गांधारी के श्राप से उजड़ गया था पूरा यदुवंश, जानें श्रीकृष्ण की मृत्यु सच या रहस्य …

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अठारह दिन चले महाभारत के युद्ध में रक्तपात के सिवाय कुछ हासिल नहीं हुआ। इस युद्ध में कौरवों के समस्त कुल का नाश हुआ, साथ ही पाँचों पांडवों को छोड़कर पांडव कुल के अधिकाँश लोग मारे गए। लेकिन इस युद्ध के कारण, युद्ध के पश्चात एक और वंश का खात्मा हो गया वो था ‘श्री कृष्ण जी का यदुवंश’। महाभारत, कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध का वो रूप है जिसने कुरुक्षेत्र की मिट्टी तक लाल कर दी थी। कहा जाता है इस भयंकर युद्ध में इतने लोगों ने अपनी जान गंवाई थीं कि आज भी उनके लहू से कुरुक्षेत्र (जहां महाभारत का युद्ध लड़ा गया था) की मिट्टी का रंग लाल ही है।

महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की कहानी को 18 खण्डों में संकलित किया था। कुरुक्षेत्र का युद्ध इस ग्रंथ का सबसे बड़ा भाग है लेकिन युद्ध के पश्चात भी बहुत कुछ ऐसा रह गया जिसके विषय में जानना बहुत जरूरी है। जिनमें भगवान् श्रीकृष्ण की मृत्यु और द्वारका के नदी में समा जाने की घटना अत्यंत महत्वपूर्ण है। मौसल पर्व, 18 पर्वों में से एक है जो 8 अध्यायों का संकलन है। इस पर्व में भगवान् कृष्ण के मानव रूप को छोड़ना और उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी नगरी द्वारका के साथ घटी घटना का वर्णन है। आइए जानते हैं क्या छिपा है मौसल पर्व की कहानी के भीतर।

गांधारी ने क्यों दिया था श्रीकृष्ण को मृत्यु का श्राप

अठारह दिन चले महाभारत के युद्ध में रक्तपात के सिवाय कुछ हासिल नहीं हुआ। इस युद्ध में कौरवों के समस्त कुल का नाश हुआ, साथ ही पाँचों पांडवों को छोड़कर पांडव कुल के अधिकाँश लोग मारे गए। लेकिन इस युद्ध के कारण, युद्ध के पश्चात एक और वंश का विध्वंस हुआ था वो था ‘श्री कृष्ण जी का यदुवंश’। महाभारत, कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध का वो रूप है जिसने कुरुक्षेत्र की मिट्टी तक लाल कर दी थी। कहा जाता है इस भयंकर युद्ध में इतने लोगों ने अपनी जान गंवाई थीं कि आज भी उनके लहू से कुरुक्षेत्र (जहां महाभारत का युद्ध लड़ा गया था) की मिट्टी का रंग लाल ही है।

बात उस समय की है, जब कुरुक्षेत्र का युद्ध शांत हो चुका था. युद्ध के बाद श्रीकृष्ण पांडवों के साथ गांधारी और धृतराष्ट्र के पास उनके बेटे दुर्योधन की मौत पर शोक जाहिर करने और उन दोनों से क्षमा मांगने पहुंचे थे.उस समय दुर्योधन की मां गांधारी ने श्रीकृष्ण से कहा, ‘आप द्वारकाधीश हैं, जिनकी पूजा मैंने खुद विष्णु अवतार मानकर की. क्या आप अपने किए पर जरा भी शर्मिंदा हैं? आप चाहते तो दिव्य शक्तियों से युद्ध टाल सकते थे. बेटे की मौत पर आंसू बहाने वाली एक मां का दुख तुम खुद अपनी मां देवकी से जाकर पूछो, जिसने अपने सात बच्चों को अपनी आंखों के आगे मरते देखा है.’

इसके बाद दुर्योधन की माता गांधारी ने भगवान कृष्ण को श्राप दिया. उन्होंने कहा, ‘अगर भगवान विष्णु के प्रति मेरी आस्था सच्ची रही है तो 36 साल बाद तुम जीवित नहीं रहोगे. द्वारका तो तबाह होगा ही, यादव वंश का हर इंसान एक दूसरे के खून का प्यासा हो जाएगा.’ इतना कहकर गांधारी भगवान कृष्ण के पैरों में गिरकर रोने लगी.

श्रीकृष्ण ने गांधारी को उठाते हुए कहा कि, आपके श्राप का असर एक दिन जरूर होगा. भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि यह सिर्फ मेरे प्रति सच्ची श्रद्धा की वजह से नहीं बल्कि बदलते समय की वजह से भी होगा. कुछ साल बीतने के बाद भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सांब एक बार शरारत करने के मन से मित्रों के साथ गर्भवती स्त्री का वेष धारण कर ऋषि-मुनियों से मिलने पहुंच गए. इससे ऋषि नाराज हो गए और स्त्री रूपी सांब को श्राप दिया कि तुम एक ऐसे लोहे के तीर को जन्म दोगे जो तुम्हारे कुल-साम्राज्य का सर्वनाश करेगा. सांब यह सुनकर डर गए और जाकर उग्रसेन को पूरी घटना के बारे में बताया.

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श्राप खत्म होने का तरीका

उग्रसेन ने सांब को श्राप से बचाने के लिए कहा कि वो एक तीर का चूर्ण बनाकर प्रभास नदी में प्रवाहित कर दे. इससे श्राप खत्म हो जाएगा. हालांकि, जिस इलाके में इस चूर्ण को जमा किया गया, वहां एक खास तरह की घास उग गई. दूसरे ओर, उग्रसेन ने आदेश पारित कर दिया कि कभी भी यादव राज्य में किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का उत्पादन और वितरण नहीं किया जाएगा.

कुछ समय बाद द्वारका में सुदर्शन चक्र, श्रीकृष्ण का शंख, उनका रथ और बलराम के हल का अदृश्य हो जाने जैसी अशुभ घटनाएं हुईं. द्वारका में अपराध और पाप बढ़ गया. नगर के लोग नशे में होकर एक दूसरे के खून के प्यासे होने लगे. नशे में चूर नगरवासी एक दूसरे से लड़ने लगे और गांधारी के श्राप के अनुसार ही यादव वंश के सभी लोग एक दूसरे के दुश्मन बन गए.

इसी बीच एक दिन श्रीकृष्ण पेड़ के नीचे योग समाधि ले रहे थे. इसी दौरान वहां जरा नाम का एक शिकारी पहुंचा. वह एक हिरण की तलाश कर रहा था. उसने कृष्ण के हिलते हुए पैरों को हिरण समझ लिया और तीर चला दिया. जैसे ही उसे इस बात का अंदाजा हुआ, वह श्रीकृष्ण के पास पहुंचकर क्षमा मांगने लगा. तब श्रीकृष्ण ने उसे सांत्वना दी और बताया कि कैसे उनकी मृत्यु निश्चित थी.

भगवान कृष्ण ने कहा, ‘त्रेता युग में लोग मुझे राम के नाम से जानते थे. सुग्रीव के बड़े भाई बाली का राम ने छिपकर वध किया था. अपने पिछले जन्म की सजा उन्हें इस जन्म में मिली है. दरअसल जरा ही पिछले जन्म में बाली था.’ यह कहकर श्रीकृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया. श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद से ही कलियुग की शुरुआत हो गई.

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