High Court: उत्तर प्रदेश में एक 17 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता का गर्भपात कराने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दायर याचिका में सुनवाई करते हुए कहा कि- कानून यौन शोषण की पीड़िता को गर्भपात कराने का अधिकार देता है. न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की पीठ ने कहा कि चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम की धारा 3(2) यौन शोषण की पीड़िता को चिकित्सीय गर्भपात कराने का अधिकार देती है.
क्या है पूरा मामला…
आपको बता दें कि एक आरोपी 17 वर्षीय किशोरी को भगा लाया था और बाद में उसके पिता की शिकायत पर पुलिस द्वारा उसे छुड़ाया गया था. उसके बाद पेट में दर्द होने पर किशोरी की जांच कराई गई तब पता चला कि वह तीन माह से अधिक की गर्भवती है. इतना ही नहीं याचिकाकर्ता के वकील का आरोप है कि किशोरी के साथ कई बार दुष्कर्म किया गया.
क्या है गर्भपात अधिनियम 2003 …
बता दें कि भारतीय गर्भपात अधिनियम का 2003 का नियम यौन उत्पीड़न या दुष्कर्म की पीड़िता के लिए 24 सप्ताह तक के गर्भ को गिराने की व्यवस्था देता है. उच्चतम न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय ने इसी तरह की परिस्थितियों में गर्भपात की अनुमति दी है.
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गर्भपात कराने से मना करना, जिम्मेदारी से बांधना
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि ‘‘यौन उत्पीड़न के मामले में एक महिला को गर्भपात कराने से मना करना और उसे मातृत्व की जिम्मेदारी से बांधना, उसे सम्मान के साथ जीवन जीने के उसके मानवाधिकार से मना करने के समान है.
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न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और प्रशांत कुमार ने की सुनवाई…
बता दें कि इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की बेंच ने की. उन्होंने कहा कि, गर्भपात अधिनियम (एमटीपी अधिनियम) की धारा 3(2) का संदर्भ दिया, जो विशेष रूप से यौन उत्पीड़न की पीड़िता को गर्भपात का विकल्प चुनने का कानूनी अधिकार प्रदान करना है.