विवेक तिवारी शूटआउट : संदेह के घेरे में पुलिस की थ्योरी

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बीते शनिवार की रात एप्पल के एरिया सेल्स मैनेजर को गोली मारने वाले कांस्टेबल प्रशांत चौधरी को बचाने के लिए पुलिस झूठ पर झूठ बोलती हुई चली जा रही है। शनिवार की सुबह लखनऊ एसएसपी कलानिधि ने प्रेस कॉफ्रेंस में बताया था कि आरोपी को जेल भेज दिया गया जबकि वो हर जगह मीडिया मे बाइट दे रहा था। जेल भेजने की बात सिर्फ एसएसपी ही नहीं बल्कि खुद डीजीपी भी कह रहे थे जो बाद में झूठी निकली।

आरोपी को बचाने की पूरी कोशिश

पुलिस दावा कर रही थी कि विवेक (vivek )तिवारी ने तीन बार सिपाहियों को रौंदने की कोशिश की और सिपाही ने आत्मरक्षा में गोली चलाई। अग पुलिस की ये बात सही है तो जिस जगह पर बाइक सवार सिपाहियों को रौंदने की बात की जा रही है वहां से करीब 400 मीटर की दूरी पर क्यों विवेक की एसयूवी दुर्घटनाग्रस्त हुई। क्या हादसे के बाद दोनों सिपाही पैदल एसयूवी से तेज दौड़ रहे थे जो एसयूवी से आगे निकल कर सामने से गोली मारी? अगर नहीं, तो क्या गोली सिर को पार करने के बाद कोई चार सौ मीटर तक गाड़ी चला सकता है?

चोट लगने के बाद भी घूम-घूम कर दे रहा था बाइट

अगर एसयूवी ने तीन बार सिपाहियों को रौंदा तो उनको चोट क्यों नहीं आई जबकि दो घंटे के बाद आरोपी प्रशांत घूम-घूम कर मीडिया को बाइट दे रहा था और अफसरों को पूरी घटना बता रहा था?

सिर में गोली लगने के बाद कैसे गई 400 मीटर एसयूवी

आरोपी सिपाहियों के मुताबिक, मकदूमपुर पुलिस चौकी के पास एसयूवी सवार विवेक ने उनको रौंदा और उनकी बाइक एसयूवी में फंस गई उसके बाद वो गिर गया और जब उठने की कोशिश की तो फिर से दो बार रौंदने की कोशिश की। जिसके बाद उसने पिस्टल निकालकर गोली मार दी। अब अगर सिपाही की बात में सत्यता है तो फिर घटनास्थल को देखकर साफ जाहिर होता है कि जहां रौंदा गया वहां से एसयूवी के खड़े होने के बीच दो खतरनाक मोड़ है ऐसे में सिर में गोली लगने के बाद कैसे विवेक ने बिना नियंत्रण खोए चार सौ मीटर चले गए इतने खतरनाक मोड़ को पार करते हुए।

आठ घंटे बाद क्यों कराया गया इलाज ?

अगर सिपाही घायल थे तो एसएसपी कलानिधि नैथानी को क्यों आठ घंटे बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की याद आई? सुबह 9 बजे अफसरों को इतनी देर बाद क्यों याद आया कि सिपाहियों को विवेक ने एसयूवी से रौंदा था और वे गंभीर रूप से घायल हैं। वहीं जब लोहिया अस्पताल में भर्ती कराने के लिए ले जाया गया तो दो सिपाही उसे गोद में लेकर गए और दो घंटे में ही वो ठीक होकर अपने पैरों पर चलकर इधर-उधर घूमने लगा।

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