यतो धर्मस्तो जयाही
Where there is righteousness, there is victory.
जहाँ सच वहां जीत. यही है Indian Judiciary का मोटो। न्यायपालिका ने सबके के लिए अपने दरवाज़े हमेशा से खुले रखे है. गैरतलबब है की आज भी देश में कई लोगों को भारतीय न्यायपालिका की उतनी जानकारी नहीं है.
तो आइये आजा आपको IPC से परिचय कराते है. इसका इस्तेमाल कहाँ किया जाता है, कब से ये Indian Judiciary के अस्तित्व में आया और बाकी तमाम चीज़ों का चिट्ठा आपके सामने रखते है.
IPC का इतिहास
भारतीय दण्ड सहिंता (IPC) Indian Judiciary का मैन उद्देश्य क्रिमिनल कोड है. इसका उद्देश्य भारत के सभी आपराधिक मामलों के पहलुओं को कवर करना है. IPC का मसौदा फर्स्ट लॉ कमीशन के एडवाइस पर 1833 में चार्टर एक्ट 1834 के अंतर्गत हुआ था. इसके चेयरमैन Lord Thomas Babington Macaulay थे.
1862 यानी ब्रिटश राज के दौरान IPC लागू कर दी गई थी, लेकिन यह सिर्फ ब्रिटिश शासित प्रदेशों में ही चलन में थी क्यूंकि उस दौर में प्रिंसली स्टेट्स के अपने खुद के लीगल सिस्टम हुआ करते थे.
IPC का उद्देश्य
अगर आसान भाषा में समझा जाए तो इसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ भारतीय न्यायपालिका को एक सामान्य दण्ड सहिंता प्रदान करना था. हालांकि यह इसका प्रारंभिक उद्देश्य नहीं था. ऐसा इसलिए क्यूंकि ड्राफ्टिंग कमिटी को ऐसा लगा कि अगर इसके कुछ दण्ड बच गए तो उसे भी इसमें जोड़ना ज़रूरी था.
IPC का स्ट्रक्चर
भारतीय दंड सहिंता के स्ट्रक्चर को देखा जाए तो इसमें कुल 23 चैप्टर है जिन्हे कुल 511 सेक्शन से संकलित किया गया है. संहिता एक परिचय के साथ शुरू होती है, इसमें प्रयुक्त स्पष्टीकरण और अपवाद प्रदान करती है, और अपराधों की एक विस्तृत श्रृंखला को कवर करती है।
किन-किन देशों में भारत जैसे सामन IPC है?
जानकारी के लिए आपको बता दे कि भारत के अलावा ब्रिटिश राज में जब भारतीय दंड सहिंता को लागू किया गया था तब भारत के सीमावर्ती देशों में भी यही सहिंता थी क्यूंकि उस समय भारत का बटवारा भी नहीं हुआ था. भारत में बटवारे में बाद भी इसी सहिंता को पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, सिंगापुर, बर्मा में इसी सहिंता को कुछ बदलाव के साथ लागू किया गया है.
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