डिफेंस कॉरिडोर जमीन मामले में मंडलायुक्त की रिपोर्ट खारिज
हाईकोर्ट ने राजस्व परिषद चेयरमैन को सौंपी जांच, कहा-सभी को पक्ष रखने का दें मौका
यूपी: डिफेंस कॉरिडोर जमीन प्रकरण में नया मोड़ आ गया है. सरोजनीनगर के भटगांव में 100 बीघा से ज्यादा जमीन की खरीद-फरोख्त करने वालों पर जिला प्रशासन की कार्रवाई पर हाईकोर्ट ने फिलहाल रोक लगा दी है. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने जांच रिपोर्ट को संतोषजनक नहीं पाया. अदालत ने राजस्व परिषद के चेयरमैन की अध्यक्षता वाली समिति को मामले की जांच तीन माह में पूरी करने का आदेश दिया है. समिति में अब मंडलायुक्त से वरिष्ठ अफसर रहेंगे.
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति मनीष कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश जमुना और दो अन्य की याचिका पर दिया. याचिका में मंडलायुक्त की जांच रिपोर्ट को चुनौती दी गई थी. याचियों का कहना था कि मंडलायुक्त की जांच के दौरान उन्हें सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया. ऐसे में इस जांच रिपोर्ट के तहत की गई कार्यवाही विधिसम्मत नहीं है. आरोप है कि वर्ष 1984 से 86 के बीच फर्जी तरीके से जमीन के पट्टों की प्रविष्टि राजस्व रिकॉर्ड में करा दी गई. इसकी पुष्टि मंडलायुक्त की अध्यक्षता वाली जांच समिति की रिपोर्ट व संशोधित रिपोर्ट में होने पर कार्यवाही शुरू हुई.
कोर्ट ने राजस्व परिषद के चेयरमैन की अध्यक्षता वाली समिति को मामले की जांच तीन माह में पूरी करने का आदेश दिया है. इसमें याचियों को भी सहयोग करने के लिए कहा है. कोर्ट ने यह भी कहा कि याचियों के खिलाफ की गई कोई कार्रवाई इस जांच समिति के आदेश के अधीन होगी. इस आदेश के साथ याचिका निस्तारित कर दी गई.
रिकवरी की थी तैयारी
मंडलायुक्त डॉ. रोशन जैकब की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर पूरे मामले की जांच की गई थी. जमीन के खरीदारों को नोटिस भेजा गया था. उनसे रिकवरी की तैयारी थी. इसी के बाद तीनों याचियों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया.
तत्कालीन डीएम ने तीन बार कराई थी जांच, सही मिली थी पट्टा पत्रावली यह प्रकरण तत्कालीन डीएम अभिषेक प्रकाश के कार्यकाल में भी काफी चर्चित रहा था. खास बात है कि पट्टा पत्रावली सही है या नहीं, इसके लिए तत्कालीन डीएम ने तीन बार जांच कराई थी. तीनों बार पट्टा पत्रावली सही पाई गई. तत्कालीन डीएम ने तब जांच रिपोर्ट को फाइल में सुरक्षित रखने के निर्देश दिए थे. इसके बावजूद फिर से जांच हुई और डीएम की जांच के विपरीत रिपोर्ट शासन को भेज दी गई.
दलील सुनी न अपील, शासन को भेज दी जांच रिपोर्ट
याचिकाकर्ता के वकील अनघ नारायण शुक्ला के मुताबिक 28 जनवरी 1985 को तत्कालीन परगनाधिकारी ने पट्टा स्वीकृत किया था. इसके साक्ष्य अदालत में रखे गए। आज भी स्वीकृत पट्टा पत्रावली तहसील में उपलब्ध है. जांच- रिपोर्ट में बगैर कागजों की पड़ताल किए पट्टा को फर्जी बताया गया. यही नहीं याची पक्ष को न तो सुना गया न ही कोई नोटिस जारी किया गया. एकपक्षीय जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी गई थी. अधिवक्ता का कहना है कि 2020 से पहले 50 से अधिक लोगों का नाम खतौनी पर दर्ज कर दिया गया था. अधिवक्ता का आरोप है कि राजस्व विभाग की ओर से कमेटी में शामिल किए गए दो अफसरों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, जिनकी जांच भी चल रही है.
मंडलायुक्त की जांच रिपोर्ट में यह कहा गया था मंडलायुक्त की जांच रिपोर्ट में 28 जनवरी 1985 की पट्टों की पत्रावली पर सवाल उठाया गया था. रिपोर्ट में इसे जाली बताया गया था. यह भी कहा गया था कि इस पत्रावली के आधार पर अन्य व्यक्तियों के पक्ष में अनुबंध व विक्रय कर राजकोष को भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया.
इनको बताया गया था फर्जीवाड़े के लिए जिम्मेदार मंडलायुक्त की जांच रिपोर्ट में तत्कालीन लेखपाल रमेश चंद्र प्रजापति व हरिश्चंद्र, राजस्व निरीक्षक राधेश्याम, अशोक सिंह, रत्नेश सिंह व जितेंद्र कुमार सिंह, रजिस्ट्रार कानूनगो नैंसी शुक्ला, तत्कालीन तहसीलदार उमेश सिंह, ज्ञानेंद्र द्विवेदी, ज्ञानेंद्र सिंह व विजय कुमार सिंह, तत्कालीन उपजिलाधिकारी सूर्यकांत त्रिपाठी, डॉ. संतोष कुमार व शंभू शरण को फर्जीवाड़े के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था. वहीं अभिलेखों का परीक्षण किए बिना विक्रय की अनुमति प्रदान करने के लिए तत्कालीन अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) अमर पाल सिंह को उत्तरदायी बताया गया था.
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जांच कमेटी में ये थे शामिल-
डॉ. रोशन जैकब, मंडलायुक्त, तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त अपराध एवं मुख्यालय नीलाब्जा चौधरी, उप भूमि व्यवस्था आयुक्त राजस्व परिषद भीष्म लाल वर्मा और अपर आयुक्त (प्रशासन) लखनऊ मंडल रण विजय यादव शामिल थे.