लगातार बढ़ रहे हैं जवानों के आत्महत्या के मामले, अधिकारियों की चिंता बढ़ी

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शनिवार को सीआरपीएफ (CRPF) की 168वीं बटालियन के कैंप में एक जवान ने 4 साथी जवानों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस घटने ने एक बार फिर से जवानों की मानसिक स्थिति पर सवाल उठा दिए हैं। विपरीत परिस्थितियों में नक्सलियों से लोहा ले रहे जवान गंभीर तवान में हैं। आंकड़े इस बात के गवाह हैं। इस साल अक्टूबर तक छत्तीसगढ़ में 36 जवानों ने आत्महत्या कर ली है।

‘लगातार बढ़ रहे आत्महत्या के मामले’

ये आंकड़े डराने के साथ चौंकाने वाले भी हैं। इस साल राज्य पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) के कर्मियों द्वारा आत्महत्या के मामले 2009 के मुकाबले तीन गुना अधिक हैं। 2009 में ये आंकड़ा 13 था। आत्महत्या के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल कुल 12 जवानों ने आत्महत्या की थी। इससे पहले 2015 में छह, 2014 में सात और 2013 में पांच जवानों ने आत्महत्या की थी।

नक्सलियों के कैंप पर कार्रवाई करते जवान

– ‘काम के दबाव में अवसाद में जवान’

बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, कोंडागांव, और सुकमा राज्य के ऐसे नक्सल प्रभावित इलाके हैं जहां जवानों के हालात भयावह है। जंगलों में लंबे समय से नक्सलियों के सर्च अभियान चलाए जा रहे हैं। जिस कारण राज्य और केंद्र सुरक्षाबल के जवान परिवार से दूर रहते हैं। ऐसे में काम का तनाव, बीमारी, अफसरों से झगड़ा, सुविधाओं की कमी और छुट्टी नहीं मिलने जैसे कारणों से जवान अवसाद में आ रहे हैं।

– ‘मुठभेड़ में मरने वालों का संख्या भी अधिक’

नक्सलियों को खत्म करने के साथ साथ अलग-अलग मुठभेड़ों में मारे गए सुरक्षाबल के जवानों के आंकड़े भी कम नहीं हैं। पिछले 11 महीनों में सुरक्षाबलों के 59 जवान छत्तीसगढ़ में मारे गये हैं। छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल मौतों की संख्या राज्य के 11 जिलों में 2007 से दर्ज 115 आत्महत्याओं में से 31% से ज्यादा है।

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– मनोवैज्ञानिक का लेंगे सहारा

इन 11 जिल में ग्रमीण उग्रवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। 2000 से 2017 तक राज्य के गठन के बाद से सशस्त्र बलों और राज्य सुरक्षा कर्मियों के बीच आत्महत्या के आंकड़ों का औपचारिक आंकलन, अभी तक राज्य पुलिस द्वारा किया जाना बाकी है। इस वर्ष आत्महत्याओं की संख्या में वृद्धि ने वरिष्ठ पुलिस और सुरक्षा कर्मियों को हिलकर रख दिया है। ऐसे मामलों के सामने आने के बाद से मनोवैज्ञानिक का सहारा लेने की बात अधिकारी कर रहे हैं। मनोवैज्ञानिक इन आत्महत्याओं के कारणों का अध्ययन करने में मदद करेंगे। जिससे एक सही रास्ता निकाला जा सकेगा।

– आत्महत्याओं के लिए ये कारण भी जिम्मेदार

सुरक्षा कर्मियों के बीच आत्महत्या के कुछ सामान्य कारण हैं। इनमें काम के दौरान दबाव, परिवार से दूरी, होमस्कनेस जैस् कारण सामने आए हैं। इन कारणों को बांट दिया जाए तो इसमें पारिवारिक कारण से 50 प्रतिशत, बीमारी से 11 प्रतिशत, काम के दबाव में 8 प्रतिशत, अंजान कारणों से 18 और अन्य 13 प्रतिशत हैं।

– 2022 नक्सलमुक्त का लक्ष्य

राज्य की रमन सिंह की सरकार ने 2022 तक राज्य को नक्सलमुक्त करने का फ़ैसला किया है। सरकार इस दिशा में तेजी से काम कर रहा है। हालांकि 2013 में भी राज्य सरकार ने 2018 तक छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद को ख़ात्मे का दावा किया था। लेकिन हालातों में अभी तक खास तब्दीली देखने को नहीं मिली है।

(साभार- ईइनाडू इंडिया)

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