विधानसभा उपचुनाव पर फोकस करने में जुटे राजनीतिक दल

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यूपी: प्रदेश की 10 सीटों पर विधानसभा का उपचुनाव होना है. उपचुनाव के लिए अभी कार्यक्रम जारी होना बाकी है लेकिन बावजूद इसके सभी राजनैतिक दलों ने तैयारी शुरू कर दी है. उम्मीदवार चयन को लेकर मंथन भी शुरू हो चुका है. बता दें कि इंडिया गठबंधन इस उपचुनाव में अपना मोमेंटम जारी रखना चाहेगी जबकि BJP इन सभी सीटों को जीतना चाहेगी. खास बात यह है कि इस बार मुकाबले में बहुजन समाज पार्टी भी शामिल है.

उपचुनाव से परहेज करती है BSP …

बता दें कि, इसे पहले उपचुनाव से BSP परहेज करती रही है लेकिन इस बार उपचुनाव में उम्मीदवार की तलाश कर रही है. इसके लिए पार्टी ने जिला अध्यक्षों से उम्मीदवारों के नाम मांगे है. इसको लेकर BSP नेतृत्व ने तैयारी भी शुरू कर दी है. कहा जा रहा है कि जिला अध्यक्षों की रिपोर्ट के अनुसार उम्मीदवार बनाए जा सकते है.

BSP की चर्चा बेवजह नहीं…

गौरतलब है कि इस बार उपचुनाव में बसपा के चुनाव लड़ने की चर्चा है जो कि बेवजह नहीं है. हर बार BSP उपचुनाव लड़ने से परहेज करती रही है लेकिन इस बार उपचुनाव लड़ना जरूरी है या मजबूरी?. यह उपचुनाव बसपा के लिए जरूरी और मजबूरी इसलिए है क्योंकि पिछले कई चुनावों से BSP का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा है. कभी प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार चला चुकी बसपा अब एक सीट में सिमट कर रह गई है.

लोकसभा चुनाव में नहीं खुला खाता…

लोकसभा चुनावों की बात करें तो तीन में से दो चुनावों में BSP का खाता तक नहीं खुला है. साल 2014 में बसपा के एक भीउम्मीद्वार विजय नहीं हुए थे तो साल 2024 में भी पार्टी के एक भी सांसद नहीं है जबकि उत्तर प्रदेश में 2029 में सपा के साथ गठबंधन कर बसपा ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 10 सीटें अपने नाम की थी. जानकारों का कहना है कि बसपा ख़राब से ख़राब प्रदर्शन पर भी करीब 16 फीसद वोट बैंक अपने पास रखती है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ और पार्टी का वोट प्रतिशत कांग्रेस से भी नीचे चला गया है.

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BSP को चंद्रशेखर से मिल रही टक्‍कर

दलित राजनीति में उभार के बाद बसपा को आज़ाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर रावण कड़े टक्कर दे रहे हैं जबकि लोकसभा चुनाव में बसपा बिना खाता खोले ही सिमट गई जबकि आज़ाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर नगीना लोकसभा सीट से जीतकर संसद में पहुँच गए. चंद्रशेखर की पार्टी अब विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव में भी उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है. ऐसे में मायावती और बसपा को यह आशंका भी सता रही है कि कहीं हाथी के सिंबल पर उम्मीदवार की नामौजूदगी से एएसपी को दलित समाज में पैठ मजबूत करने का मौका न मिल जाए. बसपा के सामने दलित वोट बेस बचाने की चुनौती है.

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