जानें क्या है अस्सी घाट का पौराणिक महत्व
अस्सी घाट के कुछ अनसुने किस्से
जानें क्या है अस्सी घाट का पौराणिक महत्व
वाराणसी – देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी को कई नामों से जाना जाता है. आनंद वन, बनारस, वाराणसी भी महादेव की इस नगरी के प्रचलित नाम हैं. बनारस का नाम आते ही जेहन में तीन बातें आती हैं. वो तीन बातें हैं महादेव, गंगा और घाट. गौरतलब है कि आज बनारस में 84 से अधिक घाट हैं, जो अपने आप में बेहद अनूठे हैं और सबकी अपनी अलग विशेषताएं हैं. बनारस के सभी घाट अपने आप में बेमिसाल हैं. यहां आकर ये नहीं कहा जा सकता कि ये घाट सुन्दर है या वो घाट. ऐसे में यहां घाटों को वर्गीकृत करना बेहद मुश्किल हो जाता है.
पर्यटकों, शोधकर्ताओं का पसंदीदा स्थल
आज हम आपको बताने जा रहे हैं वाराणसी के उस घाट के बारे में जो अपनी चहल पहल से देश के अलावा विदेशों के पर्यटकों को भी अपनी तरफ आकर्षित करता रहा है. जी हां, हम बात कर रहे हैं वाराणसी के अस्सी घाट की, अस्सीर घाट पर्यटकों, शोधकर्ताओं, का पसंदीदा गंतव्यं स्थील है, यह घाट गंगा नदी के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित है.
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क्या हैं अस्सी घाट कि मान्यता
अस्सीअ घाट, अस्सीर और गंगा नदी के संगम पर स्थित है. एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवी दुर्गा ने पाताल लोक के राक्षस शुम्भस – निशुम्भस का वध करने के बाद यहां ही अपनी तलवार को फेंका था. ये राक्षस बहुत भयानक थे. माना जाता है कि वह तलवार जिस स्थावन पर गिरी वहां से अस्सीर नदी का क्षेत्र शुरू हो जाता है. इस घाट का वर्णन कई हिंदू धार्मिक ग्रंथों और पुराणों जैसे – मत्य्से पुराण, अग्नि पुराण, काशी खंड और पद्म पुराण आदि में मिलता है.
अस्सी घाट पर क्या क्या है ख़ास
इस घाट पर पीपल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग भी है और भगवान अस्सीेगमेश्वाारा का मंदिर भी है जिन्हे दो नदियों के प्रवाह और संगम का देवता माना जाता है. यहां एक काफी प्राचीन टैंक भी है जिसे लोलारक कुंड के नाम से जाना जाता है जो जमीनी स्तकर से 15 मीटर की गहराई पर स्थित है. अस्सील घाट में हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक और श्रद्धालु भ्रमण करने आते हैं. चैत्र और माघ के माह में यहां काफी भक्त आते है और यहां की रौनक देखने वाली होती है.