सिर्फ 11 रुपये दक्षिणा लेकर इस गुरु ने तराशे सैकड़ों IAS-IPS ऑफिसर
भारत में गुरु का स्थान हमेशा से शीर्ष में रहा है। अच्छे गुरु की छत्र-छाया में साधारण से विद्यार्थी का असाधारण लगता सपना भी साकार हो जाता है। हमारे देश में आचार्य चाणक्य एक ऐसे गुरु थे, जिनके द्वारा शिक्षित बिहार के एक साधारण से व्यक्ति चन्द्रगुप्त मौर्य एक बड़े सम्राट बन पाए। उसी स्थान के एक और व्यक्ति ने बहुत से विद्यार्थियों को अपनी शिक्षा रूपी छेनी से तराश कर बड़े-बड़े पदों तक पहुंचाया। उनके इस गुरुकुल में गुरुदक्षिणा में केवल 11, 21, और 51 रुपये मात्र की परंपरा है।
49 वर्षीय रहमान ने अपना सारा जीवन शिक्षा के नाम कर दिया। इन्होंने पटना में अदम्य-अदिति गुरुकुल की स्थापना की और देश को बहुत सारे प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस ऑफिसर दिए। लाखों रुपये लेने वाले दूसरे कोचिंग इंस्टिट्यूट्स से बिल्कुल अलग, रहमान बहुत ही कम फीस लेते हैं। पिछले कुछ वर्षों में इस गुरुकुल से शिक्षित होकर बहुत से विद्यार्थी शीर्ष प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हुए हैं और बहुत कम गुरुदक्षिणा से ये विद्यार्थी डॉक्टर, इंजीनियर्स और प्रसाशनिक ऑफिसर बने हैं।
आर्ट्स में ट्रिपल मास्टर हैं रहमान
आर्ट्स में ट्रिपल मास्टर डिग्रीज के साथ रहमान ने 1994 में अदम्य अदिति गुरुकुल की स्थापना की। और पहले ही साल उनके विद्यार्थियों ने अपना परचम लहराया। उस साल स्टेट गवर्नमेंट ऑफ़ बिहार को 4000 पुलिस इंस्पेक्टर्स की जरुरत थी और 1100 विद्यार्थी केवल इस गुरुकुल से ही चयनित हुए थे।
शिक्षा ही एक मात्र तरीका है
रहमान कहते हैं कि ‘शिक्षा ही एक मात्र तरीका है, जिसके माध्यम से भारतीय अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो पाएंगे और समाज की मुख्य धारा से जुड़ पाएंगे।’
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कई प्रदेश से आते हैं विद्यार्थी
बिहार के ही नहीं बल्कि झारखण्ड, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश के विद्यार्थी भी रहमान के दिशा निर्देश के लिए गुरुकुल आते हैं। अदम्य अदिति गुरुकुल के बच्चोँ ने देश के लगभग हर प्रतियोगी परीक्षा में सफल होकर अपनी छाप छोड़ी है।
बहुत गरीब परिवार में हुआ रहमान का जन्म
रहमान का जन्म बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था। कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के उत्थान के लिए रहमान के इरादे बेहद मजबूत थे। वे कहते हैं कि गरीबी लाचारी का नहीं बल्कि सफलता का प्रतीक होता है और जिसे मेहनत, समर्पण और जूनून के साथ हासिल किया जा सकता है।
दान के पैसों पर चल रहा है गुरुकुल
आप आश्चर्य से सोच रहे होंगे कि कैसे रहमान इतनी कम गुरुदक्षिणा में अपना यह गुरुकुल अच्छी तरह से चला पा रहे हैं? तो आइये हम बता दें कि उनके द्वारा जो बहुत सारी सफलता की कहानियां गुरुकुल में लिखी गयी हैं, उनकी रचना उनके स्वयं के और उनके पुराने विद्यार्थियों के द्वारा दिए दान के पैसों से सम्भव हुई है।
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देह-दान की घोषणा भी कर चुके हैं
रहमान शिक्षा के द्वारा जीवन में बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं। जीवन के बाद भी समाज को कुछ देकर जाने की अपनी इच्छा की वजह से वे अपने देह-दान की घोषणा भी कर चुके हैं। उनके इस काम के लिए मोहन भगवत जी ने उन्हें सम्मानित भी किया है। उनका यह जीवन हमारे लिए भी प्रेरणा श्रोत है।