IAS-IPS विवाद : ये है विवाद की असली जड़, आईपीएस को…

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यूपी में डीएम की सहमति से जिलों में थानेदारों और इंस्पेक्टरों के तबादले करने के आदेश पर रिटायर्ड आईपीएस(IPS) अफसरों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि पुलिस रेग्युलेशन ऐक्ट में इसका प्रावधान पहले से है, ऐसे में इस नियम का दोबारा हवाला देने का कोई औचित्य नहीं बनता। पूर्व अफसर इसे पुलिस कमिश्नर सिस्टम के विरोध के तौर पर भी देख रहे हैं। उनका साफ कहना है कि जब-जब इस सिस्टम की सुगबुगाहट होती है, आईपीएस अफसरों पर दबाव बनाने के लिए आईएएस अफसर इस तरह के आदेश जारी कर देते हैं। इस तरह के आदेश न तो जनता के हित में है और न ही सरकार के हित में। इसके अलावा जिले का काम देखने वाले अफसरों (जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक) के बीच कटुता भी पैदा करते हैं।

दबाव बनाने की कोशिश : केएल गुप्ता

प्रदेश पुलिस के मुखिया रह चुके केएल गुप्ता ने इस आदेश को आईपीएस अफसरों पर दबाव बनाने की कोशिश करार दिया है। उन्होंने कहा कि जब भी प्रदेश में पुलिस कमिश्नर सिस्टम की मांग उठती है तो आईएएस अधिकारी उसे दबाने और आईपीएस अफसरों को नीचा दिखाने की कोशिश में लग जाते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह ने पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने की कोशिश की थी, लेकिन आईएएस लॉबी ने यह कहकर कवायद को दबा दिया कि इससे पुलिस निरंकुश हो जाएगी। योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद फिर पुलिस आयुक्त प्रणाली की सुगबुगाहट हुई है। इसीलिए आईएएस लॉबी ने इन आदेशों के जरिए उसका विरोध शुरू किया है।

फ्रेश आदेश की कोई जरूरत नहीं : जी पटनायक

रिटायर आईएएस अफसर जी पटनायक का कहना है कि पुलिस रेग्युलेशन ऐक्ट-1861 में स्पष्ट निर्देश हैं कि एसपी जिले के डीएम की रजामंदी से थाना प्रभारियों की तैनाती और उनके तबादला करेंगे। इसी के चलते जिलों में दोनों अफसर आपसी बातचीत कर तैनाती और तबादले करते हैं। पटनायक के मुताबिक इसके लिए बार-बार अलग से आदेश जारी करने की कोई जरूरत नहीं है। इससे जिले में लॉ ऐंड आर्डर के लिए जिम्मेदार दोनों अधिकारियों के बीच कटुता पैदा होती है। अगर कहीं ऐक्ट का पालन न हो रहा हो, तो वहां उच्चाधिकारियों को ऐक्शन लेना चाहिए। लेकिन, इस तरह के पत्रों से दोनों के बीच कटुता पैदा करना प्रदेश के हित में है न जनता के हित में।

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बड़ा साबित करने की लड़ाई : श्रीराम अरुण

पूर्व डीजीपी श्रीराम अरुण ने भी थाना प्रभारियों की तैनाती को लेकर हाल में जारी गृह विभाग के आदेश पर आश्चर्य जताया है। उनके मुताबिक शुरू से ही आईएएस और आईपीएस में कौन बड़ा इसको लेकर मनमुटाव रहा है। आईएएस अधिकारी हमेशा से खुद को बड़ा दिखाने के लिए आईपीएस पर इस तरह के दबाव बनाते रहे हैं। इसमें कोई विवाद नहीं है कि जिले का कप्तान थाना प्रभारियों की नियुक्त और तबादले डीएम की रजामंदी से करेगा। जिलों में ऐसा होता भी है। दोनों अधिकारी आपसी तालमेल से तैनाती और तबादले करते हैं। बार-बार इस तरह के आदेश से उनके बीच मनमुटाव बढ़ता है। अफसरों को चाहिए उन्हें आपसी समन्वय से काम करने दिया जाए।

यह पुराना नियम है : आलोक रंजन

प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन का कहना है कि इसमें किसी विवाद की बात नहीं है। पुलिस रेग्युलेशन ऐक्ट में स्पष्ट है कि थाना प्रभारियों की नियुक्ति डीएम के अनुमोदन के बाद होगी। हमेशा डीएम की सहमति के बाद थाना प्रभारियों की तैनाती की जाती रही है। जिले में कानून-व्यवस्था कायम रखने की जिम्मेदारी दोनों अधिकारियों (डीएम और एसपी) की है। जब हम डीएम थे, तब भी एसपी वार्ता कर तैनाती और तबादले करते थे। अधिकारियों को इस आदेश को लेकर विवाद नहीं पैदा करना चाहिए।

‘ सरकार की मंशा किसी को नीचा दिखाने की नहीं’

डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा है कि सरकार किसी संवर्ग को बड़ा या छोटा मानकर काम नहीं करती। किसी को नीचा दिखाने या ऊंचा उठाने की मंशा सरकार की कभी नहीं होती। सरकार जनहित में किसी भी संवर्ग में कोई भी निर्णय लेने के लिए अधिकृत और स्वतंत्र है। जनता के हित में ही जब सुधार की जरूरत होती है तो कानून में संशोधन भी करती है।

सोर्स : एनबीटी

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