क्या चुनाव आयोग शेषन वाला रुआब वापस ला पायेगा?

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आशीष बागची

बार-बार ऐसे मौके आ रहे हैं, जब यह साबित हो रहा है कि मोदी के शासनकाल में लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती में गिरावट आयी है। ताजा मामला चुनाव आयोग से जुड़ा है। इस संस्था का मान हाल के दिनों में बुरी तरह कम हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त को सवालों से परे होना चाहिए, ऐसा नहीं कि जैसा पीएम चाहते हैं, वैसा काम करे। या कि वह हर तरह के शक-शुबहे से परे हो। लेकिन हो यही रहा है। चुनाव आयोग ही क्यों, नोटबंदी के मामले में रिज़र्व बैंक को कितनी ज़िल्लत का सामना करना पड़ा, वही जानता है। सोशल मीडिया और रिजर्व बैंक पर जितने मुहावरे या कहकहे बने उतना तो किसी भी ऐसी संस्था के बारे में सोचा नहीं जा सकता है।

ताजा मामला गुजरात चुनाव से जुड़ा है। इस बार चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठे हैं। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि साबरमती के रानिप में वोट डालने के बाद पीएम मोदी ने रोड शो कर आचार संहिता और कानून की धज्जियां उड़ा दी हैं। कांग्रेस ने चुनाव आयोग और पीएम पर बड़ा हमला करते हुए कहा कि चुनाव आयोग बीजेपी का बंधक हो गया है। कांग्रेस ने मुख्य चुनाव आयुक्त के गुजरात कनेक्शन का मामला उठाते हुए आरोप लगाया कि वह अब भी पीएम के निजी सचिव के रूप में काम कर रहे हैं। कांग्रेस ने पीएम मोदी पर फिक्की के मंच का भी इस्तेमाल राजनीतिक सभा के तौर पर करने का आरोप लगाया है। गुजरात विधानसभा चुनाव के दूसरे और अंतिम चरण का मतदान जारी रहने के दौरान गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अहमदाबाद के रानिप में वोट डालने पहुंचे थे।

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दरअसल कांग्रेस चुनाव आयोग से चिढ़ी बैठी है क्योंकि उसका मानना है कि दिल्ली में अगर टीवी चैनल ने राहुल गांधी का इंटरव्यू लिया तो यह विचारों की अभिव्यक्ति थी, लेकिन चुनाव आयोग ने टीवी चैनलों और अखबारों पर एफआईआर किया, राहुल गांधी को नोटिस भेजा जो कि भाजपा के पक्ष में काम करने का उदाहरण है। चुनाव आयोग पर आरोप नया नहीं है। 8 दिसंबर को जब बीजेपी ने चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन कर अहमदाबाद में अपना मेनिफेस्टो जारी किया था तो चुनाव आयोग ने कोई नोटिस नहीं ली थी।

कांग्रेस ने इस क्रम में चुनाव आयोग से पूछा, ‘क्या कारण है कि खुद आदरणीय पीएम फिक्की के प्लैटफॉर्म को एक राजनीतिक सभा के तौर पर इस्तेमाल करते हैं तो चुनाव आयोग मूकदर्शक बना रहता है। जब कांग्रेस ने तथ्य रखा, वीडियो दिखाए तो चुनाव आयोग ने कहा कि कार्रवाई करेंगे। फिर, उसका जवाब आया कि शाम 5 बजे के बाद कार्रवाई करेंगे। चुनाव आयोग मोदी के सचिव की ही तरह काम कर रहा है। यह शर्म की बात है।

ऐसे अनगिनत आरोप हाल में चुनाव आयोग पर लगे पर चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता साबित नहीं कर पाया। अब तक देश का विश्वास लोकतंत्र में बना रहा है क्योंकि चुनाव आयोग की निष्पक्षता और चुनावी प्रक्रिया की स्वतंत्रता को लेकर लोगों के मन में शक-शुबहा नहीं था। मगर गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीख़ों के ऐलान में की गयी देरी से एक निष्पक्ष संस्था के तौर पर आयोग की छवि पर धब्बा लगा क्योंकि कांग्रेस इस मामले को लेकर अदालत चली गई। इसी तरह इस साल मार्च में लगे ईवीएम हैकिंग के आरोपों पर चुनाव आयोग का रवैया जनता के विश्वास को मज़बूत करने वाला नहीं था।

दरअसल चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लोग टीएन शेषन के समय का देखने के आदी हैं। ये विश्वास चुनाव आयोग के बेहतरीन ट्रैक रिकॉर्ड से कायम हुआ, ख़ासतौर पर 1990 के दशक में मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन की सख़्ती की वजह से। बहरहाल, चुनाव आयोग का निष्पक्ष होना जितना ज़रूरी है, उतना ही ज़रूरी है उसका सरकारी दबाव से मुक्त दिखना, वरना लोग यक़ीन कैसे कर सकेंगे कि ये स्वतंत्र संस्था किसी भी सरकार की सत्ता में हर हाल में बने रहने की कोशिशों में मददगार नहीं होगी। पर, दुर्भाग्य से ऐसा करने में वह बार बार नाकाम रहा। सिवाय अहमद पटेल के मामले को छोड़ दिया जाये तो आयोग की निष्पक्षता पर जनता संदेह करती मिलती है।

1990 में मुख्य चुनाव आयुक्त बने टीएन शेषन पहले व्यक्ति थे जिन्होंने गड़बड़ी और धांधली करने वालों के मन में डर पैदा किया था। उन्होंने चुनावों में होने वाले ख़र्च पर सख़्ती की। उन्होंने अनेक कड़े और असरदार क़दम उठाये। इतना सब होने के बावजूद इस साल अगस्त महीने में हुए राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल को विजेता घोषित किए जाने से पहले देर रात तक जैसा ड्रामा हुआ उसके बाद चुनाव आयोग ने अपनी निष्पक्षता दिखाते हुए सत्ता पक्ष के दबाव के बावजूद विपक्षी उम्मीदवार की जीत पर मुहर लगाई। फिर भी, चुनाव आयोग शेषन वाला रुआब नहीं ला पाया।

मोदी के शासनकाल में इन संवैधानिक संस्थाओं के प्रति लोगों के मन में संशय पैदा होने से यह साबित होता है कि मोदी इन संस्थांओं की मजबूती के लिए तो कतई याद नहीं किये जायेंगे।
देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग शेषन वाला रुआब कब ला पाता है।

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