खोजी पत्रकारिता में साहस व उत्साह की जरूरत

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खोजी पत्रकारिता के दौरान सत्यता की खोज के लिए एक पत्रकार में उत्साह व साहस की बहुत जरूरत होती है। जो पत्रकार साहसी नहीं होता, वो प्रतिकूल जनमत या शक्ति संपन्न लोगों के अनावश्यक सुझावों के आगे झुककर अपने अध्ययन के तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर सत्य की हत्या करने लगता है। और उसकी पद्धति कभी भी वैज्ञानिक पद्धति नहीं कहला सकती।

करना पड़ता है त्याग

प्रत्येक खोजी पत्रकार को यह समझना चाहिए कि संसार के बहुत कम लोग ही सत्य से प्रेम करते हैं व उसे स्वीकार करने का साहस रखते हैं। अत: सच्चाई की खोज करने व उसे व्यक्त करने वाले पत्रकार को सभी प्रकार के छोटे-बड़े त्यागों को सहने के लिए तैयार रहना चाहिए।

निर्भीकता की जरूरत

‘सूर्य पृथ्वी के चारों ओर चक्कर नहीं लगाता, बल्कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है’। इस सत्य की खोज करने वाले वैज्ञानिक को धार्मिक ढोंगियों ने फांसी की सजा दिलवाई थी, क्योंकि वह अपनी सत्य खोज पर अडिग था। एक पत्रकार से भी यही आशा की जाती है कि वह अपने द्वारा व्यवस्थित ढंग से प्राप्त किए तथ्यों को सच्चाई और निर्भीकता के साथ प्रस्तुत करेगा। चाहें उससे उसका या किसी अन्य का कितना भी मान व अपमान होता हो।

तथ्यों की सच्चाई

कई मीडिया व हमारे देश की उच्च स्तरीय अनुसंधान संस्थाओं में प्राय: यह देखने व सुनने में आता है कि अनुसंधानकर्ता अपने नेताओं, वरिष्ठ पत्रकारों या प्रमुख शोध अधिकारियों की हां में हां मिलाने के लिए या उनको प्रसन्न करने लिए अपने अध्ययन के तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर, जान-बूझकर गलत फलस्वरूप उत्पन्न होती है। यह सर्वदा अनुचित है।

परिश्रम व लगन

पत्रकारों को कठिन परिश्रम से जी नहीं चुराना चाहिए, क्योंकि लक्ष्य की कठोरता उसको निरंतर प्रेरणा प्रदान करती रहती है। आलस्य, शिथिलता अथवा निराशा पत्रकार को अध्ययन में बाधक होती है। सत्य की खोज करना एक कठिन कार्य है, क्योंकि सत्य सागर की गहराई में दबे हुए मोतियों की तरह होता है। कठोर परीश्रम करने वाले पत्रकार ही ऐसे मोतियों के रूपी बहुमूल्य सत्य की खोज करते हैं।

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