Holi of Mathura: मथुरा में शुरू हुई दस दिवसीय होली की हुंडदंग…

जानें कृष्णनगरी में कितनी तरह की खेली जाती है होली ?

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Holi of Mathura: होली का त्यौहार के आने में अब कुछ ही दिन शेष रह गए है. जैसे-जैसे यह त्यौहार नजदीक आता है वैसे -वैसे शहर और गांव होली के रंग में रंगते नजर आने लगते हैं. यूं तो देश के हर कोने में होली बहुत धूमधाम से मनाई जाती है, लेकिन यदि बात करें कृष्ण नगरी मथुरा की तो यहां पर होली की अलग ही धूम देखने को मिलती है.

देश के हर स्थान पर होली का त्यौहार दो या तीन दिन ही मनाया जाता है, लेकिन मथुरा में होली का त्यौहार दस दिनों तक चलता है. ऐसे में हर दिन अलग तरह की होली खेली जाती है. इसमें सबसे पहले लड्डू मार होली से शुरूआत होती है और रंगों की होली के साथ दस दिवसीय इस त्यौहार का अंत हो जाता है. यदि आपके मन में भी यह सवाल है कि, दस दिनों तक कितने प्रकार की होली खेली जाती है और क्यों ? तो आज हम आपको बताएंगे दस दिन कौन – कौन सी होली खेली जाती है और क्य़ों…

कब मनाई जाती है होली ?

हिंदू चंद्र-सौर कैलेंडर में होली सर्दियों के अंत में मनाई जाती है, जिसमें माह की आखिरी पूर्णिमा होती है. इस दिन तिथि चंद्र चक्र के साथ बदलती रहती है, जो वसंत ऋतु को दर्शाता है. यह अक्सर मार्च में होता है, लेकिन कभी-कभी यह फरवरी के अंत में ग्रेगोरियन कैलेंडर में होता है. भारत में होली के कई प्रकार हैं, जैसे लठ्ठमार होली, डोल जात्रा, फगुवा, रंग पंचमी या शिगमो, याओसांग, बैठकी या खाड़ी, मंजल कुली या उकुली, बसंत उत्सव और डोला. साल 2024 में वृन्दावन, बरसाना और मथुरा में होली के दिन-वार कार्यक्रमों, कार्यक्रमों और गतिविधियों के माध्यम से आध्यात्मिकता और खुशी की यात्रा पर निकलें, जहां हर पल प्रेम, एकता और उत्सव से ओत-प्रोत है.

लड्डू की होली

मथुरा के बरसाना में श्री जी मंदिर में ‘लड्डू होली’ का बड़ा उत्सव मनाया जाता है. “पंडा” नामक पुजारी बरसाना से होली खेलने के लिए नंदगांव आते हैं. जब पांडा बारिश से वापस आता है तो उसका लड्डुओं से स्वागत किया जाता है. भक्त श्रीजी मंदिर में बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं और रंगों, गीतों और नृत्यों के बीच उन पर लड्डू फेंके जाते हैं. वे मिठाइयों को श्रद्धापूर्वक आशीर्वाद के रूप में स्वीकार करते हैं. उस क्षण को याद करते हुए, जब श्रीकृष्ण ने राधा के साथ होली खेली और उन पर फूलों की बरसात की लोग श्रीकृष्ण और राधा की प्रतिमाओं पर फूलों की बरसात करते हैं.

लट्ठमार होली

बरसानें की लट्ठमार होली विश्व प्रसिद्ध है. इस होली को खेलने और देखने के लिए देश ही नहीं विदेश से भी लोग पहुंचते हैं. इस होली को मनाने के पीछे की मान्यता है कि जब कृष्ण जी अपने दोस्तों के साथ राधा जी के साथ होली खेलने के लिए बरसाना आते थे तो, वह और उनकी सखियां उन्हें बांस की लाठियों से मार कर भगा देती थी. तभी से यह परंपरा शुरू हुई और अब यह अनुष्ठान का रूप ले चुकी है. आधुनिक समय में नंदगांव के पुरूष बरसाना आते हैं और यहां की महिलाएं उन्हें लाठियों से खदेड़ती है. नंदगांव की महिलाओं का मीठा बदला अगले दिन मिलता है. बरसाना के लड़के नंदगांव में महिलाओं को रंग में सराबोर करने जाते हैं, लेकिन स्थानीय महिलाएं पुरुषों को बांस की लाठियों से दूर भगाती हैं. यह संघर्ष दुनिया भर में प्रसिद्ध एक भव्य उत्सव में बदल जाता है.

फूलों की होली

फूलों वाली होली या फूलों की होली एक अनोखा उत्सव है जिसमें गीले और सूखे रंगों की जगह रंगीन फूलों की पंखुड़ियों से होली खेली जाती है.यह भगवान कृष्ण और राधा की कहानियों से निकला है और उनके चंचल प्रेम का प्रतीक है. यह महत्वपूर्ण है कि यह होली के प्रति एक सौम्य, पर्यावरण-अनुकूल दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है. प्रकृति की सुंदरता पर जोर देता है और एकता और नवाचार की भावना को बढ़ावा देता है.

छड़ीमार होली

गोकुल में मनाई जाने वाली छड़ीमार होली भी काफी प्रसिद्ध है. इस दिन गोकुल की महिलाएं अपने हाथ में छड़ी लिए पुरूषों पर बरसाती है. इस होली को मनाने के पीछे की मान्यता है कि, कृष्ण बचपन में गोपियों को परेशान करते थे तो गोपियां उनपर छड़ी बरसाती थी, जो अब एक परंपरा में तब्दील हो गई है और हर साल होली के अवसर पर छड़ीमार होली मनाई जाती है.

विधवाओं की होली

उत्तर प्रदेश के वृन्दावन में विधवा होली भी मनाई जाती है जिसे “विधवाओं की होली” भी कहते हैं. एक मार्मिक परंपरा है जहां विधवाएं जिन्हें अक्सर हाशिए पर रखा जाता है, वहीं रंगों के त्योहार में भाग लेने के लिए विधवाएं सामाजिक नियमों को तोड़ती हैं. सामाजिक नियमों को छोड़कर वे होली मनाती हैं, जो निराशा पर प्रेम की विजय और जीवन में खुशी और सम्मान की पुनःप्राप्ति का प्रतीक है.

होलिका दहन

होलिका दहन बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है. लोककथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु के प्रति प्रह्लाद की श्रद्धा से उसके पिता हिरण्यकश्यप नाराज हो गए और होलिका के साथ मिलकर प्रह्लाद को मार डालने का निश्चय किया. हालांकि, होलिका का वरदान उसके विरूद्ध हो गया और प्रह्लाद बच गए जबकि होलिका नष्ट हो गई. यह अनुष्ठान, प्रार्थनाओं और उत्सवों के बीच होलिका के पुतले जलाकर मनाया जाता है, बुराई पर सदाचार की विजय का प्रतीक है.

होली

होली, एक हिंदू त्योहार, बुराई पर अच्छाई की जीत और वसंत के आगमन को मनाता है. कथा कहती है कि भगवान कृष्ण ने राधा के प्रति अपना प्रेम व्यक्त करने के लिए रंगों का चंचल प्रयोग किया था. यह अंधकार पर प्रकाश की विजय, क्षमा और एकता का प्रतीक है. समुदायों में एकजुटता और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए प्रतिभागी खुशी-खुशी रंग उड़ाते हैं, नृत्य करते हैं और मिठाइयां बांटते हैं.

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हुरंगा होली

मथुरा के दाऊजी मंदिर में हुरंगा होली मनाई जाती है, जहां महिलाएं खेल-खेल में पुरुषों की शर्ट उतारकर उन्हें लाठियों से मारती हैं. लोककथाओं के अनुसार, यह बरसाना की महिलाओं के साथ भगवान कृष्ण का मजाक है. यह चंचल आदान-प्रदान गोपियों के साथ कृष्ण की चंचल बातचीत का प्रतिनिधित्व करता है, जो त्योहार के उत्सव को अधिक जीवंत बनाता है.वृन्दावन, बरसाना और मथुरा की होली 2024 तक यादगार रहेगी और भाग्यशाली लोगों के दिलों में अंकित रहेगी. होली केवल एक त्योहार नहीं है. यह एक आत्मिक यात्रा है, मानवता और परमात्मा के बीच स्थायी बंधन का प्रमाण है. यह इन पवित्र शहरों में है, जहां भगवान कृष्ण और राधा की चंचल हरकतें रंगों के समुद्र के बीच जीवंत हैं.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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