नाटो पर डोनाल्ड ट्रंप के बयान से क्यों परेशान हुआ यूरोप ? जानिए क्या है NATO

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अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप नंवबर 2024 में हो रहे चुनाव में अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं. चुनावी रैलियों में डोनाल्ड ट्रंप जनता से तमाम भारी-भरकम वादे भी कर रहे हैं. इसी बीच ट्रंप का नाटो को लेकर एक ऐसा बयान सामने आया है, जिसने सदस्य देशों की चिंताओं को बल दे दिया है. ट्रंप का कहना है कि अगर सदस्य भी तय की गई फीस न दें तो अमेरिका उनके बदले काम नहीं करेगा. इसके अलावा डोनाल्ड ट्रंप ने ये भी कहा कि अगर यूरोप या फिर उत्तरी अमेरिका के किसी भी हिस्से पर सशस्त्र हमला हो, तो उसे अमेरिका बचाएगा. हालांकि इस दौरान ट्रंप ने रूसी हमले की धमकी भी दी, जिससे यूरोपीय देश सकते में आ गए हैं.

NATO एक मिलिट्री गठबंधन है

बतादें कि NATO एक मिलिट्री गठबंधन है. पचास के शुरुआती दशक में पश्चिमी देशों ने मिलकर इसे बनाया था. तब इसका इरादा ये था कि वे विदेशी, खासकर रूसी हमले की स्थिति में एक-दूसरे की सैन्य मदद करेंगे. अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और कनाडा इसके फाउंडर सदस्य थे. ये देश मजबूत तो थे, लेकिन तब सोवियत संघ (अब रूस ) से घबराते थे. सोवियत संघ के टूटने के बाद उसका हिस्सा रह चुके कई देश नाटो से जुड़ गए. रूस के पास इसकी तोड़ की तरह वारसॉ पैक्ट है, जिसमें रूस समेत कई ऐसे देश हैं, जो पश्चिम पर उतना भरोसा नहीं करते.

NATO का सदस्य बनने के लिए सबसे पहली शर्त ये है कि उस देश में लोकतंत्र हो. चुनावों के जरिए सरकारें बनती हों. आर्थिक तौर पर देश को मजबूत होना चाहिए. इसके अलावा देश की सेना भी मजबूत होनी चाहिए, जिससे किसी भी हमले की स्थिति में सेना साथ दे सके.

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NATO का सदस्य बनने के लिए देश को पहले खुद इसमें दिलचस्पी दिखानी होती है. इसके अलावा सदस्य देश न्योता देकर भी इस सगंठन में शामिल होने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं. इसके बाद ही मंजूरी मिलती है. फिलहाल इसके 31 सदस्य हैं. इनमें से ज्यादातर यूरोपियन देश हैं, जिनके अलावा अमेरिका और कनाडा हैं.

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