जंगल लूटने और बचाने वालों के बीच जंग है ‘सुकमा हमला’

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छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बीच वर्षो तक काम कर चुके सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार का मानना है कि छत्तीसगढ़ में हिंसा की मूल वजह संसाधनों (जंगल) को लूटने और बचाने की जंग है। इस इलाके में शांति तभी हो सकती है जब वहां के लोगों को न्याय मिले, अत्याचार रुके, भरोसा पैदा हो और गांव-गांव में जिंदगियों पर पहरा दे रहे सुरक्षा बलों को हटाया जाए।

छत्तीसगढ़ के सुकमा में सोमवार को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के दल पर हुए नक्सली हमले के बाद उनसे पूछा कि नक्सलियों ने एक बार फिर हमला बोला है, क्या वजह लगती है आपको, उनका जवाब था, “हमले की क्या वजह है, ये तो नक्सली जानें, लेकिन हम पूरी हिंसा को एक समग्र तस्वीर के रूप में देखना चाहते हैं, न कि एक घटना पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करना। हम समग्र हिंसा के लिए आर्थिक और सरकार के सिस्टम को जिम्मेदार मानते हैं।”

उन्होंने कहा, “यह लड़ाई जंगल को बचाने और लूटने की है, जो शहर में रहते हैं उन्हें अय्याशी वाला जीवन चाहिए और संसाधन है नहीं, संसाधन गांव व जंगल में हैं और गांव वाला व जंगल वाला उसे देना नहीं चाहता, उसको हम ताकत के दम पर छीनना चाहते हैं, इसके लिए हिंसा (लूटने वाला) शुरू करता है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ में संसाधन लूटने के लिए 70 हजार सुरक्षा जवान तैनात किए गए हैं। वे आदिवासियों को सुरक्षा देने तो गए नहीं है, वे कब्जा करने गए है पूंजीपति, अमीर लोगों के लिए।”

हिमांशु कुमार ने वर्ष 1992 से 2010 तक दंतेवाड़ा के कमलनार में वनवासी चेतना आश्रम का संचालन किया। इस आश्रम में महिलाओं, युवकों के लिए काम होता था, और उनके साथ मिलकर सरकार की योजनाओं में सहयोग किया जाता था। सरकार की तमाम एडवायजरी समितियों में भी हिमांशु सदस्य थे और लोक अदालत व उपभोक्ता फोरम के भी सदस्य रहे।

उन्होंने बताया, “जब आदिवासियों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई तो सरकार हमारी दुश्मन हो गई। आश्रम पर बुलडोजर चला दिया गया, साथियों को जेल में डाल दिया गया, मजबूरन मुझे छत्तीसगढ़ छोड़ना पड़ा। वर्ष 2010 के बाद वहां नहीं गया।”

छत्तीसगढ़ में होने वाली हिंसक घटनाओं के सवाल पर हिमांशु कहते हैं, “वहां का आदमी हिंसक नहीं हुआ है, उन्हें बेतहाशा प्रताड़ित किया जाता है, सुरक्षा बल के जवान दुष्कर्म करते है, गांव-गांव में दुष्कर्म पीड़ित महिलाएं हैं, हत्या कर दी जाती है, गांव के गांव जला दिए जाते हैं, ऐसे हालात में कोई आकर उनसे कहता है कि आओ दुष्कर्म करने वालों को मारने चलो, तो वे बहुत आराम से उनके साथ चले जाएंगे। कोई भी पीड़ित उनके साथ चल देगा, इसलिए यह कहना कि छत्तीसगढ़ का आदिवासी हिंसक हो गया है, ठीक नहीं।”

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए हिमांशु कहते हैं कि, जब आदिवासियों को न्याय मिलेगा नहीं, सम्मान से जी नहीं पाएंगे, उनके पास जीने का कोई रास्ता नहीं बचेगा तो लोग क्या करेंगे।

उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को थानों में प्रकरण दर्ज करने, गांव बसाने, मुआवजा देने के निर्देश दिए थे, मगर सरकार ने अमल नहीं किया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी माना है कि सुरक्षा बलों ने 16 दुष्कर्म किए।

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हिमांशु का कहना है कि उस इलाके में शांति संभव है, उसके लिए सरकार को पहल करनी होगी। जो अत्याचार हुए हैं उनकी जांच को सरकार तैयार हो जाए, न्याय की स्थापना हो, बदमाशी करने वाले पुलिस वालों को जेल में डाला जाए, गैर जरूरी सुरक्षा बल को गांव से बाहर बुलाया जाए।

लिविंग ऑफ ऑर्ट के प्रमुख श्रीश्री रविशंकर ने पिछले दिनों नक्सलियों और सरकार के बीच मध्यस्थता की बात कही थी। इस पर हिमांशु का कहना, “रविशंकर तो प्रचार के भूखे हैं, वे गंभीर नहीं है और जिस इलाके की यह समस्या है उसकी उन्हें समझ भी नहीं है। उन्होंने कभी भी वहां के अत्याचार और आदिवासियों के पक्ष में बोला तक नहीं है। वे अमीरों के गुरु है और सरकारों के मुख्यमंत्रियों के दोस्त हैं। अगर कोई मध्यस्थता करा सकता है तो वे हैं विनायक सेन, सोनी सोरी, नंदिनी सुंदर, प्रो हरगोपाल और सुधा भारद्वाज जिन्होंने आदिवासियों के बीच काम किया है।”

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