सरकार और आरबीआई के बीच मतभेद बुरी बात नहीं : वाई. वी. रेड्डी

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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर वाई. वी. रेड्डी का मानना है कि आरबीआई और सरकार के बीच वैचारिक मतभेद कोई बुरी बात नहीं है। 2004 में तत्कालीन वित्तमंत्री पी. चिदंबरम के साथ देश की बैंकिंग प्रणाली में विदेशी स्वामित्व को अनुमति देने को लेकर पनपे वैचारिक मतभेद के चलते रेड्डी आरबीआई गवर्नर पद से इस्तीफा देने का मन बना चुके थे।

2003 से 2008 के बीच आरबीआई के गवर्नर रहे रेड्डी का मानना है कि ‘सभी पक्षों को खुश रखकर’ सर्वश्रेष्ठ फैसले नहीं लिए जा सकते। रेड्डी ने ‘एडवाइस एंड डिसेंट-माई लाइफ इन पब्लिक सर्विस’ नामक आत्मकथा लिखी है। अपने बेबाक विचारों के लिए मशहूर 76 वर्षीय रेड्डी ने हालांकि नोटबंदी, गैर निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) पर सरकार द्वारा जारी अध्यादेश और रघुराम राजन के आरबीआई गवर्नर पद छोड़ने जैसे हालिया मुद्दों पर कुछ स्पष्ट नहीं कहा।

रेड्डी ने कहा, “आरबीआई और सरकार के बीच वैचारिक मतभेद कोई बुरी बात नहीं है। बल्कि यह अच्छी बात है। इसे लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए। आम तौर पर देखें तो दोनों ही संस्थाएं हैं, अगर उनके बीच हमेशा सहमति ही रहेगी तो फिर दो अलग-अलग संस्थाओं का क्या मतलब होगा?”

रेड्डी से आरबीआई के मौजूदा गवर्नर उर्जित पटेल के उस बयान के बारे में पूछा गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि नियमित मौद्रिक नीति समीक्षा के लिए होने वाली बैठक की पूर्व संध्या पर मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्यों ने वित्त मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात करने से इनकार कर दिया।

रेड्डी ने कहा, “समस्याएं दो तरह की हैं -दो संस्थाओं के बीच समन्वयकारी संबंध का होना और एक-दूसरे को खुश रखना..तो एक-दूसरे को खुश रखकर सर्वश्रेष्ठ फैसले नहीं लिए जा सकते। मैं इसे साफ कर देना चाहता हूं कि जो कुछ भी होता है, उसमें अधिकतर मुद्दा फैसला लेने का होता है।

जो होता है, वह अच्छा होता है और कुछ मतभेद भी होते हैं, जो बुरी बात नहीं है। हमारे सामने परिणामस्वरूप जो सामने आता है, वह फैसले का नतीजा होता है। यह सतत चलने वाली प्रक्रिया है।”

रेड्डी कहते हैं, “जिस अंदाज में खबरें परोसी जाती हैं, उससे लोगों को लगता है कि हम (वह और चिदंबरम) आपस में लड़े-झगड़े। लेकिन वास्तविकता यह है कि हमारे बीच ऐसा कोई झगड़ा नहीं हुआ था। यह बस वैचारिक मतभेद, निर्णयगत मतभेद थे। वहीं हमने (रेड्डी और चिदंबरम) साथ मिलकर लोगों की कल्पना से कहीं अधिक काम किया।”

चिदंबरम से संबंधित घटना के बारे में जब रेड्डी से पूछा गया कि क्या ऐसा हुआ था कि बिना शर्त माफी मांगने के बाद ही चिदंबरम उनके फैसले से सहमत हुए थे? रेड्डी ने कहा, “अगर किसी को दुख पहुंचता है, तो हमें माफी मांग लेनी चाहिए।

मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं है कि मैं सही था या गलत, आखिरकार वह मंत्री थे। अंतिम रूप से हर चीज के लिए वही जिम्मेदार होते और वह एक लोकतांत्रिक सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

वास्तव में मेरी नजर में सबसे बड़ी बात यह है कि चाहे वह चिदंबरम रहे हों, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह रहे हों, जसवंत सिंह या अटल बिहारी वाजपेयी, ये सभी ऊर्जावान लोग रहे हैं। अंत में किसी भी चीज पर चर्चा एवं बहस की इजाजत तो सरकार ही देती है।”

विदेशी बैंकों द्वारा भारतीय बैंकों के अधिग्रहण के मुद्दे पर पद छोड़ने की उनकी धमकी के संबंध में पूछे जाने पर रेड्डी ने इसे मामूली मुद्दा बताया और कहा कि एक परिवार में भी कई बार कोई भाग जाने के बारे में सोचता है, लेकिन ऐसा करता नहीं है।

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आरबीआई की स्वायत्तता और उसके बरक्स केंद्र सरकार से संबंधित सवाल के जवाब में रेड्डी ने कहा, “स्वायत्तता का सवाल ही कहां है? अगर आप अपनी मर्जी के खिलाफ जाकर किसी मंत्री की बात मानते हैं, तब भी सरकार के पास आपको निर्देश देने का अधिकार है।”

रेड्डी ने 19वीं सदी के आखिरी दशक के प्रारंभ में बतौर गवर्नर टोबिन टैक्स को लेकर दिए अपने बयान का उदाहरण दिया, जिसके लिए उन्हें सरकार के अनुरोध पर माफी मांगनी पड़ी थी।

रेड्डी ने कहा, “मैंने एक बयान दे दिया था। मंत्री ने मुझसे कहा कि आखिर मैंने वह बयान क्यों दिया। मैंने उनसे कहा कि यह वित्तीय क्षेत्र का मामला है। तब मंत्री ने मुझसे कहा कि मैं सिर्फ अकादमिक पहलू पर बयान दे सकता हूं, न कि क्रियान्वयन को लेकर, क्योंकि उनका तर्क था कि यह राजकोषीय नीति से जुड़ा मामला है, न कि मेरा निजी कारोबार।”

रेड्डी ने कहा, “मुझे बताया गया कि इसका असर शेयर बाजार पर पड़ेगा। तो मामला वास्तव में राजकोषीय एवं वित्तीय प्रभावों की जरा-सी बारीकी का है। उन्होंने कहा कि मैं तकनीकी रूप से तो सही हो सकता हूं, लेकिन मेरे बयान का असर शेयर बाजार पर हो सकता है। इसलिए यदि मुझे अपनी बात वापस लेनी पड़े और उसमें सुधार करनी पड़े, तो मेरे लिए ऐसा करना ही सही होगा।

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जी हां, मैंने एक भाषण दिया था, यह सही बात है। लेकिन उस भाषण के असर के बारे में नहीं सोचा था। उस भाषण का असर सरकार पर भी होना था, इसलिए सफाई देना जनहित में था।”नोटबंदी को लेकर पूछे गए सवाल पर रेड्डी ने अपना मत रखने से इनकार कर दिया और सिर्फ इतना कहा कि देश को अभी भी उसके बाद के आंकड़ों का इंतजार है, जिसे हर महीने ठीक किया जा रहा है।

रेड्डी ने कहा, “भारत में न सिर्फ भविष्य अनिश्चित है, बल्कि बीत चुके समय को लेकर भी संशय है। इसलिए वे लगातार आंकड़ों में सुधार कर रहे हैं। इस लिहाज से किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। यह बेहद जटिल है। यह किसी राजकोषीय उपाय जैसा नहीं है, जिसके वित्तीय प्रभाव होते हैं, क्योंकि काले धन को निशाना बनाकर की गई नोटबंदी पूरी तरह कर प्रशासन का मामला है।”

नोटबंदी की ही तर्ज पर रेड्डी ने रघुराम राजन के आरबीआई गवर्नर का पद छोड़ने के मुद्दे पर भी ज्यादा कुछ नहीं कहा। उन्होंने कहा, “यह सवाल इस तरह नहीं पूछा जाना चाहिए। मैं यहां कोई राय देने के लिए नहीं बैठा हूं। मुझे नहीं लगता कि यह उचित होगा।”

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