24 मार्च 2025: नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने हाल ही में Herbig-Haro 49/50 नामक नवजात तारे की अविश्वसनीय छवि कैद की है. इस तस्वीर में सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें न केवल तारे से निकलने वाली गैस और धूल की तेज धाराएं दिखाई दे रही हैं, बल्कि एक सर्पिल आकाशगंगा भी बैकग्राउंड में नजर आ रही है. इसका केंद्रीय हिस्सा नीले रंग का दिखाई देता है, जो पुराने तारों को दर्शाता है, जबकि इसकी लाल रंग की सर्पिल भुजाएं गर्म धूल और नवगठित तारों के समूह को दर्शाती हैं. यह नवजात तारा हमारी मिल्की वे गैलेक्सी में एक तारा-निर्माण क्षेत्र में स्थित है और पृथ्वी से लगभग 625 प्रकाश-वर्ष दूर है. (1 प्रकाश-वर्ष लगभग 6 ट्रिलियन मील के बराबर होता है.)

यह तस्वीर वेब टेलीस्कोप के NIRCam और MIRI उपकरणों की मदद से ली गई है, जिससे धूल और गैस के पीछे छिपी अंतरिक्षीय घटनाओं को भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. वैज्ञानिकों के अनुसार, इस छवि में दिख रहे लाल-नारंगी रंग के बादल इस बात के संकेत हैं कि यह नवजात तारा अपने चारों ओर की गैस को तेज गति से बाहर निकाल रहा है.
छवि में क्या दिख रहा ?
- यह नवजात तारा हमारी मिल्की वे गैलेक्सी में स्थित है और अभी अपने निर्माण के शुरुआती चरण में है.
- इस तारे से निकलने वाली गैस और धूल के जेट्स बहुत तेज गति से आसपास के पदार्थ से टकराते हैं, जिससे चमकदार आर्क्स (arcs) बनते हैं.
- इस टक्कर के कारण आसपास की गैस और धूल संपीड़ित और गर्म हो जाती है, जो बाद में इन्फ्रारेड और दृश्य प्रकाश उत्सर्जित करती है.
- इस छवि में आणविक हाइड्रोजन और कार्बन मोनोऑक्साइड के उत्सर्जन को भी हाइलाइट किया गया है.
पहले भी देखा गया था यह नजारा!
2006 में नासा के स्पिट्जर स्पेस टेलीस्कोप ने भी इस तारे से निकलने वाली धारा को देखा था, जिसे वैज्ञानिकों ने “कॉस्मिक टॉर्नेडो” नाम दिया था. लेकिन उस समय की तस्वीरें इतनी धुंधली थीं कि उसमें पीछे की आकाशगंगा और अन्य बारीक विवरण साफ नहीं दिख पाए थे.
यह खोज वैज्ञानिकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे तारों के बनने की प्रक्रिया और उनके विकास को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी.
आकाश में टिमटिमाते तारे महज रोशनी के बिंदु नहीं होते, बल्कि ये विशाल गैस और धूल के बादलों से बनने वाले ब्रह्मांडीय पिंड हैं, जो लाखों-करोड़ों सालों तक जलते रहते हैं. रात के साफ़ आकाश में जब हम ऊपर देखते हैं, तो हजारों तारों को चमकते हुए देख सकते हैं.
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पूरे ब्रह्मांड में कुल कितने तारे होंगे? तारे बनते कैसे हैं? कैसै जन्म लेते हैं? आइए, विस्तार से जानते हैं कि तारे कैसे जन्म लेते हैं, उनका इतिहास क्या है?
तारा क्या है?
तारे ब्रह्मांड में विशाल, चमकते हुए खगोलीय पिंड हैं, जो ऊर्जा उत्पन्न करने और ग्रहों को प्रकाश प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इनका जन्म विशाल गैसीय बादलों के संकुचन से होता है, और ये अपनी संलयन प्रक्रिया के कारण अरबों वर्षों तक चमकते रहते हैं. तारे मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों से बने होते हैं. इनका तापमान और द्रव्यमान बहुत अधिक होता है, और ये ब्रह्मांड के निर्माण से लेकर उसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
किससे बनते हैं तारे?
तारे मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों से बनते हैं. इनके अलावा, तारों के अंदर भारी तत्व जैसे कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, सिलिकॉन और लोहे की थोड़ी मात्रा भी पाई जाती है. ये भारी तत्व तब बनते हैं जब तारा अपने जीवन के अंतिम चरण में प्रवेश करता है और सुपरनोवा विस्फोट के दौरान इन तत्वों को अंतरिक्ष में फैला देता है, जिससे ब्रह्मांड में नए तत्वों और खगोलीय संरचनाओं का निर्माण होता है.
कैसे बनते हैं तारे?
Stars कैसे बनते हैं, यह जानना बहुत ही दिलचस्प है. तारे गैस और धूल के इकट्ठे होने से बनते हैं, जो गुरुत्वाकर्षण (gravity) की वजह से सिमटते हैं और एक नया तारा बनाते हैं. यह पूरी प्रक्रिया लगभग 10 लाख साल तक चलती है. जब तारा जन्म ले लेता है, तब उसके आसपास बचा हुआ पदार्थ ग्रहों और अन्य खगोलीय पिंडों (celestial bodies) के निर्माण में इस्तेमाल होता है. हालांकि, तारे बनने की प्रक्रिया को देख पाना आसान नहीं है क्योंकि धूल के बादल (dust clouds) बहुत घने होते हैं, जिससे इनमें से प्रकाश नहीं गुजर सकता. लेकिन खगोलविद (astronomers) रेडियो तरंगों (radio waves) की मदद से इन्हें देख सकते हैं. रेडियो तरंगें इन बादलों से बिना रुके गुजर सकती हैं, जिससे वैज्ञानिकों को तारा निर्माण की प्रक्रिया समझने में मदद मिलती है.
तारों का जन्म कैसे होता है?
तारें के जन्म की प्रक्रिया को “स्टार फॉर्मेशन” कहा जाता है. यह प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में होती है:
तारों का जन्म: धूल और गैस की नर्सरी
आकाशगंगा (गैलेक्सी) में अरबों तारे होते हैं, लेकिन इनके बीच बड़ी मात्रा में गैस और धूल के विशाल बादलों भी होते है, जिसे अंतरतारकीय माध्यम (Interstellar Medium) कहते हैं. इन्हीं बादलों में अणुगत बादल (Molecular Clouds) होते हैं, जहां तारे जन्म लेते हैं. ये बादल हाइड्रोजन (H₂), मेथनॉल (Methanol) और पानी (H₂O) जैसे अणुओं से बने होते हैं.
ये बादल बहुत बड़े होते हैं- कई बार ये हमारे पूरे सौरमंडल (Solar System) से भी बड़े हो सकते हैं. ये बादल लगातार गतिशील रहते हैं और इनमें गैस व धूल इधर-उधर घूमती रहती है. जब किसी क्षेत्र में ज्यादा गैस और धूल जमा हो जाती है, तो वह क्षेत्र अपने ही भार यानी गुरुत्वाकर्षण के कारण संकुचित होने लगता है. यही वह जगह होती है जहां एक नया तारा बनने वाला होता है.
नए तारे यानी प्रोटो-स्टार (Proto-star) की शुरुआत
अणुगत बादल बहुत ठंडे होते हैं- लगभग शून्य केल्विन (0°K) के आसपास. लेकिन जब कोई क्षेत्र सिमटना शुरू करता है, तो यह गर्म होने लगता है. यह भौतिकी का एक नियम है कि जब पदार्थ को संकुचित किया जाता है, तो उसकी घनत्व (density) बढ़ती है और वह गर्म होने लगता है. जब यह 10,000 खगोलीय इकाइयों (Astronomical Units – AU) तक सिकुड़ जाता है, तो इसे पूर्व-तारकीय कोर (Pre-Stellar Core) कहा जाता है.
अगले 50,000 वर्षों में यह कोर और सिकुड़ता है और इसके चारों ओर एक डिस्क बनने लगती है. तारे के ध्रुवों से पदार्थ के जेट (jets) निकलते हैं, जिससे उसका संतुलन बना रहता है. इस अवस्था को प्रोटो-स्टार (Proto-Star) “शिशु तारा” कहते हैं जिसका मतलब है कि यह एक तारे का शुरुआती रूप है. ऐसे नवजात तारों के समूह को स्टेलर क्लस्टर (stellar cluster) कहा जाता है और अगर पूरे क्लाउड में ऐसे कई क्लस्टर मौजूद हों, तो उसे स्टेलर नर्सरी (stellar nursery) कहा जाता है.
तारा कैसे बड़ा होता है?

जब कोई प्रोटो-स्टार बनता है, तो शुरू में उसका ऊर्जा स्रोत केवल गुरुत्वीय संकुचन से उत्पन्न तापमान होता है. लेकिन कुछ लाख सालों के बाद, इस डिस्क में मौजूद गैस और धूल तारे यानी प्रोटो-स्टार की सतह पर गिरने लगते हैं. जब तारे के केंद्र (कोर) में दबाव और तापमान बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, तो हाइड्रोजन के नाभिक आपस में मिलकर हीलियम बनाते हैं. इस प्रक्रिया को परमाणु संलयन (Nuclear Fusion) कहा जाता है. इस प्रक्रिया में अत्यधिक ऊर्जा निकलती है, जिससे तारा चमकने लगता है. इसे “टी-टॉरी तारा” (T-Tauri Star) कहा जाता है, और यही पहली बार होता है जब तारे को आंखों से देखा जा सकता है. यह मुख्य अनुक्रम तारे (Main Sequence Star) के रूप में स्थापित हो जाता है और लाखों-खरबों वर्षों तक चमकता रहता है.
उसके बाद क्या?
अब तारे का बढ़ना रुक जाता है, लेकिन उसके चारों ओर घूम रहा बचा हुआ पदार्थ एक डिस्क के रूप में मौजूद रहता है. यही डिस्क ग्रहों के निर्माण में मदद करती है. हमारे सौरमंडल के ग्रह भी इसी प्रक्रिया से बने हैं. यही कारण है कि सारे ग्रह एक ही समतल (plane) में घूमते हैं.
आपकों बता दें कि न्यूक्लियर फ्यूजन से उत्पन्न ऊर्जा तारे को गर्म रखती है और इसे अपने ही गुरुत्व बल से ढहने से बचाती है.
तारों की जीवन अवधि कितनी होती है?
तारों की जीवन अवधि यानी उम्र उनके द्रव्यमान पर निर्भर करती है. सामान्यतः बड़े और भारी तारे जल्दी खत्म हो जाते हैं, जबकि छोटे और हल्के तारे अरबों वर्षों तक जीवित रहते हैं. कुछ छोटे तारे इतने लंबे समय तक चमकते रहते हैं कि वे ब्रह्मांड के जन्म (13.8 अरब साल पहले) से भी ज्यादा समय तक जीवित रह सकते हैं.
1. छोटे तारे (Red Dwarfs): ये तारे कम द्रव्यमान वाले होते हैं और 10 से 100 अरब वर्षों तक जीवित रह सकते हैं.
2. मध्यम आकार के तारे (जैसे हमारा सूर्य): ये तारे लगभग 10 अरब वर्षों तक जीवित रहते हैं.
हमारा सूर्य इस समय मुख्य अनुक्रम चरण के बीच में है और यह अभी भी अपने कोर में हाइड्रोजन को जलाकर हीलियम में बदल रहा है.
3. विशाल तारे (Massive Stars): बड़े और भारी तारे केवल कुछ लाख से कुछ करोड़ वर्षों तक ही जीवित रहते हैं और फिर सुपरनोवा विस्फोट के रूप में समाप्त हो जाते हैं.
आकाश में कितने तारे मौजूद हैं?
वैज्ञानिकों के अनुसार, पूरे ब्रह्मांड में एक सेप्टिलियन यानी 1 के बाद 24 शून्य जितने तारे हो सकते हैं. सिर्फ हमारी आकाशगंगा मिल्की वे में ही 100 अरब से ज्यादा तारे मौजूद हैं, जिनमें से सबसे अधिक अध्ययन किया गया तारा सूर्य है.
ब्रह्मांड में तारों की संख्या बहुत अधिक है, जिन्हें गिन पाना लगभग असंभव है. खगोलविदों के अनुसार, केवल हमारी मिल्की वे आकाशगंगा में ही लगभग 100 से 400 अरब तारे मौजूद हैं, जिनमें से सबसे अधिक अध्ययन किया गया तारा सूर्य है. पूरे ब्रह्मांड में अरबों आकाशगंगाएँ हैं, और प्रत्येक आकाशगंगा में अरबों-खरबों तारे हैं. इस आधार पर, यह कहा जा सकता है कि ब्रह्मांड में तारों की संख्या अकल्पनीय रूप से अधिक है.
कैसे मरते हैं तारे?
जब किसी तारे के कोर में हाइड्रोजन खत्म हो जाता है, तो न्यूक्लियर फ्यूजन से बनने वाला दबाव कम हो जाता है. इसके बाद तारे की कोर सिकुड़ने लगती है और तापमान बढ़ता जाता है. लेकिन इसकी बाहरी परतें फैलने लगती हैं. तारे का द्रव्यमान यह तय करता है कि वह अंत में सफेद बौना (White Dwarf), न्यूट्रॉन तारा (Neutron Star) या ब्लैक होल (Black Hole) बनेगा.
छोटे तारे: सफेद बौने में बदलते हैं Red Giant/Supergiant)

छोटे तारे Subgiant या giant बन जाते हैं और उनका कोर हीलियम से कार्बन में बदलने लगता है.
धीरे-धीरे ये तारे अस्थिर हो जाते हैं और अपनी बाहरी परतों को बाहर निकालने लगते हैं.
यह गैस और धूल से बनी प्लैनेटरी नेबुला (Planetary Nebula) का निर्माण करता है.
तारे के कोर में केवल सफेद बौना (White Dwarf) बचता है, जो ठंडा होकर धीरे-धीरे बुझने लगता है.
विशाल तारे: सुपरनोवा में बदल जाते हैं.
बड़े तारे अपने कोर में कार्बन से ऑक्सीजन, नियॉन और मैग्नीशियम बनाते हैं.
सबसे बड़े तारे सिलिकॉन से आयरन बनाने तक यह प्रक्रिया जारी रखते हैं.
जब तारे का कोर आयरन में बदल जाता है, तो इसके पास न्यूक्लियर फ्यूजन जारी रखने के लिए कोई ऊर्जा नहीं बचती.
इसके कोर का पतन (collapse) शुरू हो जाता है और जब यह तेजी से सिकुड़ता है, तो शॉक वेव (Shock Wave) निकलती है. इसके परिणामस्वरूप तारा एक सुपरनोवा (Supernova) बनकर फट जाता है.

सुपरनोवा के बाद क्या बचता है?
1. न्यूट्रॉन तारा (Neutron Star) – अगर बचा हुआ कोर छोटा हो, तो यह बेहद घना न्यूट्रॉन तारा बन जाता है.

2. ब्लैक होल (Black Hole) – अगर कोर बहुत ज्यादा भारी हो, तो यह अपने ही गुरुत्व के कारण सिकुड़कर ब्लैक होल में बदल जाता है.
सुपरनोवा से निकलने वाला पदार्थ
जब तारे सुपरनोवा (Supernova) बनकर फटते हैं, तो उनके अंदर मौजूद भारी तत्व अंतरिक्ष में फैल जाते हैं. यही तत्व बाद में नए तारों, ग्रहों और यहां तक कि जीवन के निर्माण में भी मदद करते हैं.
अब भी बाकी है एक बड़ा रहस्य
अब तक वैज्ञानिक यह समझ चुके हैं कि हमारे सूरज के आकार के तारे कैसे बनते हैं. लेकिन जिन तारों का द्रव्यमान (mass) सूर्य से छह गुना बड़ा होता है, वे कैसे बनते हैं, यह अभी भी एक रहस्य है. बड़े तारे जब बनते हैं, तो उनका विकिरण (radiation) इतना शक्तिशाली होता है कि वह डिस्क को उड़ा सकता है, जिससे तारा बढ़ ही नहीं पाता. फिर भी, वैज्ञानिक जानते हैं कि विशाल तारे मौजूद हैं, तो निश्चित ही वे किसी न किसी प्रक्रिया से बनते होंगे. लेकिन यह प्रक्रिया क्या है, यह सवाल अभी भी वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली बना हुआ है.
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