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सुन्दरलाल बहुगुणा ने दिया था पेड़ों को गले लगाने का सुझाव

सुन्दरलाल बहुगुणा की मृत्यु कोरोना के कारण हो गई. 94 साल की ज़िन्दगी में उन्होंने सचमुच पेड़ों को गले लगाना सिखा ही दिया. 1970 की दशक में चिपको आन्दोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे सुन्दरलाल बहुगुणा.

यह भी पढ़ें : Climate Change से जुड़े है चमोली त्रासदी के तार

बहुगुणा और साथी कार्यकर्ता चंडी प्रसाद भट्ट के आह्वान पर, भारतीय हिमालय में पुरुषों और महिलाओं ने लकड़हारे को काटने से रोकने के लिए खुद को पेड़ों से बांध लिया और जंजीरों में जकड़ लिया. अपनी इसी शक्ति को प्रदर्शित करते हुए उन लकड़हारों को सन्देश दिया “इन पेड़ों से पहले हमारे शरीर को काटों.”

रामचंद्र गुहा भी 1970 के दशक में उत्तराखंड में आए विनाशकारी बाढ़, लैंडस्लाइड का ज़िक्र करते हुए दर्शायाक की मनुष्य और प्रकृति में कितना कमज़ोर रिश्ता बन चूका है. ऐसे में बहुगुणा के जैसे कुछ जोशीले युवाओं ने इस धरती पे पेड़ों और प्रकृति की रक्षा करने का निर्णय लिया.

महिलओं के अधिकार के लिए बना माइलस्टोन

बहुगुणा हमेशा से ही प्रकृति और महिलाओं के अधिकार को लेकर बेहद संजीदा रहते थे. जब आदमी बहार नौकरी करने के लिए चले गए तब महिलाओं पे बोझ बढ़ा, और यही कारण रहा कि चिपको आन्दोलन का अहम् हिस्सा महिलाऐं भी रही.

बहुगुणा को मिला युवाओं का सहयोग

इन्ही वर्षो में बहुगुणा अपनी बढती दाढ़ी और स्कार्फ को अपना ट्रेडमार्क बनाते हुए युवाओं के बीच फेमस होते चले गए. उनके साथ कॉलेज की छात्राएं और महिलाएं अधिक संख्या में शामिल हुईं. उन्होंने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया, पेड़ों को गले लगाया और उपवास पर चले गए.   इसके परिणाम मिले: 1981 में एक उपवास के कारण उत्तराखंड में पेड़ों की व्यावसायिक कटाई पर 15 साल का प्रतिबंध लगा. दो साल बाद, उन्होंने पर्यावरणीय गिरावट की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए हिमालय में 4,000 किमी (2,500 मील) की यात्रा की. 1992 में उन्होंने अपना सिर मुंडवा लिया और भारत के सबसे ऊंचे टिहरी बांध के विरोध में अनशन पर चले गए.  वह उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने इसके निर्माण के कारण अपने पुश्तैनी घरों को खो दिया था.

इंदिरा गांधी ने बहुगुणा के बारे में कहाँ

एक ऐसी पहचान जिसके जीवन का लक्ष्य उस चीज़ को बचाना जिसकी वजह से आज हम सब जिंदा है. देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक बार सुन्दरलाल बहुगुणा के आंदोलनों के बारे में कहाँ, “ स्पष्ट रूप से, मैं आंदोलन के सभी उद्देश्यों को नहीं जानती. लेकिन अगर ऐसा है कि पेड़ नहीं काटे जाने चाहिए, तो मैं इसके लिए तैयार हूं.”

यह भी पढ़ें : क्लाइमेट चेंज की नजरों पर है साइबेरियन बर्ड्स…

बदलते समय के बावजूद बहुगुणा के आंदोलन का सिंबल कायम रहा. 2017 में, मुंबई में कार्यकर्ताओं ने मेट्रो रेलवे सुविधा के लिए रास्ता बनाने के लिए 3,000 से अधिक पेड़ों को काटने से बचाने के लिए पेड़ों को गले लगाया.

आखिर में सिर्फ ये ही कहाँ जा सकता है कि बहुगुणा एक charismatic और गांधीवादी सिद्धांतों के बेहद ही सयमीं व्यक्ति थे. सुंदरलाल बहुगुणा को पृथ्वी के एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा, जिन्होंने इसे बचाने के लिए जीवन भर प्रयास किया.

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