असम : सरकार ने जारी की नागरिकता सूची, इन लोगों पर लटक रही तलवार…

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पूरा देश जब नए साल का जश्न मना रहा था, देश के उत्तर-पूर्वी राज्य असम के लोगों पर उम्मीद और आशंका दोनों के बादल मंडरा रहे थे। वहां सरकार ने आधी रात को नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन का पहला ड्राफ्ट जारी किया है, जिससे राज्य में रहने वाले कानूनी और गैरकानूनी नागरिकों की पहचान होगी। पहली लिस्ट में 1.9 करोड़ लोगों को वैध नागरिक के रूप में मान्यता दी गई है, लेकिन बाकी 1.39 करोड़ का नाम इस लिस्ट में नहीं आया। लिस्ट के जारी होने के बाद प्रदेश में तनाव का माहौल है। सोशल मीडिया पर तरह-तरह की अफवाहें उड़ रही हैं। हालांकि सरकार ने कहा कि यह पहली लिस्ट है और दूसरी लिस्ट भी जल्द जारी की जाएगी। इस बीच किसी भी तरह के हालात के निपटने की तैयारी कर ली गई है।

सुरक्षा के मद्देनजर फोर्स तैनात

केंद्र सरकार इस सिलसिले में असम सरकार से लगातार संपर्क में है। सूत्रों के अनुसार हालात से निपटने के लिए सुरक्षाबलों को कभी भी वहां जाने के लिए तैयार रहने को कहा गया है। सोशल मीडिया पर लगातार मॉनिटरिंग करने के निर्देश जारी किए गए हैं और अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा गया है। अफवाह भरे कॉन्टेंट को ब्लॉक किया जा रहा है। होम मिनिस्ट्री के सूत्रों के अनुसार विभाग राज्य सरकार से लगातार संपर्क में है। वहां पहले ही लगभग 50 हजार मिलिटरी और पारा मिलिटरी फोर्स तैनात कर दी गयी है। पूरे राज्य में लगातार शांति की अपील की जा रही है। केंद्र और राज्य सरकार ने पहले ही आशंका जताई थी कि इस लिस्ट के जारी होने के बाद राज्य में ला ऐंड आर्डर की स्थित खराब हो सकती है।

एनआरसी की क्या जरूरत

असम में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशियों का मामला बहुत बड़ा मुद्दा रहा है। इस मुद्दे पर कई बड़े और हिंसक आंदोलन भी हुए है। असम के मूल नागरिकों ने तर्क दिया कि अवैध रूप से आकर यहां रह रहे ये लोग उनका हक मार रहे हैं। 80 के दशक में इसे लेकर एक बड़ा स्टूडेंट मूवमेंट हुआ था जिसके बाद असम गण परिष्द और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ कि 1971 तक जो भी बांग्लोदशी असम में घुसे उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निर्वासित किया जाएगा। इसके बाद असम गण परिषद ने वहां सरकार भी बनाई।हालांकि समझौता आगे नहीं बढ़ा।

मामला के दबने के बाद 2005 में एक बार फिर आंदोलन हुआ तब कांग्रेस की असम सरकार ने इस पर काम शुरू किया, लेकिन काम में सुस्ती रहने के बाद यह ममाला 2013 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। बीजेपी ने असम में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान इसे बड़ा मुद्दा भी बनाया। जब असम में पहली बार पूर्ण बहुमत वाली बीजेपी सरकार आई, तो इस मांग ने और जोर पकड़ा। हालांकि असल कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के दबाव में हुई। इस बीच मोदी सरकार के विवादित नागरिकता संशोधान बिल से भी इस मामले में नया मोड़ आ गया, जो अवैध रूप से घुसने वालों के लिए बेस साल 1971 से बढ़ाकर 2014 कर रहा है।

सुप्रीम कोर्ट के दबाव में जारी हुआ ड्राफ्ट

रविवार की मध्य रात्रि में विवादित ड्राफ्ट सुप्रीम कोर्ट के दबाव के बाद जारी हुआ है। केंद्र और राज्य सरकार ने दलील थी कि अभी ड्राफ्ट जारी होने से कानून-व्यवस्था का मामला उठ सकता है, क्योंकि इसमें लाखों लोगों के नाम नहीं हैं और इससे आशंका की स्थिति पैदा हो सकती है कि उनका भविष्य क्या हाेगा। हालांकि कोर्ट ने इस दलील को नहीं माना अपने आदेश में कहा कि इस ड्राफ्ट से किसी का हक नहीं छिनेगा।

राजनीतिक दांव-पेच भी जारी

एनआरसी को लेकर असम में राजनीतिक सरगर्मी भी तेज हो गयी है। भले बीजेपी के लिए यह भी बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है, लेकिन वह इस मुद्दे पर अभी आक्रामक रूप से अागे नहीं बढ़ सकती, क्योंकि इसमें मुस्लिमों के अलावा बड़ी तादाद में बांग्ला-हिंदू भी हैं जो बीजेपी के वोटर रहे हैं। पहले ड्राफ्ट में इनकी बड़ी तादाद है। सूत्रों के अनुसार ऐसी परिस्थिति में केंद्र सरकार नागरिकता संशोधन बिल के पास होने के बाद ही इस मुद्दे पर आगे बढ़ना चाहेगी, क्योंकि उसमें मुस्लिम को छोड़कर बाकी धर्म वाले लोगों को नागरिकता लेने की प्रक्रिया में रियायत दी गई है।

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पिछले दिनों होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह के साथ मीटिंग में उन्होंने साफ कहा कि अभी हिंदू-बंगालियों को घबराने की जरूरत नहीं है। हालांकि इस मुद्दे को नए सिरे से अपने हिसाब से परिभाषित करने के मामले पर बीजेपी का असम गण परिषद से विवाद भी हो गया है और एजीपी पुराने स्टैंड के अनुसार ही समझौता चाहती है, जिसमें 1971 के बाद सभी अवैध रहने वालों को निकालने की बात हुई थी।

क्या अवैध नागरिक बांग्लादेश जाएंगे?

अब यह भी सवाल सामने आ रहा है कि अंतिम ड्राफ्ट आने के बाद जिनका नाम एनअारसी में नहीं आता है उनका भविष्य क्या होगा? क्या उन्हें बांग्लोदश भेज दिया जाएगा? सूत्रों के अनुसार अभी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर लिस्ट जारी की जा रही है, लेकिन उसके बाद क्या करना है, इसके लिए नीति को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। दरअसल, इतनी बड़ी संख्या में अवैध नागरिकों के साथ क्या सलूक हो, यह केंद्र और राज्य सरकार के लिए सबसे बड़ी दुविधा हो सकती है। नरेन्द्र मोदी के बांग्लादेश से बेहतर रिश्ते बने हैं और पाकिस्तान को अलग-थलग करने में भारत को उससे मदद मिली है। ऐसे में बांग्लादेश पर इन लाखों लोगों को लेने का दबाव अभी बनाना आसान नहीं होगा।

(साभार- नवभारत टाइम्स)

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