मीराबाई चानू : बचपन में लकड़ियां बीनने वाली लड़की, टोक्यो ओलंपिक से ले आई ‘चांदी’
मणिपुर के दूरदराज के गांव नोंगपेक काकचिंग के घरों में चूल्हा तभी जलता है जब घर के लोग जलावन की लकड़ी सिर पर ढोकर लाते हैं। 8 अगस्त 1994 को इसी गांव में जन्म हुआ था उस मीराबाई चानू का जिसने टोक्यो ओलंपिक के पहले दिन ही देश को सिल्वर मेडल दिलाकर पूरी दुनिया में उसका झंड बुलंद किया।
बचपन से उठाती थी भारी बोझ-
मीराबाई चानू का जीवन संघर्ष से भरा रहा। बचपन पहाड़ से जलावन की लकड़ियां बीनते बीता। वह छोटी उम्र से ही भारी वजन उठाती थी। इतनी मेहनती थी कि जंगल से लकड़ी लाने वाले सारे बच्चों से ज्यादा वजन उसके सिर पर होता था। खेल में उसकी काफी रूचि थी।
बचपन में तो तीरंदाज बनना चाहती थी लेकिन कक्षा 8 तक पहुंचते-पहुंचते उसकी सोच बदल गयी और उसने वेटलिफ्टर बनना तय किया। उसने अपनी किताब में भारत की मशहूर वेटलिफ्टर कुंजूरानी के बारे में पढ़ा तो उनसे काफी प्रभावित हुई।
लगातार जारी रहा बेहतरीन प्रदर्शन-
टोक्यो ओलंपिक में मेडल हासिल करने के बाद मीराबाई चानू ओलंपिक में मेडल जीतने वालीं भारत की दूसरी वेटलिफ्टर बन गई हैं। इसके पहले कर्णम मलेश्वरी ने सिडनी ओलंपिक में ब्रांज मेडल हासिल किया था। मीराबाई चानू 2021 ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने वाली इकलौती भारतीय वेटलिफ्टर हैं। रियो ओलंपिक की नाकामी के बाद मीराबाई चानू ने 2017 के विश्व भारोत्तोलन चैंपियनशिप में शानदार प्रदर्शन किया।
अनाहेम में हुए उस चैम्पिनशिप में उन्होंने ने कुल 194 (स्नैच में 85 और क्लीन एंड जर्क में 107) किलो वजन उठाया था, जो कंपटीशन रिकॉर्ड था। 2018 में एक बार फिर कॉमनवेल्थ गेम्स में मीराबाई चानू ने गोल्ड मेडल जीतकर अपनी श्रेष्ठता साबित की। 2014 में ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में 48 किलो भारवर्ग में उन्होंने भारत के लिए सिल्वर मेडल जीता।
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