सर्वसम्मति से सुलझेगा ‘राम मंदिर’ मुद्दा

0

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दे की त्वरित सुनवाई करने से इनकार करने और इस मामले का हल अदालत से बाहर बातचीत के माध्यम से निकालने का निर्देश देने के बाद स्पष्ट हो गया है कि मुद्दे का कानूनी समाधान संभव नहीं है। सन् 1993 में अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह संकेत दिया था कि मुद्दे पर कोई भी फैसला जोखिम भरा होगा। इस प्रकार अयोध्या मुद्दा जस का तस बना हुआ है।

सभी भारतीयों की भावना तथा सुरक्षा से जुड़े मुद्दे का एक मामूली विवाद की तरह एक फैसले के माध्यम से समाधान नहीं किया जा सकता। कोई भी फैसला जो किसी को विजय तो किसी को पराजय प्रदान करता हो, मुद्दे का समाधान नहीं होगा। इस तरह के फैसले से भावनाएं आहत होंगी, सांप्रदायिक समरसता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

मान लिया जाए कि अदालत फैसला मुसलमानों के हक में सुनाती है, तो हिंदू इसे हल्के में नहीं लेंगे। और अगर फैसला हिंदुओं के हक में जाता है, तो मुसलमानों के बीच कटुता तथा असुरक्षा की भावना बढ़ेगी। फैसले के परिणामस्वरूप हिंदुओं का जो आनंदोत्सव होगा, वह अनिश्चित सांप्रदायिक समीकरण को और बिगाड़ेगा।

इसलिए, सभी भारतीयों का राष्ट्रीय कर्तव्य है कि वे किसी ऐसे समाधान का प्रयास करें, जिससे किसी को तकलीफ न पहुंचे। मतभेदों के बावजूद भारत के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है कि वह मुसलमानों की भावनाओं को आहत किए बिना भव्य राम मंदिर के निर्माण को सुनिश्चित करने के लिए सौहार्दपूर्ण समाधान निकाले।

इस तरह के समाधान के लिए बड़े समझौते की जरूरत है और यह तभी संभव है, जब लोगों के बीच एक हाथ दे, एक हाथ ले की भावना जागृत हो। इसके लिए, मुसलमानों को इस बात को कबूल करना चाहिए कि यह विवादित भूमि हिंदुओं की धार्मिक आस्था के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। हिंदुओं को अपनी तरफ से काफी संयम दिखाना होगा और ऐसा कुछ भी करने से बचना होगा, जिससे मुसलमानों में असुरक्षा तथा अलगाव की भावना भड़के।

Also read : बीफ बैन से ‘ग्लोबल वार्मिंग’ पर लगेगी लगाम

न कोई बीच का रास्ता है और न ही कोई शॉर्टकर्ट। कई प्रस्तावों पर सोशल मीडिया पर काफी बहस हुई, मैं आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर द्वारा 2003 में दिए गए फॉर्मूले को भी देख चुका हूं। श्री श्री रविशंकर का तीन विकल्पीय प्रस्ताव अभी भी प्रासंगिक है, जो इसकी गहराई के बारे में बहुत कुछ बयां करता है।

किसी अन्य की तुलना में, श्री श्री रविशंकर ने राम मंदिर के निर्माण पर जोर देने के दौरान हमेशा ‘सर्वसम्मति’ की वकालत की है। उन्होंने प्राय: इस बात पर जोर दिया है कि मुद्दे को लंबा खींचना राष्ट्र हित में नहीं है और यह कट्टरवाद को बढ़ावा देगा। उनके प्रस्ताव के तहत मुसलमानों को सद्भाव दिखाने का मौका मिल सकता है और उन्हें राजनीतिक तौर पर और अलग-थलग करने से बचाता है।

उनका यह विकल्प कि जहां अस्थायी राम मंदिर स्थित है उसे मुसलमानों द्वारा हिंदु समुदाय को उपहार में दे देना चाहिए तथा उस भूमि पर चल रहे सभी मामलों को वापस लेकर उन्हें पूजा करने की अनुमति दे देनी चाहिए। पारस्परिकता की मांग किए बिना एक-दूसरे को समायोजित करने के लिए रवैये में यह परिवर्तन सभी कड़वाहट (बाबरी मस्जिद के विध्वंस की ओर इशारा) को दूर करेगा।

उनके इस प्रस्ताव पर सहमति न होने पर वह सुझाव देते हैं कि मुसलमान उस जगह को हिंदू संतों को उपहार में दे दें, जो इसके बदले में उन्हें फैजाबाद में भव्य मस्जिद के निर्माण में मदद करें।

Also read : योगी सरकार बताएगी पीएम मोदी की सफलता

और अगर दोनों पक्ष सर्वसम्मति से फैसला लेने में नाकाम होता है, तो अंतिम उपाय यह है कि वह संसद से कानून बनाने के बारे में बात करते हैं, जिसके माध्यम से राम जन्मभूमि को हिंदु समुदाय को दिया जाए तथा पूजा के अन्य सभी स्थलों पर यथास्थिति बरकरार रखी जाए। कानून में इस बात का भी उल्लेख होना चाहिए कि वह काशी व मथुरा में मस्जिदों की सुरक्षा करेगा।

श्री श्री के निष्पक्ष दृष्टिकोण को ध्यान में रखना देशहित में होगा और खासकर मुसलमान समुदाय के हित में। परस्पर फायदे वाले समझौते का नेतृत्व मुसलमानों को करना चाहिए। क्या मुसलमान दिल खोलकर इस प्रस्ताव का स्वागत करेंगे? (एम. रज्जाक रहमान पूर्व पत्रकार हैं और श्री श्री रविशंकर के ऑर्ट ऑफ लिविंग से संबद्ध रहे हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More