बापू की हत्या की खबर से पसरा था बनारस में मातम

0

30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के निधन की खबर जैसे ही बनारस पहुंची, कोहराम मच गया। जगह-जगह लोगों का जमावड़ा होने लगा और हर कोई घटना के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश में लग गए।

उस वक्त घरों में लोग रेडियो पर कान लगाए बापू के हत्या जुड़ी जानकारी लेते रहे। पूरा शहर शोक में डूब गया, बापू को चाहने वालों के आंसू थम नहीं रहे थे।

ऐसा हो भी क्यों न। बापू का खास लगाव जो बनारस से था। अलग-अलग अवसरों पर कई बार बनारस आए थे। 11 बार बापू ने बनारस में प्रवास किया था जबकि दो बार यहां से होकर गुजरे थे।

नाथू राम गोडसे ने बापू को गोली मारकर हत्या कर दी थी। उनकी अस्थियों को अंतिम दर्शन के लिए बनारस लाया गया था। बेनियाबाग में एक स्थान पर अस्थि कलश को रखा गया था।

उन्हें नमन करने के लिए लाखों लोग पहुंचे थे। बाद में इस स्थान पर स्मरण के तौर पर एक चबूतरे का निमार्ण किया गया था जिसे गांधी चौराहा कहते है। अफसोस कि अब वो नजर नहीं आएगा।

गांधी चौराहा बेनियाबाग में हो रहे डेलवपमेंट वर्क की भेंट चढ़ गया है। वर्तमान में वहां पर निर्माण कार्य चल रहा है। आगे महात्मा गांधी की स्मृति को संरक्षित किया जायेगा या नहीं यह भविष्य के गर्भ में है।

बाबा को किया नमन-

22 फरवरी 1902 को पहली बार महात्मा गांधी का आगमन काशी में हुआ। हालांकि उनकी यह यात्रा पूरी तरह से निजी थी। वो विश्वनाथ गली से होते हुए काशी विश्वनाथ के दरबार में पहुंचे और बाबा दरबार में मत्था टेककर देश की सलामती की दुआ की।

इसके बाद उन्होंने एनी बेसेंट से मुलाकात की। उस वक्त एनी बेसेंट की तबीयत ठीक नहीं थी लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि बापू उनसे मिलना चाहते हैं तो खुद को रोक नहीं सकीं।

बापू ने उनसे बनारस के बारे में बात की और उनका भी हाल जाना। अपनी पहली यात्रा का जिक्र बापू ने कई संस्मरणों में किया है।

चार दिन बिताए बनारस में-

gandhi death

बापू के बनारस से लगाव का अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि जब 4 फरवरी 1916 को महामना पं. मदन मोहन मालवीय ने बीएचयू के उद्घाटन अवसर पर उन्हें आमंत्रण दिया तो तत्काल राजी हो गए।

अपनी दूसरी काशी यात्रा में उन्होंने चार दिन यहां बिताए और विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए। बीएचयू के उद्घाषण भाषण में उन्होंने मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा देने की वकालत की।

यहां से उन्होंने आजादी के आंदोलन की अलख और तेज किया। हालांकि उनकी बातें वहां मौजूद वायसराय, दरभंगा नरेश आदि को अच्छी नहीं लगीं और वो उठ कर चले गए।

अध्यक्षता कर रही ऐनी बेंसेंट ने बापू को भाषण शीघ्र समाप्त करने को कहा लेकिन बनारस की जनता उन्हें सुनना चाहती थी। उन्होंने बापू को बोलने के लिए आग्रह किया।

अगले दिन महात्मा गांधी ने नागरी प्रचारिणी सभा के 22वें वार्षिकोत्सव में भाग लिया। यहां भी मातृभाषा का प्रयोग पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जिस भाषा में संत तुलसीदास जैसे कवि ने कविताएं की हो, वह पवित्र है।

अगले दो दिनों में कई और प्रोग्राम में शामिल होने के 8 फरवरी को यहां से प्रस्थान किया।

आंदोलन को किया तेज-

वक्त बीतने के साथ देश की आजादी का आंदोलन तेज होने लगा था। बापू देशभर में घूम-घूमकर लोगों को आंदोलन से जोड़ रहे थे। इसी क्रम में 20 फरवरी 1920 को काशी आए।

टाउनहाल में खिलाफत आंदोलन पर भाषण देते हुए कौमी एकता की आवश्यकता पर बल दिया। हिन्दू-मुसलमान को खिलाफत आंदोलन में साथ आने को कहा।

अगले दिन 21 फरवरी को बीएचयू गए और वहां छात्रों-शिक्षकों को आंदोलन से जुड़ने के लिए कहा।

बापू की बातों ने किया प्रभावित-

gandhi

बापू की चौथी काशी यात्रा जो 1920 में 24 से 27 नवंबर तक चली। इस दौरान उन्होंने आजादी के आंदोलन का जबरदस्त माहौल बना दिया।

सेंट्रल हिंदू स्कूल में हुई कांग्रेस कमेटी की अखिल भारतीय बैठक में असहयोग आंदोलन पर बापू के संबोधन का असर रहा कि आचार्य कृपलानी ने अंग्रेजों के विद्यालय में अध्यापन कार्य छोड़ दिया।

अपने गुरु आचार्य कृपलानी का अनुसरण करते हुए उस वक्त विद्यार्थी रहे देश के दूसरे प्रधानमंत्री भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री, त्रिभुवन नारायण सिंह, पं. कमलापति त्रिपाठी, प्रो. राजाराम शास्त्री ने भी अंग्रेजों द्वारा संचालित विद्यालयों में पढ़ने से इनकार कर दिया।

अगले कई दिनों में बापू ने कई स्थानों पर सभाएं की। उन्होंने लोगों का आह्वान किया कि वे अंग्रेजी हुकूमत के स्कूलों में पढ़ना छोड़ दें और शिक्षक पढ़ाना छोड़ दें।

विद्यापीठ की रखी आधारशिला-

9 फरवरी 1921 को महात्मा गांधी पांचवी काशी यात्रा पर आए। दस फरवरी को 1921 को काशी विद्यापीठ का शिलान्यास किया। इसके पहले उन्होंने टाउनहाल में जनसभा की और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार का आह्वान किया।

17 अक्टूबर 1925 को एक बार फिर बापू बनारस आए ये उनकी छठवीं यात्रा थी। काशी विद्यापीठ में उन्होंने छात्रों और शिक्षकों से रचनात्मक कार्योँ से जुड़ने का आह्वान किया।
7-8 जनवरी (1927) को अपनी सातवीं काशी यात्रा में बापू ने बीएचयू के छात्रों के साथ संवाद किया और उन्हें खादी वस्त्र पहनने के लिए कहा था। 1927 में 25-26 सितंबर को बापू 8वीं बार काशी आए

बीएचयू व विद्यापीठ के छात्रों को संबोधित किया। अपनी नौवीं यात्रा में 1934 में 27 जुलाई से दो अगस्त तक काशी में रहे। काशी विद्यापीठ के कक्ष में सात दिन प्रवास किया।

इस दौरान छोटी-छोटी सभाएं की और दलितों का हाल सबके सामने रखा। उन्होंने कबीर के काम की सराहना की।

भारत माता मंदिर की दी सौगात-

अक्टूबर 1936 में महात्मा गांधी दसवीं बार बनारस आए उनकी इस यात्रा ने ना केवल बनारस बल्कि पूरे देश के लिए नायाब तोहफा दिया। उन्होंने काशी विद्यापीठ परिसर के बगल में अखंड भारत की संकल्पना का प्रतीक भारत माता मंदिर का उद्घाटन किया।

उनके साथ सरदार पटेल और खान अब्दुल गफ्फार खां भी थे। इस मंदिर का निर्माण शिवप्रसाद गुप्त ने कराया था। 21 जनवरी 1942 को महात्मा गांधी की 11वीं और अंतिम बनारस यात्रा थी।

वो बीएचयू के रजत जयंती कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए थे। इस दौरान दिए गए भाषण में गुलामी के प्रति उनका टीस दिखायी दी। उन्होंने भाषा को लेकर अपने दुख को बयान किया।

यह भी पढ़ें: राष्ट्रपति भवन में ट्रंप का शाही स्वागत, महात्मा गांधी को दी श्रद्धांजलि

यह भी पढ़ें: महात्मा गांधी के पुतले को गोली मारने वाली महिला और पति गिरफ्तार

[better-ads type=”banner” banner=”104009″ campaign=”none” count=”2″ columns=”1″ orderby=”rand” order=”ASC” align=”center” show-caption=”1″][/better-ads]

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हेलो एप्पडेलीहंट या शेयरचैट इस्तेमाल करते हैं तो हमसे जुड़ें।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More