कर्नाटक चुनाव : कांग्रेस की राह पर बीजेपी

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कर्नाटक के उत्तर-पूर्वी हिस्से में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की चुनाव प्रचार के लिए शैली कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लगभग समान है। हालांकि, अमित शाह इस क्षेत्र में मुस्लिमों से जुड़े स्थानों पर जाने से बच रहे हैं। बीजेपी अध्यक्ष अभी कर्नाटक के तीन दिन के दौरे पर हैं। हाल ही में राहुल कलबुर्गी में शरणाबसप्पा मंदिर और ख्वाजा बंदे नवाज दरगाह गए थे, लेकिन शाह केवल शरणाबसप्पा मंदिर गए। राहुल अपने चार दिन के दौरे में धर्मनिरपेक्ष नजरिए के लिए पहचाने जाने वाले मंदिरों और धार्मिक संस्थानों में गए थे, लेकिन शाह ने कुछ अलग रास्ता पकड़ा। वे बीदर जिले में मशहूर गुरुद्वारा और रेणुकल्गी में बौद्ध विहार पहुंचे थे। इससे पता चलता है कि बीजेपी की नजर दूसरे अल्पसंख्यकों पर है।

बीजेपी और कांग्रेस में सीधा मुकाबला

अमित शाह बीजेपी के बड़े समर्थक माने जाने वाले लिंगायत समुदाय के संत बासवन्ना (बासवेश्वरा) की 12वीं शताब्दी की गद्दी अनुभव मंतापा पर सोमवार को जाएंगे। राहुल हाल ही में इस स्थान पर गए थे और उन्हें वहां बासवा विचारधारा से संबंधित साहित्य भी दिया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में इस स्थान का जिक्र भी किया है।

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इस क्षेत्र के एक वरिष्ठ नेता ने ईटी को बताया, ‘बीजेपी और कांग्रेस में सीधा मुकाबला लग रहा है। हालांकि, राहुल के रास्ते पर शाह का चलना हैरान करने वाला है।’ शाह ने रविवार को हुम्नाबाद में किसानों के साथ मीटिंग की। किसानों ने उन्हें बताया कि केंद्र सरकार को उनका कर्ज माफ करना चाहिए। इस मामले में गेंद राज्य सरकार के पाले में नहीं डालनी चाहिए।

किसानों की नाराजगी

बीदर में किसान नेता मलिकार्जुनस्वामी ने ईटी को बताया, ‘उन्होंने हमसे झूठ बोला और कहा कि केंद्र ने उद्योगपतियों का कर्ज माफ नहीं किया है, लेकिन हम सच जानते हैं। हमने उनसे कहा कि हम वादे नहीं चाहते, हम ऐक्शन चाहते हैं।’ उन्होंने बताया कि मीटिंग में लगभग 2,000 किसान मौजूद थे। उनमें से 12 नेताओं ने अमित शाह से बात की। शाह को बताया गया कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना असफल हो गई है, क्योंकि उसका नियंत्रण निजी बीमा कंपनियों के पास था।

भलकी से किसान नेता सिदरामप्पा अंदुरे ने कहा, ‘हमने राहुल गांधी को भी बताया था कि सरकार को किसानों की भलाई के लिए प्रतिबद्ध होने और कर्ज माफ करने की जरूरत है। हमने उन्हें बताया कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया किसानों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रहे और अगर फसलों के लिए अच्छे दाम मिलते हैं। स्वामीनाथन कमिटी की रिपोर्ट को लागू किया जाता है तो किसानों की समस्याएं कम हो जाएंगी और वे आत्महत्या के लिए मजबूर नहीं होंगे।’

(साभार- नवभारत टाइम्स)

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