मोदी के भाषण, विपक्ष की आलोचना और चुनाव आयोग की खामोशी

सत्ता पक्ष की विचारधारा से जुड़े लोग पीएम मोदी के भाषण को ठहरा रहे जायज

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देश में सात चरणों में हो रहे लोकसभा चुनाव अब ऐसे मोड़ में आ गया है जहां अब चुनावी सभाओं में इस्तेमाल हो रही ’मुस्लिम विरोधी’,भाषा से अब देश ही नहीं विदेशों में भी फिक्र बढ़ी है. यह भाषण ऐसे वक्त में आ रहे हैं जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार शपथ लेने की बात कह रहे हैं. देश के पूर्व चुनाव आयुक्त ने बिना नाम बताने की शर्त में कहा कि मैंने कभी चुनावी भाषणों के इस स्तर को नहीं देखा. भाषण इतने ज़हरीले कभी न थे. ये अकल्पनीय है.

भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं

बता दें कि देश में दंगा और फसाद हमेशा से रहा है. 1993 में मुंबई दंगे के बाद शांति लाने के उद्देश्य से मुंबई के सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज़्म के एक अधिकारी के मुताबिक, चुनावी भाषणों से ध्रुवीकरण बढ़ेगा और यह देश के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं.

आपको बता दें कि देश में 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव अच्छे दिन, भ्रष्टाचार और राष्ट्रीयता को लेकर लड़ा गया था, लेकिन इस बार का यह चुनाव “मुस्लिम विरोध“ पर लड़ा जा रहा है.

बता दें कि भाजपा के 400 सीटों के लक्ष्य को जीतने को लेकर विल्सन सेंटर के साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर ने कहा कि भाजपा देश में 400 सीटें जीतने के लिए वह क़र रही है जो उसे करना चाहिए. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजस्थान के बांसवाड़ा में दिए गए भाषण के बाद “इंडियन एक्सप्रेस ने एक संपादकीय लिखी था, जिसकी हेड लाइन थी- “नहीं प्रधानमंत्री“.

बता दें कि इस जनसभा में प्रधानमंत्री ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के एक पुराने भाषण का हवाला देते हुए मुसलमानों पर टिप्पणी की, जिसमें उन्हें ’घुसपैठिए’ और ’ज़्यादा बच्चे पैदा करने वाला’ कहा गया था.

अलग -अलग विचारधारा के लोगों के बयान

बता दें कि देश में चुनावी माहौल में भाषणों की आलोचनों पर हमारी टीम ने कई लोगों से बातचीत की, इसमें दक्षिणपंथी सुव्रोकमल दत्ता का कहना है कि क्या इस देश में सर तन से जुड़ा नहीं हुआ है?. क्या इस देश में गजवा- ए -हिन्द की विचारधारा नहीं आई? इस देश में क्या वोट जिहाद नहीं आ रहा है?.यह सारी बातें हमारे देश की सच्ची है. अगर देश में आज प्रधानमंत्री यह कह रहे हैं तो कौन सा गुनाह क़र रहे हैं.

वहीं, दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा प्रमुख जमाल सिद्दीकी ने प्रधानमंत्री मोदी के भाषण पर हो रही आलोचनाओं को खारिज करते हुए कहा, “मोदी जी ने हमेशा मुसलमानों के भले के लिए सोचा है.“ वह कभी भी देश के मुसलमानों को अपना विरोधी नहीं मानते है. उनका कहना है कि “घुसपैठिए का मतलब मुसलमान नहीं होता. क्यों हम उसको मुसलमान पर लाद रहे हैं. पाकिस्तान से आए हुए लोग देश को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. बांग्लादेश से आए हुए लोग, यहां के लोगों के रोज़गार पर डाका डाल रहे हैं. ज़्यादा बच्चा पैदा करने वाले हिंदू भी होते हैं, मुसलमान भी होते हैं.

भाषणों में तीखेपन की वजह

बता दें कि अमेरिका के जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में भारतीय राजनीति के एक प्रोफ़ेसर ने कहा कि भारत में जिस तरीके से पीएम मोदी ने अपने 10 सालों के कार्यकाल में वोटरों को इशारों में रिझाने का काम किया और टेढ़ी, तीखी बातों को कहने का काम दूसरे नेताओं पर छोड़ दिया था. लेकिन इस बार उनका इस तरह बात करना एक बड़ा बदलाव है. याद रहे कि पूर्व में कब्रिस्तान और श्मशान घाट का जिक्र करने वाला भाषण विवादों में घिरा था.

प्रोफ़ेसर का कहना है कि ये एक इशारा है कि बीजेपी को लगता है कि अर्थव्यवस्था से जुड़ी बातें मतदाता को अपील नहीं कर रही हैं क्योंकि गांवों और शहरों में बेरोज़गारी, नौकरियां पैदा करने की चुनौती महत्वपूर्ण विषय हैं.

वह कहते हैं कि बीजेपी में ये भी आभास है कि चुनाव के पहले अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी ’हिट-विकेट’ या अपना ही नुकसान करने जैसा था. उस कदम ने हाथ-पैर मार रहे विपक्ष को एकजुट कर दिया जिससे वो ’लोकतंत्र ख़तरे में है’ के नारे को ज़ोर से उठाने लगे.

चुनावी भाषणों की भाषा ’दुर्भाग्यपूर्ण’

बीजेपी की नीतियों के समर्थक डॉ. सुव्रोकमल दत्ता ने बताया कि, “प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा नेताओं के भाषण बांटने वाली राजनीति नहीं है और ये देश की संप्रभुता, सुरक्षा, अखंडता, रणनीति से जुड़ी बातें हैं.
उनका कहना है कि, “प्रधानमंत्री मोदी लगातार ये कह रहे हैं कि कांग्रेस ने ये सारी चीज़ें कीं, इस तरह का ख़तरा मंडरा रहा है, और उसे देखकर देश को, समाज को चौकस रहना चाहिए. प्रधानमंत्री को ये शब्द मजबूरी में कहने पड़ रहे हैं. क्या ये ऐतिहासिक सच्चाई नहीं है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि इस देश के राष्ट्रीय रिसोर्सेज़ पर प्रथम अधिकार अल्पसंख्यकों का, खासकर मुसलमानों का है.“
आलोचकों के मुताबिक, भाजपा नेता और समर्थक जिस संदर्भ में मनमोहन सिंह के भाषण को पेश करते हैं, वो गलत है.

भाजपा नेताओं ने किया इंकार

बता दें कि चुनावी भाषणों को लेकर हमेशा भाजपा नेता आरोपों को इंकार करते रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय मामलों के दक्षिणपंथी जानकार सुव्रोकमल दत्ता के मुताबिक़, अंतरराष्ट्रीय देश या पश्चिमी देश भारत को लेकर क्या बोलते हैं, भारत को इसकी चिंता नहीं है.

बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रमुख जमाल सिद्दीकी के मुताबिक़, “जब प्रधानमंत्री के सामने प्रश्न आते हैं, कांग्रेस जब अपना मैनिफ़ेस्टो देती है, जब कांग्रेस के शहज़ादे राहुल भैया अपनी बात रखते हैं, जब वो मोदी जी पर हमला करते हैं, तो मोदी जी को अपनी बात रखनी पड़ती है.

हाल ही में टाइम्स नाऊ टीवी चैनल से बातचीत में मुसलमानों पर पूछे सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “आत्ममंथन करिए सोचिए, देश इतना आगे बढ़ रहा है. अगर कमी आपके समाज में महसूस होती है, तो क्या कारण है? सरकार की व्यवस्थाओं का फ़ायदा कांग्रेस के ज़माने पर आपको क्यों नहीं मिला?“

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चुनाव आयोग खामोश क्यों

बता दें कि देश में लोकसभा चुनाव के लिए 16 मार्च को आचार संहिता लगी थी. वहीं एक महीना पूरा होने पर 16 अप्रैल को चुनाव आयोग ने एक बयान जारी किया था. चुनाव आयोग के मुताबिक, क़रीब 200 शिकायतें आयोग के पास आई हैं. इनमें से 169 पर एक्शन लिया गया है. 51 शिकायतें बीजेपी की तरफ़ से करवाई गईं, जिनमें 38 मामलों में कार्रवाई की गई. कांग्रेस की तरफ से 59 शिकायतें आईं, जिनमें 51 मामलों में कार्रवाई की गई.

लेकिन “ज़हरीले“ चुनावी भाषणों के इस दौर में चुनाव आयोग पर लगातार आरोप लग रहे हैं कि वो जितनी सख्ती विपक्षी नेताओं पर दिखा रहा है, सत्तारूढ़ बीजेपी नेताओं पर वो सख्ती नहीं दिख रही है, ऐसे वक्त जब भाजपा नेता भाषणों में हिंदू प्रतीक चिह्नों की बात कर रहे हैं.

चुनाव आयोग की ओर से लागू आदर्श आचार संहिता के मुताबिक़, चुनाव प्रचार के दौरान न तो धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है और न ही धर्म, संप्रदाय और जाति के आधार पर वोट देने की अपील की जा सकती है. आचार संहिता के मुताबिक़, किसी भी धार्मिक या जातीय समुदाय के ख़लिफ़ नफरत फैलाने वाले भाषण देने या नारे लगाने पर भी रोक है. इन नियमों का हवाला देते हुए विपक्ष पीएम मोदी पर कार्रवाई की मांग कर रहा है.

सवालों की तीव्रता और बढ़ी जब प्रधानमंत्री मोदी के बांसवाड़ा भाषण के लिए पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा को नोटिस भेजा गया, न कि प्रधानमंत्री मोदी को. इसी तर्ज पर राहुल गांधी के एक भाषण पर पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खाड़गे को नोटिस भेजा गया, न कि राहुल गांधी को. ऐसा पहली बार हुआ.

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