फिलिस्तीन के लिए आखिर ईरान क्यों ले रहा है इजराइल से पंगा, जानें..

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दुनिया इजराइल और ईरान के बीच होने वाली संभावित युद्ध को लेकर डरी हुई है. बता दें कि ईरान ने हाल ही में इजराइल पर हमला किया था. हमले में कोई भी नागरिक की जान नहीं गई थी लेकिन इजराइल जल्द ईरान के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकता है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इजराइल का सबसे बड़ा दुश्मन ईरान कभी ईरान के मुल्क मित्र में शामिल था. हालांकि इस्लामिक रिवोल्यूशन के बाद से दोनों देशों के संबंध खराब ही रहे हैं. ईरान शिया बाहुल्य वाला देश है वहीं फिलिस्तीन में अधिकतम आबादी अरबी सुन्नी हैं. इसके बावजूद ईरान हमास का सुन्नी मुसलमान बाहुल्य वाले देशों से अधिक समर्थन क्यों करता है ? इसके पीछे ईरान की मुस्लिम देशों के मुखिया बनने की मंशा हो सकती है लेकिन इसके अलावा भी कई और कारण हैं जिसके लिये ईरान इजराइल के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए है.

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सऊदी अरब के साथ प्रतिस्पर्धा

ईरान और सऊदी अरब की लड़ाई दो देशों की लड़ाई के बजाए शिया सुन्नी के बीच की लड़ाई कहना अधिक उचित होगा. ईरान ने अपने देश में इस्लामिक रिवोल्यूशन के बाद से ही इस्लामिक देशों के बीच सऊदी अरब के स्थान को टक्कर देने का काम किया है. वहीं दोनों देश मिडिल ईस्ट में अपना-अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहते हैं. सऊदी अरब ईरान-इराक युद्ध में इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन का समर्थन करता है वहीं ईरान-कुवैत युद्ध में कुवैत का समर्थन करता है. वहीं जिस देश में सऊदी अरब के विचारधारा वाली सरकार सत्ता में है उसके खिलाफ ईरान विद्रोहियों को खड़ा करने का काम करता आया है. यमन में हूती विद्रोही इसका एक उदाहरण है. जहां सऊदी अरब अरबों रुपये खर्च कर यमन की सरकार की मदद कर रहा है वहीं ईरान हूती विद्रोहियों को हथियार की आपूर्ति कराने में मदद करता है. ईरान इसके अलावा लेबनान में हिजबुल्लाह का भी समर्थन करता है. अरब स्प्रिंग के दौरान सीरिया में सऊदी अरब ने सुन्नी विद्रोहियों का समर्थन किया था लेकिन ईरान ने सीरिया के शिया राष्ट्रपति बशर अल असद का साथ दिया था. बता दें कि फिलिस्तीन मुद्दा अरब के देशों के सबसे बड़े मुद्दों में से एक है. अगर ईरान इस मुद्दे को सऊदी अरब से हाइजैक करने में सफल हो जाता है तो अरब के लोगों के बीच ईरान वह देश बनकर आएगा जिसने इस मुद्दे को दुनिया के बीच उठाया है.

सिर्फ शिया मुस्लिमों का प्रतिनिधि करने वाला देश बनकर नहीं रहना चाहता

इजराइल-हमास के युद्ध में ईरान हमास की सबसे अधिक सहायता करने वाला इस्लामिक देश बनकर उभरा. जहां एक ओर अरब देशों द्वारा गाजा में इजराइल की कार्रवाई को लेकर केवल बयान सामने आ रहे हैं, वहीं ईरान हमास को लगातार अपना समर्थन दे रहा है. इसके चलते फिलिस्तीनियों की लड़ाई में ईरान एकमात्र बड़ा देश बनकर उभरा है जो सीधे इजराइल के खिलाफ है. हालांकि अरब के देश ईरान पर आरोप लगाते हैं कि वह केवल युद्ध भड़काने का काम करता है और उसे फिलिस्तीनियों की कोई फिक्र नहीं है. फ़िलिस्तीनियों के लिए ईरान के समर्थन को एक और बात दिलचस्प बना देती है कि फिलीस्तीन में 85 से अधिक आबादी सुन्नी है जबकि फ़िलिस्तीनी न तो शिया हैं और न ही फ़ारसी भाषा बोलते हैं. इन सबके बावजूद ईरान फिलीस्तीन की लड़ाई में उनका भरपूर साथ देता है.

रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक ईरान सिर्फ शिया मुस्लिम देशों का प्रतिनिधित्व नहीं करना चाहता है. वह चाहता है कि मुस्लिम देशों की आबादी में यह संदेश जाए कि ईरान मुस्लिमों की लड़ाई लड़ने वाला देश है. ईरान का हिजबुल्लाह, हूती विद्रोहियों का समर्थन देना अलग बात है क्योंकि यह शिया आधारित संघठन हैं . वहीं फिलीस्तीन और हमास का समर्थन कर वह अपनी यह छवि मिटाना चाहता है और इस्लामिक देशों का प्रतिनिधित्व करना चाहता है.

मुस्लिम आबादी के बीच इजराइल के प्रति नफरत

हाल के वर्षों में इजराइल और कई मुस्लिम देशों के बीच रिश्ते सामान्य करने की पहल की गई है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान कई मुस्लिम देशों ने इजराइल के साथ अपने रिश्ते को स्थापित किया था. वहीं यूनाइटेड अरब एमीरेट्स ने भी इजराइल के साथ अपने राजनायिक संबंध की शुरुआत की थी. वर्ष 2023 में कई मीडिया खबरों में यह अटकलें लगाई जा रही थी कि अमेरिका की पहल पर सऊदी अरब भी इजराइल के साथ अपने रिश्तों को सामान्य कर सकता है लेकिन 6 अक्टुबर 2023 को हमास ने इजराइल में घुसकर आतंकवादी हमला कर दिया. इसके जवाब में इजराइल ने भी गाजा में बमबारी की. इसके अतिरिक्त इजराइली सैनिकों ने गाजा में घुसकर हमास के खिलाफ कार्रवाई की. इस ऑपरेशन में कई आम लोगों की भी जान गई. इस हमले के बाद से ही मुस्लिमों के बीच इजराइल के प्रति नफरत और गहरी हो गई है. वहीं अगर इजराइल के विरोध में कोई देश अगर खुलकर सामने आया है तो वह ईरान ही है. ईरान ऐसा करके मुस्लिम देशों की आबादी में इजराइल के खिलाफ युद्ध में सबसे बड़ा खिलाड़ी बनकर उभरा है. बेशक अरब के देश खासकर यूएई और सऊदी अरब के द्वारा गाजा में लोगों की जरूरत की चीजों को सबसे बड़ी मात्रा में भेजा जा रहा है लेकिन इजराइल के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने में वे असफल साबित हुए हैं. दूसरी ओर इन देशों ने भले ही इजराइल के साथ अपने रिश्ते बेहतर कर लिये हैं लेकिन राजशाही वाले इन देशों के आम नागरिकों में इजराइल के प्रति गुस्सा आज भी उतना ही है. सोशल मीडिया में ईरान द्वारा इजराइल पर किये गये हमले के बाद से ही बड़ी मुस्लिम आबादी इस हमले पर खुशी जाहिर करती दिखी. वर्तमान समय में ईरान उनकी नजर में फिलिस्तीनियों की इस लड़ाई में सबसे बड़ी भूमिका निभाता नजर आ रहा है

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अहंकारियों के बीच उत्पीड़ित

अलग-अलग देशों में ईरान द्वारा विद्रोहियों को फंडिग किया जाता है. गाजा में हमास हो, लेबनान में हिजबुल्लाह हो या फिर यमन में हूती विद्रोही हो, सभी को ईरान का समर्थन हासिल है. इसके पीछे ईरान दलील देता है कि वह किसी भी देश की कमजोर आबादी की मदद के लिये ऐसा करता है. हालांकि चीन द्वारा उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार के मामलों पर वह चुप्पी साध लेता है. चीन में उसके राजदूत बयान देते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है बल्कि वह अपना जीवन खुशहाल तरीके से व्यतीत कर रहे हैं. ईरान जानता है कि चीन की अमेरिका से नहीं बनती जो इजराइल का सबसे बड़ा समर्थक देश है. इसी कारण से ईरान रूस को अपना नजदीकी देश बताता है.

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