भोले बाबा की नगरी काशी में ‘चिता की राख’ से खेली होली

0

यूपी की फिजाओं में होली की खुमारी घुल चुकी है। चारों तरफ रंग बिरंगी पिचकारियां और गुलाल की महक बिखरी हुई है। जहां एक तरफ मथुरा में लठ्ठमार और फूलों की होली खेली जा रही है वहीं दूसरी तरफ भोले नाथ की नगरी काशी में गुरुवार को चिता की भस्म से होली खेली गई। फिज़ा में डमरुओं की गूंज और हर-हर महादेव के उद्घोष। भांग, पान और ठंडाई की जुगलबंदी के साथ अल्हड़ मस्ती और हुल्लड़बाजी के बीच एक-दूसरे को मणिकर्णिका घाट का भस्म लगाया गया। यह दृश्य देखते ही बन रहा था। अद्भुत नजारा रहा। इतना ही नहीं इसके साथ ही जोगीरा सारा. रास् रास् रास् का उद्घोष बनारसी होली का अलग अंदाज बता गया। बता गया कि बाबा विश्वनाथ की नगरी की ये है फाल्गुनी बयार जो भारतीय संस्कृति का दीदार कराती है।

पुरनियों से जानें महाश्मशान की होली का मायने

पुरनिये काशीवासी बताते हैं कि रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद बाबा विश्वनाथ खुद भक्तों के संग महाश्मशान पर होली खेलते है। कहा जाता है कि मृत्यु के बाद जो भी मणिकर्णिका घाट पर दाह संस्कार के लिए आते हैं, बाबा उन्हें मुक्ति देते हैं। यही नहीं, इस दिन बाबा उनके साथ होली भी खेलते हैं।

also read : उलझती जा रही है श्रीदेवी की मौत की गुत्थी

मान्यता है कि काशी नगरी में प्राण छोड़ने वाला व्यक्ति शिवत्व को प्राप्त होता है। सृष्टि के तीनों गुण सत, रज और तम इसी नगरी में समाहित हैं। फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को बाबा विश्वनाथ के भक्तों संग खेली गयी होली की परंपरा के तहत लोगों द्वारा डमरुओं की गूंज और हर हर महादेव के नारों के बीच एक-दूसरे को भस्म लगाई जाती है। आज यह सब भी हुआ। यहां होली की छटा देखते ही बनती है।

क्या है पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, महाश्मशान ही वो स्थान है, जहां कई वर्षों की तपस्या के बाद महादेव ने भगवान विष्णु को संसार के संचालन का वरदान दिया था। काशी के मणिकर्णिका घाट पर शिव ने मोक्ष प्रदान करने की प्रतिज्ञा ली थी। काशी दुनिया की एक मात्र ऐसी नगरी है जहां मनुष्य की मृत्यु को भी मंगल माना जाता है। मृत्यु को लोग उत्सव की तरह मनाते है। मय्यत को ढोल नगाडो के साथ श्मशान तक पहुंचाते है। मान्यता है कि रंगभरी एकादशी एकादशी के दिन माता पार्वती का गौना कराने बाद देवगण एवं भक्तों के साथ बाबा होली खेलते हैं। लेकिन भूत-प्रेत, पिशाच आदि जीव-जंतु उनके साथ नहीं खेल पाते हैं। इसीलिए अगले दिन बाबा मणिकर्णिका तीर्थ पर स्नान करने आते हैं और अपने गणों के साथ चिता भस्म से होली खेलते हैं। नेग में काशीवासियों को होली और हुड़दंग की अनुमति दे जाते हैं। कहते है साल में एक बार होलिका दहन होता है, लेकिन महाकाल स्वरूप भगवान भोलेनाथ की रोज होली होती है। काशी के मणिकर्णिका घाट सहित प्रत्येक श्मशान घाट पर होने वाला नरमेध यज्ञ रूप होलिका दहन ही उनका अप्रतिम विलास है।

क्या है प्राचीन मान्यता

वसंत पंचमी से बाबा विश्वनाथ के वैवाहिक कार्यक्रम का जो सिलसिला शुरू होता है वह होली तक चलता है। वैसे भी होली की शुरूआत भी वसंत पचंमी से ही होती है, जब होलिका गाड़ी जाती है।लिहाजा वसंत पंचमी को भोले बाबा का तिलकोत्सव मनाया गया तो महाशिवरात्रि को विवाह हुआ और फाल्गुन शुक्ल एकादशी को बाबा, देवी पार्वती को गौना करा कर आए। अब शादी हो गई, गौना हो गया। भक्तों संग अबीर गुलाल की होली भी हो गई। लेकिन बाबा के अड़भंगी बाराती जब तक श्मशान में होली न खेलें तब तक कहां मना त्योहार। लिहाजा रविवार को महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर खेली गई मसाने की होली।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More