बनारस में होती है राक्षसी की पूजा, क्या है मान्यता

बनारस में 33 कोटि देवी देवताओं के मंदिर हैं

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बनारस में होती है राक्षसी की पूजा, क्या है मान्यता

बाबा विश्वनाथ के शहर बनारस को मंदिरों का शहर कहा जाता है. इस शहर में 33 कोटि देवी देवताओं के मंदिर हैं. देवी देवताओं के इन मंदिरों के बीच एक राक्षसी का मंदिर भी मौजूद है जहां उसकी पूजा होती है. ये बातें सुनने में थोड़ा अजीब जरूर है लेकिन सच है. धर्म नगरी काशी में ऐसा होता है. यह बिल्कुल सच है. खास बात यह है कि यह राक्षसी एक दिन के लिए देवी भी बन जाती है. इससे जुड़ी प्राचीन कथा भी है. मान्यता है कि इस मंदिर का कनेक्शन त्रेतायुग से जुड़ा हुआ है.

क्या है इस देवी कि कहानी

दरसअल, त्रेतायुग में भगवान राम के वनवास के बाद रावण ने जब माता सीता का हरण किया. जिसके बाद रावण ने उन्हें अशोक वाटिका में रखा. इस दौरान उनके देखरेख की जिम्मेदारी राक्षसी त्रिजटा को दी. त्रिजटा माता सीता की देखभाल बेटी की तरह करती थी. रावण के वध के बाद जब माता सीता प्रभु श्री राम के साथ जाने लगी, तो त्रिजटा ने उनसे साथ चलने की इच्छा जताई. लेकिन माता सीता ने उन्हें काशी में विराजमान होने की बात कही और एक दिन के लिए देवी होने का वरदान दिया.

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कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन बन जाती है देवी

काशी में बाबा विश्वनाथ के मंदिर के करीब साक्षी विनायक मन्दिर में त्रिजटा देवी विराजमान हैं. मंदिर के पुजारी के अनुसार हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन राक्षसी त्रिजटा देवी बन जाती है और महिलाएं उनकी पूजा करती हैं. इनके दर्शन के लिए बहुत से दर्शनार्थी पहुंचते हैं और इनकी पूजा करते हैं. साथ ही आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. धार्मिक मान्यता है कि जो भी इस दिन त्रिजटा की पूजा करता है और उन्हें बैंगन, मूली का भोग लगाता है, त्रिजटा माता सीता की तरह हमेशा उनकी रक्षा करती है.

बिना पूजा कार्तिक स्नान अधूरा

काशी में भगवान विष्णु के प्रिय माह कार्तिक में पूरे एक महीने गंगा स्नान की परंपरा है. धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक स्नान के पूर्णिमा तिथि के बाद जो भी त्रिजटा की पूजा नहीं करता है उसकी ये पूजा अधूरी मानी जाती है. यही वजह है कि कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन यहां भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है.

Written By: Harsh Srivastava

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