दलितों और ठाकुरों में तनातनी, रोका खेतों का पानी रोका

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अगड़ों के मोहल्ले से बरात निकालने के झगड़े से सुर्खियों में आए यूपी में कासगंज के निजामपुर गांव के लोगों के जीवन में कुछ बदलाव हुए हैं। अब दलित और क्षत्रिय आपस में बात नहीं करते हैं। क्षत्रियों के ट्यूबवेल से दलितों के खेतों का पानी रोक दिया गया है। पुलिस दोनों पक्षों के बीच ढाल बनकर खड़ी है। इन सबके बीच दुल्हन बनने को तैयार शीतल कहती हैं, ‘मैं संतुष्ट हूं कि दो महीने बाद शादी हो जाएगी।

ये है पूरी कहानी

कासगंज जिले के निजामपुर गांव की आबादी करीब 500 है। इसमें करीब 400 राजपूत और बाकी अन्य जातियां हैं। दलित सतपाल की बेटी शीतल की शादी अक्टूबर-2017 में तय हुई थी। आरोप है कि दिसंबर में उनके बेटे बीटू ने गांव के शंकर सिंह चौहान और रक्षपाल सिंह से गुजारिश की कि बहन की बारात गांव से निकलने दी जाए। दोनों ने चेतावनी दी कि परंपरा नहीं टूटेगी। बात जिला प्रशासन, लखनऊ और हाई कोर्ट तक पहुंची। 8 अप्रैल को प्रशासन ने तय किया कि गांव के ट्यूबवेल से बारात उठेगी और राजपूतों के कुछ घरों के आगे से निकलते हुए जाएगी।

झगड़े में फूफा के भाई का सिर फोड़ दिया गया था

बीटू के अनुसार, बुजुर्ग बताते हैं कि गांव में पिछले 20 साल में उनके परिवार की तीन बारातें नहीं चढ़ने दी गईं। 20 साल पहले बुआ की बारात के झगड़े में फूफा के भाई का सिर फोड़ दिया गया था। वह कहते हैं, ‘बहन की उम्र फिलहाल 17 साल 10 महीने हैं। 18 साल की होने पर शादी की जाएगी।’

8 दलित परिवारों के पास 30 बीघा खेत हैं

बीटू का दावा है कि पिछले दो महीने से ट्यूबवेल से हमारे खेतों का पानी रोक दिया गया है। इस वजह से गेहूं और सब्जी की फसल खराब हो गई। 8 दलित परिवारों के पास 30 बीघा खेत हैं। गांव में अविश्वास का माहौल है। लोग गुपचुप मीटिंग करते हैं। हमारी और उनकी बातचीत बंद हो चुकी है।

गांव में बारात निकलेगी, यह तय है

खेत से लौट रहीं शीतल को पुलिस सुरक्षा मिली हुई है। वह कहती हैं, ‘शुक्रवार को बारात आनी थी, लेकिन नहीं आई। जुलाई में ही सही, लेकिन शादी होगी।’ उनकी मां मधुमाला भी खुश हैं कि दामाद घोड़ी पर चढ़कर आएगा। वहीं, शीतल के मंगेतर संजय जाटव के अनुसार, शीतल के बालिग होने पर शादी होगी। गांव में बारात निकलेगी, यह तय है।

डीएम ने एकतरफा आदेश सुना तो रूट बदल दिया

अपने घर के बाहर बैठे सत्यवीर सिंह चौहान कहते हैं कि गांव में अब तक दलितों की बारात ट्यूबवेल से सीधे उनके घर तक जाती थी, लेकिन वे बारात घुमाना चाहते थे। उन्हें बरात हमारे घरों के सामने से निकालनी थी तो बात करते। हमें पूरी बात मीडिया से पता चली। डीएम ने एकतरफा आदेश सुना तो रूट बदल दिया। हमने उसे भी मान लिया। बाहर के लोगों ने गांव में दुश्मनी फैला दी। 85 साल के श्यामवीर चौहान कहते हैं, ‘लड़की के भाई ने हमसे कहा कि रूट की कोई बात नहीं है। यहां जाति पर कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ। अब जिस दिन बारात निकलेगी, हम घरों में बंद रहेंगे या कहीं चले जाएंगे। शादी से हमारा कोई लेना-देना नहीं है।’

दलितों को लेकर अब भी नजरिया नहीं बदला है

खुर्रमपुर गांव के पंकज के मुताबिक, गांव के दलित पूर्व प्रधान महिपाल सिंह को भी पिछले साल बेटी की बारात निकालने से रोक दिया गया था। दलित मामलों के जानकार हृदेश कुमार सिंह मानते हैं कि दलितों को लेकर अब भी नजरिया नहीं बदला है। यह गंभीर सामाजिक समस्या है। आजादी के 70 साल बाद भी ऐसी घटनाएं सिस्टम की बड़ी चूक है।

NBT

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