बार  फिर गर्दिश में चले गए।

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मायावती का सपना सिर्फ कल्पनाओं का ढेर बनकर रह गया। जिन दलित वोटरों का मायावती हर चुनावी बिसात पर दंभ भरती थी, उन्हीं दलितों ने मायावती का साथ छोड़ दिया। और बहुजन समाज पार्टी मात्र 19 सीटों पर सिमट गई।

2017 का विधानसभा चुनाव मायावती के लिए सबसे बड़ा झटका था। वो समझ नहीं पा रही हैं कि आखिर दलितों ने उनका साथ क्यों छोड़ दिया। आखिर ऐसी कौन सी बात हुई कि दलितों की देवी कही जाने वाली मायावती का साथ छोड़कर दलित बीजेपी के साथ चले गए।

मुश्किल में अपनों ने ही छोड़ा माया का साथ

बीएसपी की कमान संभालने के बाद से ही मायावती का पूरी पार्टी पर छत्र राज चलता है। मायावती की हर बात पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए हुक्म माना जाता है। लेकिन जब माया के सितारे गर्दिश में आए तो सबसे पहले माया के सिपहसलार कहे जाने वाले नेताओं ने उनका साथ छोड़ दिया। जो नेता मायावती के सामने  नजर नहीं उठाते थे, उन्होंने पार्टी छोड़ते ही मायावती को दौलत की बेटी, दलित वोटरों को बेचने वाली नेता  ना जाने क्या क्या कहने लगे।

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मायावती का साथ छोड़ने वालों में सबसे बड़ा नाम स्वामी प्रसाद मौर्य का है। यही नहीं कई नेताओं ने तो विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ही मायावती को झटका देते हुए बीएसपी से किनारा कर लिया। साथ ही विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद मायावती ने नसीमुद्दीन सिद्दिकी जैसे नेता को खुद ही बाहर का रास्ता दिखा दिया।

बीएसपी को कैसे दोबारा सत्ता में लाएंगी माया ?

जिस दलित विरासत पर बीएसपी का किला टिका है। आज उसको बचाए रखना और दोबारा सत्ता में वापसी करना मायावती के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। क्यों कि कांशी राम ने जबसे बीएसपी की नींव रखी, बहुजन समाज पार्टी अपने जनाधार के दम पर हमेशा यूपी की सत्ता के इर्द गिर्द रही।

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लेकिन पिछले 10 सालों से बीएसपी यूपी की सत्ता से बाहर है। ऐसे में बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर सत्ता की रेस में थककर बैठा हाथी फिर से दौड़ेगा। क्या मायावती कांशी राम के सपने को बचा पाएंगी। क्या यूपी की सत्ता में बीएसपी दोबारा वापसी कर पाएगी।

ये तमाम ऐसे सवाल हैं जो मायावती को खुद भी परेशान कर रहे होंगे। लेकिन इसका हल खोजना माया के लिए इतना आसान नहीं है। बहरहाल अब माया कैसे बीएसपी को पुर्नजीवित करतीं हैं। ये देखना दिलचस्प होगा।

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