सूख रहा है पूर्वांचल!

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उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड से इन दिनों आने वाली ज्यादातर खबरें सूखे, पानी की कमी, भुखमरी, आत्महत्या और पलायन की हैं। लेकिन सूखे का असर अब सिर्फ बुंदेलखंड तक सीमित नहीं है बल्कि पूर्वांचल के भी कई जिलों में सूखे का असर दिखने लगा है। केंद्र व राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही तमाम योजनाएं भी पूर्वांचल के इन जिलों में दम तोड़ती दिख रही है।

…प्यासी नदी

जो नदी कभी इतराती हुई इंसानों का प्यास बुझाया करती थी, आज वो खुद प्यासी हो गई है। सूखे की मार ने उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर व बस्ती जिले से होकर गुजरने वाली 80 किलोमीटर लंबी ‘कुआनो नदी’ पूरी तरह से रेत में तब्दील हो गई है।

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पानी के बजाए अब इस नदी में सिर्फ धुल और मिट्टी के सिल्क ही नजर आ रहे हैं।

गोरखपुर में चारों तरफ सूखा ही सूखा

पूर्वांचल के गोरखपुर जिले में आलम यह है कि चारों तरफ सूखा ही सूखा नजर आ रहा है। गोरखपुर के कई इलाको के साथ ग्रामीण अंचल के इलाको में भी पानी की भारी किल्लत है। गोरखपुर शहर से तकरीबन 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित गांवों में पानी को लेकर कोहराम मचा है।

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वहां की जमीन इस कदर सूख चुकी है कि वहां तालब हो, गड्ढे हो, या फिर नहर सभी वीरान पड़े है। हर बार सरकार और प्रशासन का ऐसे मामलों पर एक ही आश्वासन मिलता है कि उनकी समस्या जल्द ही दूर हो जाएगी, लेकिन ऐसा होता नहीं।

करोड़ों खर्च के बाद भी नहीं आया पानी

सिद्धार्थनगर के बिथरिया, अल्लापुर से चलकर बस्ती जनपद के लगभग पांच दर्जन गांवों से होते हुए संतकबीर नगर को जोड़ने वाली नहर का बुरा हाल है। सरयू नहर से निकली नहर सैकड़ों गांव के किसानों के लिए कभी बेमतलब साबित हो रही है।

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लेकिन अब सूखे के हालात पूर्वांचल के कई जिलों में बद से बदतर हो गए हैं। किसान, मवेशी, ग्रामीण एक-एक बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। पिछले 19 साल से किसानों के खेतों की सिचाई के लिए इन नहरों पर करोड़ों खर्च कर दिया गया, लेकिन आज तक इसमें पानी ही नहीं आया।

हैंडपम्प भी दे रहा जवाब

पूर्वांचल के कुशीनगर में वर्षा न होने का असर दिखाई देने लगा है। हमेशा जलमग्न रहने वाले तालाब, पोखरे और नाले सब सूख गए हैं।

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तालाब में रहने वाले जलीय जीव पानी के लिए तड़पते-तड़पते मर गए हैं। इसका हजारों लोगों के रोजी-रोटी पर इसका सीधा असर पड़ा है। भूगर्भ जल स्तर नीचे चले जाने के कारण हैंडपम्प भी जबाब दे रहे हैं।

देवरिया में सूख चुके हैं सभी पोखरे

उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद मे प्रतिवर्ष जल सरंक्षण के नाम पर करोड़ो रुपए कागजो मे खर्च हो रहे है, लेकिन हकीकत ये है कि मई महीने में ही जिले के सभी पोखरे पूरी तरह से सूख चुके हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जिले में 3102 पोखरे हैं। जिनकी खुदाई से लेकर इसे जल सरंक्षित करने का दायित्व मत्स्य विभाग, क्षेत्र पंचायत से लगायत मनरेगा योजना के अन्तर्गत बांटा जा चुका है।

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जिसमें मत्स्य विभाग के पास 2292 पोखरें और मनरेगा के अधीन 810 पोखरे आवंटित हैं। अभी देवरिया शहर मे तकरीबन 10 पोखरे हैं जो कागजो मे मंदिर समिति की जमीन मे दिखाई जाती है।

सौंदर्यीकरण के नाम पर करोड़ों खर्च

जिले के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2007-08 में शुरु की गई मुख्यमंत्री जलाशय योजना के तहत तालाबों के सौंदर्यीकरण के नाम पर लगभग पौने पांच करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। मनरेगा योजना पर नजर डालें तो बीते पांच सालों में 810 में से 510 पोखरों पर काम दिखाते हुए 7.97 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए। एक साधारण तौर पर देखें तो ये साफ है कि एक पोखरे पर लगभग 1.45 लाख का बजट खर्च होना दर्शाया गया है। सबके बावजूद मई महीने के शुरुआत में ही एक दो पोखरों की बात छोड़ दें तो ज्यादातर पोखरों में धुल उड़ता नजर आ रहा है।

नौ राज्यों में सूखा

यूपी-एमपी के बुंदेलखंड के साथ ही महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठावाड़ा, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना समेत नौ राज्य सूखे की चपेट में हैं। कई राज्यों में सूखे से हालात इतने बदतर हो गए हैं कि लोग पीने के पानी तक को तरस गए हैं और वहां से पलायन करने को मजबूर हैं। सूखे को लेकर देश भर में सरकार, अदालत और सार्वजनिक क्षेत्रों में लगातार बहसें हो रही हैं।

आसमान से बरसेंगी खुशियों की बारिश

पानी की दिक्कतों से जूझ रहे दस से अधिक राज्यों के साथ ही देश भर के लिए इस साल अच्छी खबर है। मौसम विभाग ने इस साल मानसून के सामान्य से भी अच्छा रहने की संभावना जताई है। मानसून के चार महीनों जून से सितंबर के बीच 106% बारिश होने की उम्मीद है। चार महीनों में सामान्यत 890 मिमी बारिश होती है। इस बार छह फीसदी अधिक मतलब 943 मीमी तक बारिश हो सकती है। जो की देश के लिए काफी राहत भरी खबर है।

जुलाई से शुरू होगा ला नीना का असर

मौसम विभाग के मुताबिक इस साल मानसून औसतन 106 फीसदी लंबे रेंज में सामान्य तौर पर बरसेगा। ‘अल नीनो’ कमजोर हो रहा है और उसके मानसून के बीच में आने की संभावना है। वहीं ‘ला नीना’ जुलाई से शुरू हो जाएगा। इससे खेती को लेकर बेहद अच्छी संभावनाएं बनती दिख रही हैं। इससे देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।

UP में पिछले साल सबसे कम हुई थी बारिश

मौसम विभाग के आकड़ों के अनुसार पिछले साल उत्तर प्रदेश में सामान्य के मुकाबले मात्र 59.8 फीसदी बारिश हुई थी। पहले से ही पानी का संकट झेल रहे बुंदेलखण्ड में सामान्य के मुकाबले सिर्फ 47.7 प्रतिशत ही बारिश हुई थी। जबकि पश्चिम उत्तर प्रदेश बेहतर रहा, जंहा 69.4 फीसदी बारिश रिकॉर्ड की गई थी। पूर्वी उत्तर प्रदेश में 59.1 और मध्य उत्तर प्रदेश में 50.2 प्रतिशत बारिश हुई थी।

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