भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता बीएस येदियुरप्पा ने सोमवार को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद से राज्य में नेतृत्व में बदलाव की सभी अटकलों पर विराम लग गया।
अपना इस्तीफा देने के बाद, बीएस येदियुरप्पा ने कहा, ‘इस्तीफा देने के लिए किसी ने मुझ पर दबाव नहीं डाला। ये मैंने खुद फैसला लिया ताकि सरकार के 2 साल पूरे होने के बाद कोई और मुख्यमंत्री का पद संभाल सके। मैं अगले चुनाव में भाजपा को सत्ता में वापस लाने के लिए काम करूंगा।’
पार्टी में ही उठ रहे थे विरोधी सुर
बीजेपी में रह-रहकर येदियुरप्पा के खिलाफ विरोध के सुर उठते रहे हैं और उन्हें हटाने की मांग भी होती रही है। येदियुरप्पा के कट्टर विरोधी बसनगौड़ा पाटिल यतनाल ने तो यह तक कह दिया कि अगर बीजेपी 2023 में सत्ता दोबारा पाना चाहती है तो येदियुरप्पा को हटाना पड़ेगा।
राज्य के पर्यटन मंत्री सीपी योगेश्वर और हुबली-धारवाड़ के विधायक अरविंद बेलाड ने भी सीएम के खिलाफ बात की थी।
येदियुरप्पा को पूर्व मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा के एक प्रकार के आंतरिक विद्रोह का भी सामना करना पड़ा। हाल ही में सदानंद गौड़ा को केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटा दिया गया और वे बेंगलुरु लौटें। उनके स्वागत के दौरान नारे लगे कि गौड़ा कर्नाटक के अगले मुख्यमंत्री होंगे।
बढ़ती उम्र
येदियुरप्पा की उम्र भी इस्तीफे की एक बड़ी वजह है। येदियुरप्पा 78 वर्ष के हैं, ऐसे में पार्टी किसी दूसरे व्यक्ति को कर्नाटक की कमान सौंपना चाहती है। बता दें कि कि येदियुरप्पा सरकार पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन सरकार को गिराने के बाद सत्ता में आई थी।
भ्रष्टाचार के आरोप
इसके अलावा, येदियुरप्पा पर आरोप है कि वह 24 एकड़ के सरकारी भूमि के अवैध आवंटन के मामले में शामिल थे। इस साल अप्रैल में, सुप्रीम कोर्ट ने ने बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ 10 साल पुराने अवैध भूमि घोटाले की सुनवाई करने से इनकार कर दिया था।
इस मामले को लेकर विपक्षी पार्टी कांग्रेस हमलावर थी और बीजेपी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही है। राज्य में कांग्रेस ये संदेश देने की कोशिश कर रही थी कि येदियुरप्पा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप है फिर भी बीजेपी चुप और पीएम मोदी चुप हैं।
शिक्षा की स्थिति-
शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है जिसे एक राज्य द्वारा देखा जाता है। कर्नाटक के शिक्षा मंत्री सुरेश कुमार ने स्वीकार किया था कि राज्य को इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि पिछली कांग्रेस सरकार के पारित होने के बावजूद राज्य स्कूल फीस को विनियमित करने में विफल क्यों रहा है।
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