लोग छतों पर पत्थर, पेट्रोल और तेजाब क्यों जमा करते हैं ?

धर्म की अफीम चाटने की जगह, नफरत फैलाने की जगह, प्यार मोहब्बत की बात करिए

0

[bs-quote quote=”यह लेख वरिष्ठ पत्रकार समरेंद्र सिंह की फेसबुक वॉल से लिया गया है। यह लेखक के निजी विचार हैं।” style=”style-13″ align=”left” author_name=”समरेंद्र सिंह” author_job=”वरिष्ठ पत्रकार” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/02/FB_IMG_1582899898671.jpg” author_link=” https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=662651387879001&id=100024024375542″][/bs-quote]

मैं आपको एक किस्सा सुनाता हूं। उससे शायद आपको पता चले कि लोग छतों पर पत्थर, पेट्रोल और तेजाब क्यों जमा करते हैं। शायद आपकी समझ में आए कि इस पत्थर, पेट्रोल और तेजाब का स्रोत क्या है? ये बात 1984 की है। जब मैंने यादों को सहेजना शुरू किया था। और उस शुरुआती प्रक्रिया की एक खौफनाक याद आज भी जिंदा है। ये बात इंदिरा गांधी की हत्या के तुरंत बाद की है। मैं प्रत्यक्ष तौर पर भुक्तभोगी नहीं हूं, लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित जरूर हूं।

उन दिनों इंदिरा गांधी की हत्या का बदला लेने के लिए दिल्ली और देश में सिखों का नरसंहार(delhi violence) हो रहा था। दंगाई और हत्यारे सिखों को ढूंढ ढूंढ कर कत्ल कर रहे थे। मेरा परिवार उन दिनों पुष्प विहार में रहता था और हमारे पड़ोस में एक सिख परिवार था। मेरे और मेरे भाई के जैसे उनके दो छोटे बच्चे थे। मां-बाप खुद से ज्यादा उन बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। मां-बाप ऐसे ही होते हैं।
हमारी कॉलोनी के संजीदा लोगों ने उन्हें हौसला दिया। युवाओं की कुछ टोलियां तैयार की गई। वो टोलियां कॉलोनी में पहरा देती थीं। बालकनी और छत पर पत्थर, पेट्रोल और किरासन तेल जमा किया गया। हमला होने की सूरत में बचाव के लिए। और ये फैसला लिया गया कि माहौल ठीक होने तक सरदार जी के घर का कोई आदमी बाहर नहीं निकलेगा। कुछ दिन बच्चे हमारे यहां और मां-बाप हमारे सामने पॉल अंकल के यहां रहे। हालात बेहतर हुए तो किसी सुरक्षित जगह पर चले गए।
हत्यारे उन्हें ढूंढते हुए हमारी कॉलोनी में दो-तीन बार आए, गाड़ियों में भर-भर कर आए। लेकिन कॉलोनी के लोगों ने हर बार एक ही जवाब दिया कि सरदार जी परिवार समेत यहां से जा चुके हैं। इस इरादे और हौसले के साथ, संगठित होकर जवाब दिया कि दंगाइयों की हिम्मत आगे बढ़ने की नहीं हुई।
delhi violence
दरअसल, जब तनाव बढ़ता है तो लोग अपने बचाव के साधन जुटाते हैं। घर की छतों पर कोई सामान किसी दूसरी कॉलोनी पर हमले के लिए नहीं जुटाता। बचाव में जुटाता है। तब जुटाता है जब शासन पर से भरोसा उठ जाता है। अभी भी समाज के एक बड़े तबके का एक दूसरे पर भरोसा बना हुआ है, जब वो भी टूट जाएगा तो लोग पत्थर की जगह बम जमा करने लगेंगे। गोली और बंदूकें जमा करने लगेंगे। वो स्थित कितनी भयावह होगी उसका अंदाजा लगाइए।
इसलिए हो सके तो होश में आइए। धर्म की अफीम चाटने की जगह, नफरत फैलाने की जगह, प्यार मोहब्बत की बात करिए। हैवान बनने की जगह, इंसान बने रहिए।
Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More