जश्न-ए-आजादी : गांधी जी ने क्यों कहा था, मैं तिरंगे को सलाम नहीं करूंगा
‘तिरंगा’ जो हमारे देश की आन-बान और शान है जिसके लिए अब तक न जाने कितने लोगों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस तिरंगे को बनाने वाले कौन है और सबसे पहले इसे किसने फहराया था? आज आप को बताते हैं इस तिरंगे से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य जो शायद आपको नहीं पता होंगे। तिरंगे को आज हम जिस रूप में देखते हैं, उसका श्रेय शायद किसी एक शख्स को नहीं दिया जा सकता है। तिरंगे का मौजूदा रूप अलग-अलग वक्त में बने झंडों और उनकी सोच से मिली प्रेरणा का नतीजा है।
तिरंगे की इस विकासयात्रा में शायद 1931 सबसे खास जगह रखता है क्योंकि यही वो साल था जब एक प्रस्ताव पास कर ये फैसला किया गया कि तिरंगा ही हमारा राष्ट्रीय ध्वज होगा। हालांकि गांधी जी इस तिरंगे के विरोध में थे। उन्होंने तो यहां तक कह दिया था कि मैं तिरंगे को सलाम नहीं करूंगा।
7 सदस्यों की बनी कमेटी
2 अप्रैल 1931 को कांग्रेस ने सर्वमान्य झंडे को अंतिम रूप देने के लिए सात सदस्यों की कमेटी बनाई, जिसमें जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, मास्टर तारा सिंह, काका कालेलकर, डॉक्टर हार्डेकर और पट्टाभी सितारमैया थे। आखिरकार 1931 को कराची में कांग्रेस कमेटी की बैठक में पिंगली वेंकैया ने नया तिरंगा पेश किया।
तिरंगे में जब चरखे की जगह अशोक चक्र को लिया गया तो गांधी जी नाराज हो गए थे और उन्होंने ये तक कह दिया था कि मैं इस तिरंगे को सलाम नहीं करुंगा।
फ्लैग कोड ऑफ इंडिया
आप को जानकर हैरानी होगी कि संसद भवन देश का एकमात्र ऐसा भवन है जहां पर तीन तिरंगे एकसाथ फहराए जाते हैं। किसी मंच पर तिरंगा फहराते समय बोलने वाले वक्ता का मुंह जब श्रोताओं के सामने हो तो तिरंगा उनके दाहिने होना चाहिए। देश में जैसे अपराधों के लिए और तमाम चीजों के लिए कानू बना है वैसे ही ‘फ्लैग कोड ऑफ इंडिया’ नाम का कानून है जो तिरंगा फहराने और उससे संबंधित कानून बनाए गए हैं।
अगर कोई नागरिक तिरंगे का अपमान करता है तो उसे भारतीय ध्वज संहिता के तहत दण्डित किया जा सकता है और सजा के तौर पर तीन साल की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। तिरंगा हमेशा सूती कपड़े, सिल्क या फिर खादी का बना होना चाहिए, प्लास्टिक के झंडे बनाना मना है।
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सबसे पहले कोलकाता के ग्रीन पार्क में फहराया गया था
तिरंगे का निर्माण हमेशा आयताकार में बनाया जाता है जिसका अनुपात 3 : 2 होना चाहिए, और बीच में बने अशोक चक्र में 24 तीलियां होनी चाहिए। सबसे पहले लाल, पीले और हरे रंग के तिरंगे को 7 अगस्त को कोलकाता के ग्रीन पार्क में फहराया गया था।झंडे पर किसी भी तरह की लिखावट या चित्र बनाना गैरकानूनी है।
आप को बता दें कि भारत में मात्र एक ऐसा संस्थान है जिसे झंडा बनाने और सप्लाई करने का लाइसेंस है, वो है बैंगलुरू से करीब 400 किलोमीटर दूर हुबली। किसी भी दूसरे झंडे को राष्ट्रीय झंडे से ऊंचा या ऊपर नहीं लगा सकते और न ही बराबर रख सकते हैं।
29 मई 1953 में भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा सबसे ऊंची पर्वत की चोटी माउंट एवरेस्ट पर यूनियन जैक तथा नेपाली राष्ट्रीय ध्वज के साथ फहराता नजर आया था इस समय शेरपा तेनजिंग और एडमंड माउंट हिलेरी ने एवरेस्ट फतह की थी।
लोगो को अपने घरों या आफिस में आम दिनों में भी तिरंगा फहराने की अनुमति 22 दिसंबर 2002 के बाद मिली। तिरंगे को रात में फहराने की अनुमति सन् 2009 में दी गई।
पूरे भारत में 21 × 14 फीट के झंडे केवल तीन जगह पर ही फहराए जाते हैं- कर्नाटक का नारगुंड किला, महाराष्ट्र का पनहाला किला और मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले में स्थित किला। राष्ट्रपति भवन के संग्रहालय में एक ऐसा लघु तिरंगा हैं, जिसे सोने के स्तंभ पर हीरे-जवाहरातों से जड़ कर बनाया गया हैं।
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22 जुलाई 1947 को अपनाया गया था
जो तिरंगा फहराया जाता है उसे 22 जुलाई 1947 को अपनाया गया था.। तिरंगे को आंध्रप्रदेश के पिंगली वैंकैया ने बनाया था। इनकी मौत सन् 1963 में बहुत ही गरीबी में एक झोपड़ी में हुई। मौत के 46 साल बाद डाक टिकट जारी करके इनको सम्मान दिया गया।
कब झुकता है तिरंगा?
भारत के संविधान के अनुसार जब किसी राष्ट्र विभूति का निधन होता हैं व राष्ट्रीय शोक घोषित होता हैं, तब कुछ समय के लिए ध्वज को झुका दिया जाताहैं। लेकिन सिर्फ उसी भवन का तिरंगा झुका रहेगा, जिस भवन में उस विभूति का पार्थिव शरीर रखा है। जैसे ही पार्थिव शरीर को भवन से बाहर निकाला जाता हैं वैसे ही ध्वज को पूरी ऊंचाई तक फहरा दिया जाता हैं।
देश के लिए जान देने वाले शहीदों और देश की महान शख्सियतों को तिरंगे में लपेटा जाता हैं। इस दौरान केसरिया पट्टी सिर की तरफ और हरी पट्टी पैरों की तरफ होनी चाहिए।
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