ईरान की गजल को भायी भारतीय संस्कृति, वाराणसी में स्कूली बच्चों को सिखा रहीं कथक

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मूल रूप से ईरान में रहने वाली गजल को भारतीय संस्कृति कुछ ऐसी रास आई की वह यहीं की हो गई। वहीं, अब गजल दुनियाभर को भारतीय संस्कृति से परिचित कराने की पहल कर रही है। इसके लिए उन्होंने भारत के समृद्धशाली नृत्य और संगीत की शैली को चुना है। भारत में रह के उन्होंने वर्षों तक कथक नृत्य की शिक्षा ली और उसे अब नई पीढ़ी को सिखा रही हैं।

 

सरकारी स्कूल के बच्चों को सिखा रहीं कथक…

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गजल पिछले दो महीने से वाराणसी में हैं। पूर्व माध्यमिक विद्यालय दुर्गाकुंड के बच्चों को कथक सिखा रही हैं। यहां पढ़ने वाले कक्षा एक से आठ तक के बच्चों को हर रोज दो से तीन घंटे अलग-अलग ग्रुप में सिखा रही हैं। बच्चे भी पूरे लगन से सीख रहे हैं। गजल ने उम्र के लिहाज से अलग-अलग ग्रुप के लिए अलग-अलग डांस स्टेप तैयार किया है। छोटे बच्चों को कथक के प्रारंभिक कुछ स्टेप्स बता रही हैं। थोड़े बड़े बच्चों को नृत्य नाटिक सिखा रही हैं। दिसंबर माह के अंत में इन बच्चों के साथ स्टेज पर परफार्म करेंगी। स्कूल की प्रिंसिपल का कहना है कि यह बच्चों के लिए बेहद सुखद अवसर है। वह गजल के जरिए सिर्फ कथक नृत्य नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति को जान रहे हैं। इसके साथ ही दुनिया के दो देशों जर्मनी व ईरान के बारे में भी उन्हें जानने का मौका मिल रहा है।

डांस से बता रहीं अनटोल्ड हीरोज की कहानी…

गजल ने कथक के साथ एक बेहद नायाब प्रयोग किया है। वह दुनिया के ऐसे हीरोज की स्टोरी प्ले करती हैं जिन्होंने समाज में बड़े परिवर्तन की नीव रखी लेकिन उन्हें जानने वाले कम हैं। डांस के जरिए बिना शब्दों के उनकी स्टोरी को लोगों के सामने रखती हैं। उनकी सबसे फेवरेट स्टोरी ईरान की एक महिला की है जिसने दो सौ साल पहले ऐसे साहूकारों की खिलाफत की जो अनाज को किसानों से कम दामों में खरीदकर अपने गोदाम में रख लेते थे और आर्टिफिशियल कमी को पैदा करके अनाज का भाव बढ़ा देते थे। इससे सबसे ज्यादा गरीब परेशान होते थे। उस महिला ने अन्य महिलाओं के साथ मिलकर साहूकारों के गोदाम से अनाज को जबरन निकालकर गरीबों में बांटना शुरू किया और यह राष्ट्रव्यापी आंदोलन बना। यह समस्या दुनिया के लगभग सभी देशों में है इसलिए इसे कई जगह परफार्म भी करती हैं।

बचपन से रहा संगीत से जुड़ाव…

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गजल का जन्म ईरान के मोजेंदरा शहर में रहने वाले एक खुले विचारों के परिवार में हुआ। माता-पिता धर्म की कट्टरता से अलग स्वेच्छा व स्वतंत्र जीवन पर यकीन रखते हैं। यह परिवार साहित्य, संगीत व खेल को भी जीवन का अहम हिस्सा मानता है। प्रारंभिक शिक्षा के साथ ही गजल का आकषर्ण संगीत की ओर हुआ। माता की इच्छा से वेस्टर्न म्यूजिक सीखना शुरू किया। चार साल इससे जुड़कर सिंगिंग और इंस्ट्रूमेंट प्लेइंग सीखा। यह संगीत उनको आत्मा से नहीं जोड़ सका। गजल ऐसी म्यूजिक और डांस को अपनाना चाहता थीं जिससे आत्मा का जुड़ाव हो सके। ईरान में इंडियन म्यूजिक खूब पसंद किया जाता है। गजल का अट्रैक्शन भी इसकी ओर हुआ। लोकल आर्टिस्ट और इंटरनेट के माध्यम से भारतीय संगीत को जाना। इनमें कथक नृत्य उन्हें सबसे ज्यादा पसंद आया।

खूब परिश्रम कर सीखा कथक नृत्य…

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ईरान में राजनीतिक उथल-पुथल के चलते विकासवादी सोच रखने वाला गजल का परिवार जर्मनी आ गया। यहां से उन्होंने कथक सीखने की अपनी चाहत को परवाना चढ़ाना शुरू किया। भारत में एक बेहतर गुरुकुल की तलाश की जो दिल्ली में आकर पूरी हुई। यहां आकर प्रसिद्ध कथक कलाकार राजेन्द्र कुमार गंगानी से कथक सीखा।उनके सानिध्य में आने का मौका मिला। यहां ढेरों लोग शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। गजल ने चार साल खूब लगन से नृत्य की बारीकियों को सीखा। इसके बाद गुरु की आज्ञा से भारत में कई प्रतिष्ठित मंच पर ग्रुप व सिंगल परफार्म किया। इसके साथ ही मन में यह भाव आया कि इस कला से भारत व दुनिया की नई पीढ़ी को परिचित कराया जाए। उन्होंने दिल्ली में स्कूलों में जाकर निःशुल्क बच्चों को कथक सिखाना शुरू किया। जयपुर में भी लम्बे समय तक रहकर बच्चों को इसकी शिक्षा दी। बीच-बीच में जर्मनी और बर्थ प्लेस ईरान भी जाने का मौका मिला। वहां भी बच्चों के बीच में गईं और उन्हें कथक सिखाया। विदेश में भी जहां मंच मिला कथक को परफार्म किया।

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करती हैं गणेश व कृष्ण की वंदना…

मुस्लिम धर्म से ताल्लुक रखने वाली गजल यह बेहतर जानती हैं कि भारतीय संगीत का गहरे से जुड़ाव हिंदू धर्म से है। इसमें ईश्वर की वंदना करते हैं। इसके बावजूद वह कभी असहज नहीं हुईं। नृत्य के दौरान भगवान गणेश व कृष्ण की स्तुति करती हैं। वह भी इतनी मगन होकर जैसे इसी धर्म और संस्कृति की हों।

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नृत्य को मानती हैं प्रेम का सशक्त माध्यम…

गजल भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए नृत्य को सबसे सशक्त माध्यम मानती हैं। उनका कहना है कि इसके जरिए इंसान बिना शब्दों का उपयोग किए अपनी भावना को प्रदर्शित कर सकता है। इसमें सिर्फ मुद्राएं नहीं भाव भी प्रधान होता है। भाव दिल की गहराइयों से निकलते हैं इसलिए इसमें प्रेम का भाव होता है। उनका कहना है कि दुनिया भारतीय संस्कृति और संगीत को जाने और स्वीकार करे तो कहीं भी राग-द्वेष नहीं रहेगा। हर तरफ प्रेम का संचार होगा। वह कहती हैं कि ताउम्र दुनिया भर में जाकर भारतीय संस्कृति के बारे में लोगों को बताएंगी और कथक नृत्य से जरिए उन्हें इससे जोड़ेंगी।

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