1873 में हुई थी रैगिंग से पहली मौत, जानिए सबसे पहले किसने की थी रैगिंग

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आज देश में रैगिंग शब्द अछूता नही है। देश में जब भी नये सत्र की शुरुआत होती है, रैगिंग की घटनाएं भी सामने आती हैं। जहां सीनियर्स छात्र अपने जूनियर्स छात्रों की रैगिंग करते हैं। रैगिंग में किसी व्यक्ति से आपत्तिजनक व प्रतिकूल व्यवहार कराया जाता है। कई बार जूनियर छात्र अपमान के घूंट को पीकर रैगिंग सहन  कर लेते हैं। मगर कई बार ऐसी भी घटनाएं सुनाई देती हैं, जब रैगिंस से पीड़ित छात्र सुसाइड करने जैसा कदम उठा लेता है। इसलिए रैगिंग के खिलाफ सरकार ने एंटी रैगिंग कानून बनाया है, जिसे हर कॉलेज को अनुसरण करने के लिए बाध्य किया गया है। लेकिन फिर भी रैगिंग की घटनाएं खुले तौर पर सामने आती रहीं हैं। आईए जानते हैं कि भारत में रैगिंग कैसे शुरू हुई।

यूरोपीय सेना ने की थी पहली रैगिंग

रैगिंग आज या कल से शुरू नही हुई है। रैगिंग का इतिहास भी काफी पुराना है। माना जाता है कि 7 से 8वीं शताब्दी में ग्रीस के खेल समुदायों में नए खिलाड़ियों में स्पोर्ट्स स्प्रिट जगाने के उद्देशय से रैगिंग की शुरुआत हुई। इसमें जूनियर खिलाड़ियों को चिढ़ाया और अपमानित किया जाता था। समय के साथ रैगिंग में बदलाव होता गया और सेना ने भी इसे अपना हिस्सा बना लिया। इस तरह से यह माना जाता है कि सबसे पहले यूरोपीय सेना ने रैगिंग की थी।

यूरोपीय कॉलेजों से निकली है रैगिंग

अधिकारिक तौर पर  रैगिंग यूरोपीय विश्वविद्यालयों में शुरू हुई थी। यूरोपीय सेना से विद्यालयों तक रैगिंग पहुंची थी। कुछ यूरोपीय विश्वविद्यालयों में नए छात्रों के स्वागत के समय वरिष्ठ छात्र व्यावहारिक मजाक करते थे। धीरे-धीरे रैगिंग की प्रथा पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गई। बाद में इसी रैगिंग का यही हंसी-मज़ाक बड़ा अपराध बनता गया। दरअसल, रैगिंग की शुरुआत जिस आधार पर हुई थी, उसका क्षेत्र बड़ा होता गया। अब रैगिंग हंसी-मजाक से ऊपर उठकर अपमान करने का पैमाना बन गया है, जहां सीनियर्स अपने जूनियर्स को मांसिक वेदना तक देने से पीछे नहीं हटते।

1873 में हुई थी रैगिंग से पहली मौत

रैगिंग, जो केवल ठिठौली के लिए शुरू हुई थी, धीरे-धीरे वह मौतों का खेल खेलने लगी। रैगिंग का रेश्यो इतना गहरा होता गया कि रैगिंग से पीड़ित व्यक्ति जान देने की सोचने लगे। रैगिंग एक खतरनाक अपराध है, यह मुद्दा तब सामने आया जब साल 1873 में रैगिंग से पहली मौत हुई थी। न्यूयॉर्क की कॉरनेल यूनिवर्सिटी की इमारत से गिरकर एक जूनियर छात्र की मौत हो गई। 90 के दशक में भारत में रैगिंग के घातक रूप ले लिया। 1997 में तमिलनाडु में सबसे ज्यादा रैगिंग के मामले आए।

भारत कैसे पहुंची रैगिंग

भारत में रैगिंग की शुरुआत कैसे हुई, यह साफ स्पष्ट तो नहीं हो पाया है। लेकिन माना गया है कि भारत में रैगिंग की प्रथा आजादी से पहले ही आ गई थी। उन दिनों अंग्रेजी और आर्मी कॉलेजों में ऐसा सिर्फ मजाक के तौर पर किया जाता था। साल 1960 तक इसमें किसी भी प्रकार की हिंसा आदि शामिल नहीं थी। लेकिन बाद में भारत में भी रैगिंग ने अपराधिक रूप धारण कर लिया। आज देश में रैगिंग के आपराधिक मामलों की संख्या सबसे अधिक है।

देश में इन राज्यों में रैगिंग के कम मामले

भारत में रैगिंग के मामलों की बात करें तो सबसे ज्यादा रैगिंग के मामले तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में मिलते हैं। देश में सबसे कम रैगिंग की घटनाओं वाले राज्यों में क्रमशः अरुणाचल प्रदेश (दो), गोवा (दो), सिक्किम (चार), मेघालय (चार), मिजोरम (पांच) और मणिपुर (छह) शामिल हैं।

एंटी रैगिंग कानून 

रैगिंग के खिलाफ सबसे कड़ी सजा दोषी को तीन साल तक सश्रम कैद है। रैगिंग विरोधी कानून की बात की जाए तो अब किसी भी कॉलेज में रैगिंग एक बड़ा अपराध है। रैगिंग का दोष साबित होने छात्रों को तो सजा मिलेगी ही, साथ ही संबद्ध कॉलेज पर भी कार्रवाई होगी और उस पर आर्थिक दंड भी लगाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने लगाया बैन छात्रों के परिचय से शुरू हुई रैगिंग ने 90 के दशक तक यहां भी खतरनाक रूप अख्तियार कर लिया था। आंकड़ों की मानें तो वर्ष 1997 में तमिलनाडु में रैगिंग के सबसे ज्‍यादा मामले पाए गए। उसके बाद वर्ष 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया।

उलटा बढ़ रहा रैगिंग का ग्राफ

रिकॉर्ड से पता चलता है कि मध्य प्रदेश ने 2017 से 2020 तक कुल मिलाकर 359 रैगिंग की घटनाएं दर्ज की हैं और उन वर्षों में 510 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश से पीछे है। इससे यह कहा जा सकता है कि एंटी रैगिंग कानून बनने के बाद भी रैगिंग के मामलों में कमी आने के बजाय उलटा बढ़ोत्तरी हो रही है।

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