बनारस में मोहल्लों के नाम बदलने की तैयारी, विद्वानों की टीम करेगी शोध

बनारस में मोहल्लों के नाम बदलने की तैयारी, विद्वानों की टीम करेगी शोध

वाराणसी, जिसे प्राचीन काल से बनारस संग काशी के नाम से जाना जाता है, अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. अब इस पवित्र नगरी के कई मोहल्लों के नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. नगर निगम की कार्यकारिणी बैठक में आज औरंगाबाद मोहल्ले का नाम बदलने के प्रस्ताव पर मुहर लगने की संभावना है.
इसके साथ ही, 50 से अधिक मोहल्लों के नाम बदलने की योजना बनाई जा रही है, जिसके लिए पौराणिक और ऐतिहासिक तथ्यों का सहारा लिया जा रहा है.

औरंगाबाद का नाम बदलने का प्रस्ताव

आज वाराणसी नगर निगम कार्यकारिणी की बैठक होने जा रही है, जिसमें औरंगाबाद मोहल्ले का नाम बदलने के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने की संभावना है. यह मोहल्ला मुगल शासक औरंगजेब के नाम पर पड़ा था, जिसे बदलकर लक्ष्मीनगर या नारायणी धाम करने का प्रस्ताव रखा गया है.
यह केवल एक मोहल्ले का नाम बदलने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी योजना का हिस्सा है, जिसके तहत वाराणसी के कई मोहल्लों के नामों को उनके प्राचीन, धार्मिक और पौराणिक संदर्भों के आधार पर नया रूप देने की योजना बनाई जा रही है.

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कौन-कौन से मोहल्ले शामिल?

इस प्रक्रिया में शुरुआत में 50 से अधिक मोहल्लों के नाम बदले जाने की संभावना है. इसके लिए वाराणसी नगर निगम ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के विद्वानों की एक टीम को जिम्मेदारी सौंपी है, जो काशी खंडोक्त ग्रंथ और अन्य पौराणिक ग्रंथों के आधार पर नामों का निर्धारण कर रहे हैं.

अभी तक जो ड्राफ्ट बना है, उसके मुताबिक –
खालिसपुरा – ब्रह्मतीर्थ
मदनपुरा – पुष्पदंतेश्वर
औरंगाबाद – परशुराम चौक
कज्जाकपुरा – अनारक तीर्थ
अंबिया मंडी – अमरेश्वर तीर्थ
पीलीकोठी – स्वर्ण तीर्थ

यह बदलाव धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर किए जा रहे हैं, ताकि प्राचीन काशी की पहचान को पुनर्जीवित किया जा सके.

क्यों बदले जा रहे हैं नाम?

नाम परिवर्तन का यह प्रस्ताव सिर्फ राजनीतिक या प्रशासनिक निर्णय नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भ भी है. वाराणसी में नाम बदलने के लिए ‘काशी खंडोक्त’ ग्रंथ का उपयोग किया जा रहा है. यह ग्रंथ काशी के विभिन्न स्थानों का धार्मिक और ऐतिहासिक वर्णन करता है.

जिन क्षेत्रों में प्राचीन देवी-देवताओं के मंदिर या तीर्थस्थल स्थित थे, उनके नाम उन्हीं के आधार पर होने चाहिए. उदाहरण के लिए, औरंगाबाद के स्थान को भगवान परशुराम का क्षेत्र बताया गया है, इसलिए इसे परशुराम चौक नाम दिया जा सकता है.

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नाम बदलने की प्रक्रिया और नियम

नाम बदलने की प्रक्रिया में कई चरण होते हैं. जैसे…
स्थानीय लोगों की सहमति- प्रशासन को पहले संबंधित मोहल्ले के लोगों से लिखित सहमति लेनी होती है.
नगर निगम की स्वीकृति- प्रस्ताव को नगर निगम की कार्यकारिणी और सदन में पारित किया जाता है.
राज्य सरकार की अधिसूचना- जब नगर निगम प्रस्ताव को मंजूरी दे देता है, तब इसे राज्य सरकार की ओर से अधिसूचित किया जाता है.

हालांकि, नाम बदलने के बाद स्थानीय निवासियों को अपने सरकारी दस्तावेजों में नाम अपडेट करवाने की परेशानी उठानी पड़ सकती है. रेलवे, डाक विभाग, नगर प्रशासन और अन्य संस्थानों को भी नए नामों के अनुरूप अपने रिकॉर्ड अपडेट करने होंगे, जिसमें महीनों का समय लग सकता है.

संत रामभद्राचार्य ने सीधे तौर पर मुगल काल में रखे गए सभी स्थानों के नाम बदलने की मांग की है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हवाला देते हुए कहा कि “अब उन गलतियों को सुधारने का समय आ गया है, जो अतीत में हुई थीं.”