ऐसा क्यों है कि भारतीय मीडिया का एक वर्ग पाक के साथ खड़ा दिखता है?

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ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के मामले में हम दिग्भ्रमित हैं। इसीलिए पाकिस्तान लगातार हमारे लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। यह बात बीते दिनों यहां सामने आयी जब विदेश मामलों के जानकार और पाकिस्तान के आज टीवी चैनल में भारत के ब्यूरो प्रमुख और वायस आफ अमेरिका के विशेषज्ञ पैनल के सदस्य पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ  ने अपने अनुभव हमसे साझा किये।
उन्होंने पाकिस्तान व भारत के संबंधों की जटिलताओं की बखूबी चर्चा की। उन्होंने साफ तौर पर चेताया कि सामाजिक आचरण को राजनीतिक आचरण मानने की वजह से ही हम पाकिस्तान के मामले में परेशान हैं। मामला है काशी पत्रकार संघ द्वारा पराड़कर स्मृति भवन में ‘भारत-पाक संबंध और मीडिया की भूमिका’ विषय  पर बातचीत का।
उन्होंने कहा कि हम दिग्भ्रमित हैं इसलिए पाकिस्तान हमारी समस्या बना हुआ है। हमारी गलती यह है कि हम सामाजिक आचरण को राजनीतिक आचरण मान लेते हैं। आज पत्रकारिता कम हो रही है और पत्रकार धर्म निरपेक्षता का सर्टिफिकेट दे रहे हैं। देश को बौद्धिक आतंकवाद से भी खतरा है। पत्रकारिता तथ्यों पर होती है। हम उन मुसलमानों का दिल जीतना चाहते है जिन्हें मुसलमान अपना नेता ही नहीं मानता।
उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के तनाव के बीच में की जानेवाली पत्रकारिता को एक नई चुनौती का सामना करना पड़ता है। दोनो देशों की पत्रकारिता में सरकार और सेना का रुख बिना किसी सवाल और जवाब के जो का त्यों अपने पाठकों को पहुचाने की बाध्यता दिखती है, ऐसे में उसकी देशभक्ति और राष्ट्रभक्ति के सामने पत्रकारिता का मूल मंत्र निष्पक्षता बनाए रखने की चुनौती और बडी हो जाती है।
पत्रकारिता में उस पत्रकार के लिए सबसे ज्यादा संकट है जो एक तरफ भारतीय है और उसके सामने पहले राष्ट्र है और फिर उसकी पत्रकारिता, जो कि वो एक ऐसे देश के लिए कर रहा है जिस देश ने उसके अपने ही देश के खिलाफ जंग छेड़ रखी हो। तब ऐसे में देश पहले और पत्रकारिता बाद में आती है। अगर देश बचेगा तभी पत्रकारिता हो सकती है। आज वर्तमान युग में सेना और सरकारे पत्रकारिता को एक रणनीति के तहत अपने ऐजेंडे के लिए भी इस्तेमाल करती हैं।
मेरा मानना है राष्ट्र के प्रति अपनी निष्ठा और वचनबद्दता को पत्रकारिता को बिना बहुत हानि पहुचाते हुए अपनी बात कहने के हुनर को ही पत्रकारिता कहा जा सकता है। इस पत्रकारिता का भारतीय मीडिया में पाकिस्तान की तुलना में बहुत अभाव दिखता है। ज्यादातर समय हमें भारतीय मीडिया का एक बड़ा वर्ग पाकिस्तान की सेना, सरकार और आतंकवादियो  के साथ खड़ा दिखाई देता है।
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