आषाढ़ माह की संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) शुक्रवार यानि 17 जून शुक्रवार को है. यह कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी व्रत है. आज गणेश जी, चंद्रमा की पूजा करने और व्रत रखने से सभी संकट दूर होते हैं. संकटों को हरने वाली संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन चंद्रमा की पूजा करना अनिवार्य है. इसके बिना व्रत पूरा नहीं होता है. श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी से जानते हैं संकष्टी चतुर्थी के मुहूर्त, मंत्र, चंद्रोदय समय और पूजा विधि के बारे में.
तिथि और मुहूर्त
आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी तिथि का प्रारंभ: आज सुबह 06:10 बजे से
आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी तिथि का समापन: कल तड़के 02:59 बजे पर
संकष्टी चतुर्थी पर इंद्र योग: आज प्रात:काल से शाम 05:18 बजे तक
सर्वार्थ सिद्धि योग: आज सुबह 09:56 बजे से लेकर कल सुबह 05:03 बजे तक
आज का शुभ समय: दिन में 11:30 बजे से दोपहर 12:25 बजे तक
चंद्रोदय का समय
आज आप संकष्टी चतुर्थी का व्रत हैं, तो आपको चंद्रमा की पूजा के लिए देर रात तक इंतजार करना होगा. आज के दिन चंद्रमा का उदय रात 10:03 बजे होगा.
पूजा मंत्र
एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।
विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥
इस मंत्र का पूजा के समय उच्चारण करने से आपके संकट दूर होंगे. यह आपके जीवन से विघ्न बाधाओं को दूर करने का गणेश मंत्र है.
व्रत और पूजा विधि
1. आज सुबह स्नान के बाद संकष्टी चतुर्थी व्रत और पूजा का संकल्प करें.
2. अब गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना पूजा स्थान पर करें.
3. गणपति बप्पा को लाल पुष्प, अक्षत्, चंदन, सिंदूर, दूर्वा, पान, सुपारी, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित करें.
4. इसके पश्चात गणेश जी को मोदक या फिर बूंदी के लड्डुओं का भोग लगाएं.
5. गणेश चालीसा, संकटनाशन गणेश स्तोत्र और संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करें.
6. घी के दीपक से गणेश जी की विधिपूर्वक आरती करें.
7. रात में चंद्रोदय के समय चंद्र दर्शन करें और चंद्रमा की पूजा करें.
8. एक लोटे में जल, दूध, शक्कर, सफेद फूल और अक्षत् डालकर चंद्रमा को अर्घ्य दें.
9. पूजा की समाप्ति के बाद पारण करके व्रत को पूरा करें.