घर लौटने की जंग : 13 साल की उम्र और 1,200 किलोमीटर का सफर
कोरोना के संक्रमण काल में सरकार ने भले ही प्रवासी मजदूरों के लिए विशेष ट्रेनों की व्यवस्था कर दी हो, लेकिन इस ‘संक्रमण काल’ में प्रवासी मजदूरों की परेशानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही।
देश की राजधानी दिल्ली हो या व्यवसयिक राजधानी मुंबई हो, राजस्थान हो या पंजाब रोजगार करने गए प्रवासी मजदूरों के वापस अपने गांव लौटने का सिलसिला जारी है। अन्य राज्यों से कोई पैदल, तो कोई साइकिल तो कोई ठेले से घर लौटने को मजबूर है।
कुछ ऐसे ही हालात है विनीत के। गुड़गांव में रहने वाले 13 साल का विनीत का पूरा परिवार लॉकडाउन में बेरोजगार हो गया। सबके सामने 2 जून की रोटी का सवाल खड़ा हो गया। हालातों की मार से बचने के लिए अपने घर बिहार के नालंदा जिले में जाने की ठान ली।
आगरा पहुंचने में लगे 4 दिन-
घर का सामान उसी रिक्शे पर रख लिया जिससे कभी रोजी रोटी कमाता था। कबाड़ी का काम करके। रविवार की रात पूरा परिवार रिक्शा चलाते चलाते आगरा पहुंच गया। गहरे सन्नाटे में आधी रात को जब लोग घरों में सो रहे थे तब विनीत रिक्शे के पेडल को धक्के मारता हुआ सैकड़ों किलोमीटर पार करके नालंदा पहुंचने के लिए आगे बढ़ रहा था।
विनीत के साथ उसके पिता रणधीर भी अपने रिक्शे पर पत्नी और बच्चों को गृहस्थी के सामान के साथ बैठा कर पीछे पीछे नालंदा की तरफ बढ़ रहे हैं। गुड़गांव से आगरा पहुंचने में 4 दिन लग गए हैं। विनीत और रणधीर का परिवार अकेले नालंदा की तरफ नहीं बढ़ रहा है।
देर रात गुड़गांव से 1 दर्जन से अधिक परिवार रिक्शों पर अपनी गृहस्थी का सामान लादे नालंदा की तरफ बढ़ते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर दो पर मिले। रिक्शा में सवार ये परिवार 4 दिन से यात्रा कर रहे हैं और आगरा आ पहुंचे। रिक्शों पर सामान ढोने के बाद इनकी रोजी रोटी चलती थी।
काम धंधा हुआ चौपट-
लॉकडाउन वह काम धंधा चौपट हुआ। मजबूरी के नाम पर हथेली पर सन्नाटा आ गया। 2 महीने इंतजार करने के बाद जब कुछ नहीं दिखा तो सबने रिक्शों पर गृहस्थी समेट कर नालंदा जिले अपने घर जाने की ठान ली।
अब यह घरों के लिए निकल चुके हैं। पूछने पर कहते हैं घर पहुंच ही जाएंगे। जहां थक जाते हैं सो जाते हैं। जागते हैं रिक्शों के पेडल मारकर आगे बढ़ने की मशक्कत शुरू हो जाती है। घर पहुंचने के लिए एक तरफ रिक्शा पर सवार यह परिवार जा रहे हैं तो दूसरी तरफ ट्रकों में सवार होकर जाने वालों को पुलिस ने उतार लिया और आगरा के आईएसबीटी बस अड्डे पर तथा एक्सप्रेस वे के नीचे इकट्ठा कर लिया।
हजारों लोग इकट्ठा हो गए सरकारी और प्राइवेट बसें लगाई गई लोगों को घर भेजने के लिए। लेकिन घर पहुंचने वालों की संख्या और बसों की गिनती ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है। बस अड्डे पर सभी को खाना खिलाकर सुबह 5:00 बजे बस से जाने के आश्वासन के साथ सोने के लिए कह दिया गया है।
बसों में हाल बेहाल-
अब सैकड़ों लोग जमीन पर चादर बिछाकर सो रहे हैं। बहुत से ऐसे भी हैं जिन्हें नींद नहीं आ रही उनके बच्चे जाग रहे हैं। 55 दिन हो गए यात्रा करते हुए परेशान हैं। कोई गुजरात से आ रहा है। कोई महाराष्ट्र से आ रहा है। ट्रकों में सवार होकर अपने घर जा रहे थे और पुलिस ने आगरा की सीमा पर रोक लिया।
पर अब यहां पर न सोशल डिस्टेंसिंग है ना लॅाकडाउन के नियमों से सरोकार, बसों में हाल बेहाल है, एक बस आती है और घर पहुंचने वाले दर्जनों लोग उसमें घुस जाते हैं, कोई किसी की नहीं सुन रहा, सबको घर जाने की पड़ी है।
न जाने कितने दिनों से परेशानी उठा रहे हैं यह लोग और ना जाने कितने दिन और परेशानी उठाएंगे। इन सबके लिए उत्तर प्रदेश सरकार के राज्यमंत्री चौधरी उदय भान सिंह ने कहा कि रोकने पर रुक नहीं रहे हैं चोर डकैतों की तरफ भाग रहे हैं, जिनकी मर्जी होती है रुक जाती हैं जिनकी होती है नहीं रुकते हैं।
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