दस राज्यों को जीतने के लिए पीएम का ये है मास्टर प्लान

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देश की जनता ने 2014 के चुनावी समर में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को 60 महीने के लिए सत्ता सौंपी थी। पर अब तैयारी ये होने लगी है कि मई 2019 से पहले दिसंबर 2018 में यानी 5 महीने पहले ही पीएम मोदी जनता की अदालत में दोबारा जनादेश की गुहार लेकर जाएं। माना जा रहा है कि बीजेपी राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव के साथ-साथ लोकसभा चुनाव का भी दांव खेलने का मन बना रही है। देश में पहली बार चुनाव का दांव बड़े स्तर पर खेलने की तैयारी है।

वक्त से पहले चुनाव कराने के लिए मना रही है

वैसे तैयारी जनता की मानसिकता को लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराने का भी बनाने की भी है। इसके लिए बीजेपी शासित महाराष्ट्र , हरियाणा और झारखंड की सरकार को दांव पर लगाने से भी बीजेपी को परहेज नहीं। इसलिए यहां भी 10 से 11 महीने पहले चुनाव कराने की तैयारी है जबकि इन तीनों राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल अक्टूबर-नवंबर 2019 में पूरा हो रहा है। यानी छह राज्यों के विधानसभा चुनाव तो साथ कराए ही जा सकते हैं। बीजेपी शासन वाले इन छह राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ पार्टी एनडीए में अपने सहयोगी चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और चंद्रशेखर राव की तेलंगाना पार्टी को भी वक्त से पहले चुनाव कराने के लिए मना रही है।

…तो बिहार जल्दी चुनाव कराने को तैयार है

इससे आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी वक्त से पांच महीने पहले लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव संभव हो जाएंगे। इसी तरह सिक्कम के चुनाव भी पांच महीने पहले कराने की तैयारी हो रही है। लोकसभा और इन नौ राज्यों के चुनाव के साथ नीतीश कुमार भी बिहार विधानसभा चुनाव कराने को तैयार हो सकते हैं। दरअसल नीतीश पहले ही इस बात को कह चुके हैं कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं तो बिहार जल्दी चुनाव कराने को तैयार है। जाहिर है अगर वाकई दिसबंर में चुनाव की ऐसी तस्वीर उभरती है तो फिर देश में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराने की सोच का ये सेमीफाइनल भी होगा।

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इस दांव से चाहे अनचाहे क्षत्रपों के हाथ से सियासत निकलकर केंद्र के नायकों के इर्द-गिर्द घूमेगी। आने वाले वक्त में ये देश को राष्ट्रपति प्रणाली की राह भी दिखा दे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। अंदरूनी तौर पर दिसंबर में ही लोकसभा चुनाव के साथ 10 राज्यों के विधान सभा चुनाव की बिसात बिछाई जा रही है। इससे पीएम मोदी लोकसभा चुनाव के जरीये 10 राज्यों के विधानसभा चुनाव के मुख्य केंद्र में आ जाएंगे। राज्यों में तैनात बीजेपी के सीएम के इर्द-गिर्द चुनाव ना होकर मोदी के अक्स तले होंगे। मोदी के इस ट्रंप कार्ड से बीजेपी शासित राज्यों में सत्ता विरोधी लहर धीमी पड़ जाएगी। बता दें कि राजस्थान उपचुनाव ने अभी से संकट पैदा कर दिया है कि बीजेपी हार सकती है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में रमण सिंह और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह लंबे वक्त से सत्ता में हैं। माना जा रहा है कि सत्ता विरोधी लहर का सामना उन्हें भी करना पड़ सकता है।

दिसंबर में चुनाव कराना राहत का सबब होगा

जबकि महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस सरकार का संकट शिवसेना के खुले बीजेपी विरोध में जा सिमटा है। हरियाणा में खट्टर और झारखंड में रघुवर दास का संकट यही है कि दोनों मोदी की छाया तले ही सीएम हैं। ऐसे में दोनों राज्यों में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष माहौल बनाने में जुटा है। लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव होंगे तो ना सिर्फ केंद्र में मोदी रहेंगे बल्कि मोदी सरकार के लिए भी दिसंबर में चुनाव कराना राहत का सबब होगा। 2019 में सरकार अपने कामकाज को बताने की जगह 2022 तक का वक्त मांगेगी।

एक तरफ राज्यों के साथ लोकसभा चुनाव कराने के पीछे खर्चे में कटौती का तर्क तो दूसरी तरफ आजादी के 75 बरस पूरे होने पर न्यू इंडिया की सोच की हवा बनाने का रास्ता मिलेगा। सत्ता रहे तो हर थ्योरी पलटी जा सकती है। जल्द चुनाव के आसरे सत्ता बरकरार रखने के अगर जरा भी चांस होंगे तो मोदी इससे चूकना भी नहीं चाहेंगे। संसद में सत्ता की सफलता और कांग्रेस की विफलताओं का जिक्र मोदी ने खुलकर किया। इस मिजाज को अब कांग्रेस भी समझ रही है तभी तो गुरुवार को सोनिया गांधी ने कांग्रेसी नेताओं के सामने चुनाव के लिए तैयार रहने की बात कही। एक साथ चुनाव की बिछती इस बिसात में पहली बार सवाल क्षत्रपों का है, जिनके सामने मजबूरी है वह या तो बीजेपी के साथ रहें या फिर कांग्रेस के। यानी क्षत्रपों की सियासत को एक वक्त कांग्रेस ने कमजोर किया। अब बारी बीजेपी की है।

आजतक

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