RSS की मांग, संविधान की प्रस्तावना से हटे ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द
भारतीय संविधान में देश को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के साथ ही एक संप्रभु, समाजवादी एवं धर्मनिरपेक्ष के तौर पर संदर्भित किया गया है।
हालांकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक प्रमुख नेता एवं प्रजन प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक नंदकुमार चाहते हैं कि भारत ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द के समावेश पर पुनर्विचार करे। उनका कहना है कि धर्मनिरपेक्षता का दावा एक पश्चिमी अवधारणा है।
एक समाचार एजेंसी का दिए गए इंटरव्यू में नंदकुमार ने कहा, ‘धर्मनिरपेक्षता एक पश्चिमी और सेमिटिक विचार है। यह पश्चिम से आई है। यह वास्तव में पोप के प्रभुत्व के खिलाफ है।’
उन्होंने तर्क दिया कि भारत को धर्मनिरपेक्षता की जरूरत नहीं है क्योंकि राष्ट्र धर्मनिरपेक्षता के रास्ते से परे है क्योंकि यह सार्वभौमिक स्वीकृति को सहिष्णुता की पश्चिमी अवधारणा के खिलाफ मानता है।
नंदकुमार ने कथित तौर पर ‘पश्चिम बंगाल के इस्लामीकरण’ के लिए अपनी पुस्तक में ममता बनर्जी सरकार पर भी हमला किया। उन्होंने कहा कि हमें यह देखना होगा कि क्या हमें धर्मनिरपेक्ष होने का बोर्ड लगाने की जरूरत है? क्या हमें अपने व्यवहार, कार्य और भूमिका के माध्यम से इसे साबित करना चाहिए?
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