75 से ऊपरवालों को मिले इच्छ मृत्यु का अधिकार, दंपत्ति ने उठाई मांग

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ‘पैसिव यूथेनेशिया’ और ‘लिविंग विल’ को कानूनी मान्यता दे दी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को ऐतिहासिक बताया जा रहा है, लेकिन सरकार से इच्छा मृत्यु की मांग करनेवाला एक बुजुर्ग जोड़ा इससे खुश नहीं है। इच्छा मृत्यु की मांग करने वाले मुंबई(Mumbai) के नारायण लावटे (87) और उनकी पत्नी इरावती (78) ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।

75 साल की उम्र पार कर चुके बुजुर्गों को भी मिले यूथेनेशिया और लिविंग विल का अधिकार

लवाटे ने कहा, ‘हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। 75 साल की उम्र पूरी कर चुके बुजुर्गों को भी इसका (यूथेनेशिया और लिविंग विल) का अधिकार मिलना चाहिए। डॉक्टर या पुलिस से ऐसे लोगों की जानकारी की पुष्टि कराई जा सकती है। सरकार को इस संबंध में एक नीति के साथ आगे आना चाहिए।’

दंपत्ति दक्षिणी मुंबई(Mumbai) के चारणी रोड स्थित ठाकुरद्वार में रहते हैं। दरअसल इस बुजुर्ग दंपत्ति की कोई संतान नहीं है और न ही इन्हें कोई गंभीर बीमारी है। अब उन्हें लगता है कि समाज के लिए उनकी कोई उपयोगिता नहीं रह गई है, वहीं वे अपनी देखभाल खुद करने में भी सक्षण नहीं हैं। नर्स अरुणा शानबाग की इच्छामृत्यु के लिए जब केईएम अस्पताल ने दया याचिका दायर की थी तब उसे पढ़कर इस दंपत्ति को भी इसका विचार आया था।

21 दिसंबर को उन्होंने अपने बुढ़ापे का कोई सहारा न होने का हवाला देते हुए अपना जीवन खत्म करने की आज्ञा के लिए एक पत्र लिखा था। उन्होंने राष्ट्रपति को भेजे पत्र में लिखा था कि वे 31 मार्च 2018 तक उनके जवाब का इंतजार करेंगे, लेकिन दो महीने बीतने के बाद उन्हें इस बात का यकीन है कि उनकी याचिका को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा, इसलिए अब उन्होंने आत्महत्या की योजना बनाई है।

पत्नी ने लिखा था पति को मार्मिक पत्र

इसके लिए रिटायर्ड स्कूल प्रिसिंपल इरावती ने महाराष्ट्र राज्य परिवहन निगम के पूर्व सुपरवाइजर नारायण को एक पत्र लिखा था। उसमें उन्होंने लिखा था कि 31 मार्च के बाद वह कभी भी उन्हें गला घोंटकर मार सकते हैं। इसके बदले में नारायण को भी मौत की सजा हो जाएगी।

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इरावती ने अपने पति के नाम पत्र में लिखा था, ‘आपने हम दोनों के लिए इच्छामृत्यु की मांग की है लेकिन मुझे लग रहा है कि राष्ट्रपति हमारी याचिका नहीं सुनेंगे। इस वजह से मुझे केवल एक हल दिखता है कि 31 मार्च के बाद आप कभी भी मेरा गला घोंटकर मुझे मार सकते हैं और इस संसार से मुक्त कर सकते हैं। और यह एक योजनापूर्ण हत्या होगी इसलिए कोर्ट से आपको भी इस अपराध के लिए फांसी मिल जाएगी। उनके पास कोई ऑप्शन नहीं है कि आपकी मरने की इच्छा भी पूरी हो जाएगी।’

‘अपनी स्थिति के बदतर होने का इंतजार क्यों करें’

खबरों के मुताबिक, यह जोड़ा जिंदगी से ऊब चुका है। नारायण ने मिरर को बताया कि मामला सिर्फ बोरियत होने से अलग है। यह समझदारी है। उन्होंने कहा, ‘हमें पता है कि हमारा स्वास्थ्य फिलहाल ठीक है, कोई बड़ी स्वास्थ्य समस्या नहीं है, लेकिन हमें अमर रहने का वरदान तो प्राप्त नहीं है तो हम अपनी स्थिति के बद से बदतर होने का इंतजार क्यों करें? और तब क्या होगा जब दोनों में से किसी एक की मृत्यु हो जाएगी।’

इस दंपत्ति ने बताया कि उन्होंने संतान पैदा नहीं कि क्योंकि वह देश की आबादी बढ़ाने को सामाजिक अपराध मानते हैं। नारायण कहते हैं, ‘अब हमारे पास अपने अपने अंग दान देने के अलावा समाज को देने के लिए कुछ नहीं है।’ दंपत्ति ने अपने अंगदान के लिए मुंबई(Mumbai) के जेजे अस्पताल में भी रजिस्टर कराया है।

जनसत्ता

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