अंग्रेज जब भारत पर शासन कर रहे थे तो उस समय शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया था। जहां पर गर्मियों में वायसराय प्रवास करते थे। जहां पर ये वायसराय अपना ठिकाना बनाते थे उसे वायसरीगल लॉज के नाम से जानते थे। आज के समय में ये वायरीगल लॉज भारतीय उच्च संस्थान के रुप में ये आलीशान इमारत मौजूद है,जो देश की आजादी और इससे संबंधित एक एक कहानी को समेटे हुए है। आप को बता दें कि इसी इमारत में 1945 में शिमला कांफ्रेंस हुई थी। उसके बाद साल 1946 में कैबिनेट मिशन की मीटिंग हुई थी। इस बैठक में नेहरु, जिन्ना, डॉ. राजेंद्र प्रसाद समेत कई नेताओं मे शिरकत की थी।
38 लाख रुपए में निर्माण हुआ था इसका
तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लार्ड डफरिन ने शिमला को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का फैसला किया, जिसके बाद एक इमारत बनाने की जरुरत महसूस हुई। साल 1884 में वायसरीगल लॉज का निर्माण शुरू कर दिया गया, और करीब 1888 में ये इमारत बनकर तैयार हो गई। इस इमारत में भारत की आजादी तक कुल 13 वायसराय रहे। लार्ड माउंटबेटन आकिरी वायसराय थे। इस इमारत में कुल 120 कमरे हैं और इसकी सजावट के लिए बर्मा से टीक की लकड़ी मंगवाई गई थी।
देश की आजादी की यहीं पर हुई थी चर्चा
ये वो समय था जब दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका था और ब्रिटेन की ताकत को गहरा झटका लग चुका था। जिसके बाद भारत पर शासन करना उसके लिए थोड़ा मुश्किल हो चुका था। ऐसे में उन्होंने भारत को आजादी देने का फैसला कर लिया था, इसके लिए शिमला में कैबिनेट मिशन की बैठक बुलाई गई। इस बैठक में कांग्रेस सहित मुस्लिम लीग के नेताओं ने भी शिरकत की। इसी बैठक में विभाजन की नींव पड़ी और भारत को आजाद करने के लिए चर्चा हुई।
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राष्ट्रपति का निवास बनाया गया
आजादी के बाद वायरीगल को राष्ट्रपति का निवास बनाया गया, लेकिन कुछ समय बाद देश के तत्कालीन राष्ट्रपति और महान शिक्षाविद् राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इस इमारत को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का रुप दिया। अब ये इमारत देश-विदेश के सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
1.5 लाख किताबों का संग्रह है
यहां पर स्थापित म्यूजियम में देश की आजादी और विभाजन से संबंधित तस्वीरों को सहेज कर रखा गया है। यहा पर एक विशाल लाइब्रेरी है जहां पर करीब 1.5 लाख किताबों का संग्रह है। हर साल इस इमारत से सैलानियों द्वारा टिकट बिक्री से करीब 70 लाख रुपए आता है।
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