Pran Pratistha: जानें किस विधि से मूर्ति बन जाती है भगवान….

क्या होती है प्राण प्रतिष्ठा ?

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Pran Pratistha: 500 सालों के लंबे संघर्ष के पश्चात आज वह घड़ी आ ही गई जब एक बार फिर भगवान राम अपनी अयोध्या में विराजमान हो पाए हैं. आज यानी 22 जनवरी को भगवान राम की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम भव्य तरीके से संपन्न हो चुका है. शुभ मुर्हूत में विधि विधान के साथ मंदिर के गर्भगृह में आज रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई.

इसके साथ ही राम लला की मनमोहक तस्वीर की पहली झलक सभी के सामने आ चुकी है. आपको बता दें कि प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान 16 जनवरी से प्रारंभ हो गए थे. लेकिन अब मन में उठने वाला सवाल यह है कि भगवान की प्रतिमाएं तो सभी एक जैसी होती है, लेकिन मंदिर में स्थापित प्रतिमा में ऐसा क्या होता है जो वह पूज्यनीय बन जाती है या कौन सी है वो पूजा जिससे आम सी प्रतिमा भगवान बन जाती है. आइए जानते हैं इस बारे में….

मूर्ति की क्यों की जाती है प्राण प्रतिष्ठा ?

सनातन धर्म के अनुसार किसी भी मंदिर में भगवान की मूर्ति स्थापित करने से पहले उसकी विधि – विधान से प्राण प्रतिष्ठा करना बेहद आवश्यक बताया गया है. बता दें कि प्राण प्रतिष्ठा का मतलब होता है मूर्ति में प्राणों की स्थापना करना या जीवन शक्ति को स्थापित कर किसी भी मूर्ति को देवता के रूप में बदलना. इस प्रक्रिया में मंत्रों का उच्चारण और विधि – विधान से पूजा करके मूर्ति में प्राण स्थापित किए जाते हैं. इसके साथ ही मूर्ति की स्थापना करते समय कई पूजन विधि को संपन्न किया जाता है.

प्राण – प्रतिष्ठा की इन सभी विधियों को अधिवास कहा जाता है. हिन्दू धर्म के पुराणों और ग्रंथों में प्राण प्रतिष्ठा का उल्लेख किया गया है. वहीं हिन्दू धर्म के अनुसार किसी प्रतिमा की बिना प्राण प्रतिष्ठा के पूजा नहीं की जा सकती है. इसका कारण यह है कि प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व प्रतिमा निर्जीव होती है . इसीलिए मंदिर में मूर्ति स्थापित करने से पूर्व उसकी प्राण प्रतिष्ठा आवश्यक होती है.

क्या होती है प्राण – प्रतिष्ठा की पूरी विधि ?

मंदिर में प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान कई सारी पूजन विधि से को संपन्न किया जाता है. इन सभी विधियों को अधिवास की प्रक्रिया कहते हैं. इन प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद आम सी प्रतिमा जीवंत हो जाती है. इस प्रक्रिया के दौरान प्रतिमा का कई सारी चीजों से अभिषेक किया जाता है. इसमें पहले जल, अनाज, फूल और फिर औषधि, केसर और अंत में शुद्ध घी से प्रतिमा का अभिषेक किया जाता है.

इस प्रक्रिया के मूर्ति को विभिन्न सामग्रियों से स्नान और अभिषेक कराया जाता है. स्नान करने के बाद भगवान को कई मंत्रों का उच्चारण कर जाग्रत किया जाता है. इसके बाद प्राण प्रतिष्ठा पूजन शुरू होता है. मूर्ति की पूजा करते समय उसका मुख पूर्व की ओर रखा जाता है. फिर सभी देवी-देवताओं का आह्वान करके उन्हें इस शुभ कार्य में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है. इस दौरान मंत्रोच्चारण जारी रहता है.

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इसके पश्चात पूजन की सभी क्रियाएं संपन्न हो जाती है. इस दौरान भगवान को श्रृंगार किया जाता है और उन्हें नए कपड़े पहनाए जाते हैं. प्राण प्रतिष्ठा पूरी होने पर मूर्ति को आइना दिखाया जाता है. इस प्रक्रिया को लेकर यह मान्यता है कि भगवान की शक्ति इतनी तेज है कि वह सिर्फ अपने आप को ही सहन कर सकती है. अंत में आरती-अर्चना कर लोगों को प्रसाद वितरित किया जाता है.

 

 

 

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