वीरभद्र मिश्र की पुण्यतिथि : वह वीर थे और भद्र भी!
80 के दशक में दंगों के दौरान प्रो. मिश्र खुद मिश्रित आबादी वाले इलाकों में जाकर लोगों के बीच संदेश देते
Professor Virbhadra Mishra की पुण्यतिथि:
प्रो. मिश्र 1965 के आसपास गंगा को लेकर तब अचानक विचलित हुए जब अस्सी नाला (प्राचीन नदी का रूप) से गिरनेवाले पानी से मछलियां मरने लगीं। यह लगभग वही समय था जब वाराणसी में डीजल रेल इंजन कारखाना की स्थापना हुई। कारखाने का कचरा गंगा में गिरता था। मिश्रजी ने इस स्थिति के खिलाफ तब के प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख लिखे और आगाह किया। फिर पम्फलेट के जरिए जनजागरूकता का प्रयास हुआ। गंगा के प्रति लोगों में गहरी आस्था और विश्वास होने के कारण इन बातों को तब ज्यादा तवज्जो नहीं मिली लेकिन प्रो. मिश्र कहां मानने वाले थे। इसी बीच एक अमेरिकी शोधार्थी लिंडा हैस से मुलाकात हुई। लिंडा कबीरदास पर रिसर्च कर रही थीं। उन्होंने पम्फलेट का अंग्रेजी अनुवाद किया। इसका असर यह हुआ कि कैलीफोर्निया के तत्कालीन गवर्नर जैली ब्राउन के प्रतिनिधियों ने 1982 मे प्रो. मिश्र से संपर्क किया और फाउंडेशन बनाने की प्रेरणा दी। यही नहीं उन्होंने मिश्रजी को कैलीफोर्निया आमंत्रित भी किया। इसके बाद प्रो. मिश्र पहली बार हवाई जहाज पर सवार होकर नौ सप्ताह के लिए अमेरिका की यात्रा पर गए। इसी क्रम में संकटमोचन फाउंडेशन का गठन और स्वच्छ गंगा अभियान की आधारशिला रखी गई। चंद लोगों के साथ शुरू किए गए इस अभियान ने बाद में व्यापक रूप ले लिया।
इंदिराजी से भेंट, गंगा कार्य योजना की तकनीक पर एतराज:
प्रो. मिश्र ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंटकर ज्ञापन दिया। इंदिराजी ने तब गंगा की स्थिति पर चिंता जताई थी। बाद में राजीव गांधी के कार्यकाल में 1984 में केंद्रीय गंगा प्राधिकरण बना और फिर गंगा कार्ययोजना 1985 में लांच हुई। बिजलीचालित योजना के शुरुआती परीक्षण के बाद से उसकी व्यावहारिकता को लेकर प्रो. मिश्र आवाज उठाते रहे। तभी उन्होंने कहा था कि इस योजना से गंगा को कोई लाभ नहीं होगा। उनकी इस आवाज को तब ‘खलनायक की आवाज’ मानकर सरकारी मशीनरी नजरंदाज कर गई। आज की स्थिति देखने के बाद तो सबको भरोसा हो ही जाना चाहिए कि वह आवाज खलनायक की नहीं गंगासेवी, महान पर्यावरणविद् और दूरदृष्टिवाले नायक की थी।
पांड पद्धति से मनमोहन सिंह भी थे सहमतः
प्रो. मिश्र ने साफ कहा था कि नान इलेक्ट्रिकल इंटरसेप्शन यूजिंग ग्रेविटी फोर्स के जरिए ही गंगा में गिरने वाले नालों को रोककर नेचुरल सिस्टम (पांड पद्धति) से उसके पानी को साफ किया जा सकता है। यह प्रणाली कैलीफोर्निया में सफल भी रही है। वर्ष 2007 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बुलावे पर वह नई दिल्ली गए और अपना प्रजेंटेशन दिया। प्रधानमंत्री सहमत हुए और आखिरकार सरकार को सिद्धांत रूप में इस बात को मानना पड़ा कि प्रो. मिश्र के सुझाव में दम है। इसी कड़ी में सरकार की ओर से प्रो. मिश्र की टीम को पायलट प्रोजक्ट बनाने को मंजूरी मिली लेकिन यहां भी सरकारी मशीनरी ने खेल शुरू कर दिया और अडंगेबाजी का दौर चल पड़ा। अब भी अस्सी से वरुणा संगम के बीच कई जगह से गंदा पानी गंगा में गिर रहा है। जलनिगम के अधिकारी पायलट प्रोजेक्ट को महंगा बताकर उसे बाधित करते रहे लेकिन प्रो. मिश्र नाउम्मीद नहीं हुए, आजीवन डटे रहे।
हीरो आफ द प्लेनेट:
प्रो. मिश्र को 1992 में युनाइटेड नेशन्स इनवायरमेंट प्रोग्राम के अंतर्गत ग्लोबल 500 रोल आफ आनर मिला था। 1999 में टाइम मैगजीन ने गंगा के संबंध में किए गए सद्प्रयासों के लिए उन्हें ‘हीरो आफ द प्लेनेट’ के खिताब से नवाजा।
अखाड़ा तुलसीदास की बढ़ती परंपरा:
प्रो. मिश्र ने अखाड़ा तुलसीदास की परंपरा का आजीवन निर्वाह किया। अब उस परंपरा को उनके ज्येष्ठ पुत्र और वर्तमान महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र आगे बढ़ा रहे हैं। यह खास संयोग है कि पिता की तरह ही प्रो. विश्वम्भरनाथ आईआईटी बीएचयू में प्रोफेसर हैं और पखावज के विशेष अनुरागी और साधक। पिता की तरह ही गंगा स्नान और संध्या वंदन की निरंतरता बनाए हुए है। गंगा की चिंता और जल की निर्मलता के लिए अभियान जारी है। यह भी खास कि वह अपनी बात बिना किसी लागलपेट के दमदारी से रखने में नहीं हिचकते।
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