ऐसा क्या किया आरएसएस ने कि…भड़क गए दलित

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आरएसएस से जुड़े पोस्टर में वाल्मीकि, संत रविदास को लिखा अस्पृश्य, भड़का दलित समाज
उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में कथित तौर पर आरएसएस से जुड़े पोस्टर में वाल्मीकि, संत रविदास के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किए जाने से खासा विवाद पैदा हो गया है। दलित समाज ने इस होर्डिंग्स/पोस्टर्स का विरोध किया है। दरअसल 25 फरवरी को मेरठ में संघ का सबसे बड़ा सगामन होने जा रहा है।

विवादित होर्डिंग शहर के मुख्य चौराहों पर लगे हैं

रिपोर्ट के अनुसार यह देश का सबसे बड़ा आरएसएस समागम है जिसमें तीन लाख से भी ज्यादा कार्यकर्ताओं के शामिल होने की बात कही जा रही है। हालांकि कार्यक्रम से पहले ही विवाद पैदा हो गया है। दरअसल इलाके में जो पोस्टर्स लगाए गए हैं उनमें लिखा गया है, ‘हिंदू धर्म की जैसे प्रतिष्ठा वसिष्ठ जैसे ब्राह्मण, कृष्ण जैसे क्षत्रिय, हर्ष जैसे वैश्य और तुकाराम ने जैसे शूद्र ने की है, वैसी ही वाल्मीकि, चोखामैला और रविदास जैसे अस्पृस्यों ने भी की है।’ पोस्टर का शीर्षक है ‘राष्ट्रोदय आपका हार्दिक अभिनन्दन है (जागृति विहार मेरठ)’विवादित होर्डिंग शहर के मुख्य चौराहों पर लगे हैं, जिसके बाद अब वाल्मीकि समाज के लोगों ने इस कार्यक्रम के विरोध की रणनीति बनानी शुरु कर दी है।

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वाल्मीकि समाज के लोगों की मानें तो इस मुद्दें को लेकर पंचायत बुलाई जा रही है। जिसमें कार्यक्रम के विरोध की रणनीति तैयार की जाएंगी। उन्होंने साफ कहा कि समाज से खिलवाड़ करने वाले लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। वहीं वाल्मीकि नेताओं ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से ऐसे लोगों पर कार्रवाई करने की मांग की है।बाल्मीकि समाज के एक ऐसे ही नेता ने कहा, ‘यह उन लोगों ने टिप्पणी की जो बाबा साहब आंबेडकर और बाल्मीकि समाज को नहीं जानते।

सम्मान से कोई समझौता नहीं होगा…

आंबेडकर ने समाज को जोड़ने का काम किया। ऐसा कोई समाज नहीं जो उन्हें नहीं जानता है। यह लोग संघ प्रमुख मोहन भागवत को खुश करना चाहते हैं। हालांकि अब जिसने यह विवादित होर्डिंग या पोस्टर लगाए वो खुद आगे आने को तैयार नहीं है।उन्होंने आगे कहा, ‘हम मोहन भागवत का पूरा सम्मान करते हैं। वह आएं यहां आएं हम उनका पूरा शम्मान करेंगे। मेरठ आजादी की धरती है। कुर्बानी दी है मेरठ के लोगों ने। आजादी की लड़ाई भी यहीं से शुरू हुई। लेकिन हमारा सम्मान कम किया जाएगा तो हम इसे सहन नहीं करेंगे। सम्मान से कोई समझौता नहीं होगा। बाल्कमीकि ने ही रामायण लिखी, अगर वह ऐसा नहीं करते तो हिंदू समाज को कोई जानने वाला नहीं होता।’

जनसत्ता

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