Explainer : आखिर उत्तर भारत में क्या है बारिश के कारण? जानिए पर्यावरण और कृषि पर इसका असर
भारत में लगातार हो रहे बेमौसम बरसात का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. मार्च में हुई मूसलाधार बारिश और ओलावृष्टि से किसानों को इसे काफी नुकसान झेलना पड़ा. इन बीते दिनों में भारत ही नहीं, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, बिहार जैसे राज्यों में हुई बेमौसम बारिश ने खेतों में खड़ी और कटी हुई फसलों को बर्बाद कर दिया. अब अप्रैल का पहला हफ्ता भी गुजरने को है, लेकिन बेमौसम बारिश रह-रहकर हो रही है. इससे बीमारियां फैलने का खतरा भी बढ़ रहा है. इससे पहले दिसंबर और फरवरी 1901 के बाद सबसे गर्म दर्ज किए गए थे. इसके बाद बारिश ने बुरा हाल कर रखा है. आखिर बेमौसम बारिश क्यों हो रही है. इसका पर्यावरण और खेती पर क्या असर पड़ेगा?
मौसम विज्ञानियों के मुताबिक, इस समय हो रही बेमौसम बारिश को प्री-मानसून बारिश कहा जा सकता है. उनका कहना है कि तय समय से पहले हो रही प्री-मानसून बारिश की वजह लगातार बढ़ता हुआ तापमान है. देशभर में दिसंबर और फरवरी में पड़ी गर्मी ने लोगों का पसीना निकाल दिया. ऐसे में प्री-मानसून बारिश के लिए समय से पहले ही माकूल माहौल बन गया. मौसम विज्ञानियों का कहना है कि तापमान ज्यादा होने पर वाष्पीकरण भी ज्यादा होता है. इससे हवा में नमी ज्यादा हो जाती है. अगर ऐसा ही होता रहा तो मौसम अजीब तरीके से करवट लेता रहेगा और बेमौसम बारिश नियमित अंतराल पर होती रहेगी.
क्यों हो रही बेमौसम बारिश?
मौसम विज्ञानियों का कहना है कि क्लाइमेट सिस्टम में लगातार हो रहे बदलावों के कारण जलवायु परिवर्तन हो रहा है. मार्च की शुरुआत में ही कुछ मौसम विज्ञानियों ने कहा था कि बेमौसम बारिश का ये सिलसिला इस बार लंबा चल सकता है. उन्होंने भारी बारिश, आंधी और ओलावृष्टि के कारण फसलों को नुकसान की चेतावनी भी दी थी. मध्य प्रदेश, तेलंगाना, दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत में ट्विन साइक्लोनिक सर्कुलेशन के कारण जमकर बारिश हुई. दरअसल, इस दौरान अरब सागर के साथ ही बंगाल की खाड़ी से हवा में नमी का स्तर बढ़ा. वहीं, पश्चिमी विक्षोभ के पश्चिमी हिमालय से गुजरने के कारण भी बारिश हुई.
जलवायु परिवर्तन का असर…
शोध और अध्ययनों में ग्लोबल वार्मिंग के कारण गर्मी के बढ़ने की चेतावनी दी जाती रही है. इस बार दिसंबर और फरवरी 1901 के बाद से सबसे गर्म रहे हैं. आमतौर पर प्री-मानसून बारिश का दौर मार्च के दूसरे पखवाड़े में शुरू होता है. इस बार पहले ही गर्मी बढ़ने से हवा में नमी बढ़ी और पहले ही प्री-मानसून बारिश होनी शुरू हो गई. पर्यावरणविदों का कहना है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में बढ़ोतरी वैश्विक तापमान में औसतन 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी करेगी. जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को भारी बारिश और भीषण गर्मी जैसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार माना जाता है.
खेती को भारी नुकसान…
जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही बारिश, आंधी और ओलावृष्टि कृषि क्षेत्र पर बुरा असर डाल रही है. पिछले दिनों हुई बारिश के कारण सरसों, अरहर, चना की फसलों में लगे फूल गिर गए. वहीं, मसूर,अरहर के साथ ही गेंहू की फसलों को भी नुकसान हुआ. इससे एक तरफ किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. दूसरी तरफ, आने वाले समय में अनाज का संकट भी पैदा हो सकता है. अब किसानों को ऐसी फसलों का रुख करना पड़ सकता है, जो बेमौसम बारिश की मार को झेलने में सक्षम हों. वहीं, ग्लोबल वार्मिंग को थामने के लिए पुरी दुनिया को एकजुट होकर कार्बन फुटप्रिंट को घटाने के लिए एक्शन लेना होगा.
हो सकता है पेयजल संकट…
बहुत ज्यादा बारिश पानी की गुणवत्ता को भी खराब कर सकती है. स्वच्छ पेयजल का संकट भी पैदा हो सकता है. इससे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है. वहीं, मछली पालन करने वाले लोगों को भी नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसके अलावा लोगों को बारिश के कारण कई दूसरी बीमारियों से भी जूझना पड़ सकता है. कोरोना वायरस ने दिल्ली-एनसीआर में फिर दस्तक दे दी है. वहीं, बारिश के दिनों में मच्छर भी खूब पनपते हैं. इससे डेंगू, मलेरिया समेत कई बामारियां फैल सकती हैं. हालांकि, बारिश की वजह से वायु गुणवत्ता में सुधार होगा.
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