इतनी जल्‍दी नहीं जाना था उस्‍ताद जी…

फेफडों की एक गंभीर बीमारी के चलते बेवक्‍त पर्दा कर लिया.

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उस्‍ताद जाकिर हुसैन जैसा शायद अब दूसरा कोई नहीं होगा.संगत वाद्य तबला को एक स्‍वतंत्र वाद्य के रूप में विश्‍व पटल पर स्‍थापित करने काश्रेय उन्‍हीं के हिस्‍से जाता है. जितने बेहतरीन तबला वादक उतने ही बेहतरीन आदमी उस्‍ताद जाकिर हुसैन जिसने अपने तबले की लय कभी टूटने नहीं दी पर उनकी सांसों की लय ने उन्‍हें जवाब दे‍दिया. फेफडों की एक गंभीर बीमारी के चलते बेवक्‍त ही उन्‍होंने हमसे पर्दा कर लिया.

तबले के दायें बायें पर थिरकने मचलने वाली उनकी उंगलियां हमेशा के लिए शांत हो गयी. अब उनमें कभी कोई कंपन नहीं होगी और न ही उन थाप से निर्जीव तबला सुर, ताल और लय की भाषा बोलेगा. अपने छोटे से अखबारी जीवन में मुझे नौकरी की जरुरतों को पूरा करने के क्रम में बहुत से नामचीन फनकारों से रूबरू होने का मौका मिला, पर जाकिर साहब से साक्षात मिलने की हसरत अधूरी ही रह गयी. जबकि सबसे अधिक मिलने की तमन्‍ना उन्‍हीं से थी.

अरे हुजूर वाह ताज बोलिए …

बचपन से ही टीवी पर ताजमहल चाय के विज्ञापन में उन्‍हें देखना मेरे लिए एक अलग ही रोमांच होता था. जैसे ही वो वाह उस्‍ताद वाह बोलते मैं एक तरह से झूम उठता. सम पर पहुंचते ही उनका अपने बालों का हल्‍का सा झटकने का अंदाज उनकी शख्‍सियत को और भी खास बना देता. मैं भी उनके जैसा तबला वादक बनना चाहता था और हर वो जगह जहां पीटने से हल्‍की आवाज हो मैं उसे तबला बना कर पीटने लगता था. तबला वादक तो नहीं बना हां टेबल वादक मैं खुद को जरूर समझता हूं.

इस टेबल वादन के चक्‍करमें मुझे अपने दादाजी से अक्‍सर डांट भी मिलती थी. खैर टेप रिकार्डर के जमाने से ही मेरे पास उस्‍ताद जाकिर हुसैन के कैसेट होते थे. संतूर के बादशाह पंडित शिवकुमार शर्मा के साथ उनकी जुगलबंदी मेरे पास कैसेट के रूप में थी. बाद में मोबाइल युगके आने के पर यू-ट्यूब पर उनकी जुगलबंदी को देख और सुन कर मैं आज भी एक दूसरीदुनिया की सैर को निकल पड़ता हूं.

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सामने बैठकर सुना जरूर था

मैंने बताया कि मेरा उस्‍ताद जी से मिलना नहीं हो पाया लेकिन मैंने उन्‍हें सामने दर्शक दीर्घा में बैठ कर सुना जरूर था. अस्‍सी घाट पर कार्यक्रम का आयोजन था. शायद किसी मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर कंपनी का प्रायोजित कार्यक्रम था. उस कार्यक्रम में मैंने उन्‍हें सामने बैठ कर बजाते देखा है. उस्‍ताद जी अपने पिता उस्‍ताद अल्‍ला रखा के साथ मंच पर पहुंचे. थोड़ा हल्‍ला गुल्‍ला हो रहा था. मंच पर पहुंचने के साथ ही उन्‍होंने सबसे पहले सामने बैठी जनता का सिर झुका कर अभिवादन किया उसके बाद उन्‍होंने कहा कि जिस तरह से आप अपनी पढ़ायी.-लिखायी या साधना के सामय शांत वातावरण चाहते हैं वैसा मैं भी आपसे उम्‍मीद करता हूं.

ये मंच मेरा मंदिर और मैं यहां साधना करने आया हूं. उनका बस इतना कहना था कि सारा कोलाहल अचानक से शांत हो गया. उसके बाद उस्‍ताद जी ने अपनी साधना लोगों के सामने प्रस्‍तुत की. मुझे याद है कि इस आयोजन में मैं अपने पापा के साथ गया था और यहां उस्‍ताद जाकिर हुसैन के अलावा मशहूर सितार वादक उस्‍ताद शुजात हुसैन ( उस्‍ताद विलायत खां के बेटे), पं हरि प्रसाद चौरसिया को सुनने का अवसर मिला.

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शायद अब ऐसा दूसरा नहीं होगा

यू-ट्यूब पर मैंने उनके जितने भी इंटरव्‍यू देखे हैंउसे देखकर ये कह सकता हूं कि उस्‍ताद जाकिर हुसैन जैसा शायद अब दूसरा कोई नहीं होगा.संगत वाद्य तबला को एक स्‍वतंत्र वाद्य के रूप में विश्‍व पटल पर स्‍थापित करने काश्रेय उन्‍हीं के हिस्‍से जाता है. जितने बेहतरीन तबला वादक उतने ही बेहतरीन आदमी.आज जहां धर्म, जाति, संप्रदाय के नाम परलोगों के सिर कलम कर दिये जा रहे हों वहां उस्‍ताद जाकिर हुसैन जैसा व्‍यक्तित्‍व इंसानऔर इंसानियत की बात करते दिखायी देता था. उन्‍हें इतनी जल्‍दी नहीं जाना चाहिए था.तबला सम्राट को नमन…

 

source- Himanshu Sharma ( Facebook Wall)

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