कोरोना वायरस और मीडिया की चुनौतियां

मीडियाकर्मियों की तनख्वाह काटी जा रही है। कहीं कहीं तो आधी कर दी गई है। तनख्वाह बढ़ती है तो आदमी खर्चे बढ़ाता है। मसलन तनख्वाह 25 हजार से 50 हजार होती है तो आदमी गाड़ी कर्ज पर खरीद लेता है।

0

मीडियाकर्मियों की तनख्वाह काटी जा रही है। कहीं कहीं तो आधी कर दी गई है। तनख्वाह बढ़ती है तो आदमी खर्चे बढ़ाता है। मसलन तनख्वाह 25 हजार से 50 हजार होती है तो आदमी गाड़ी कर्ज पर खरीद लेता है। 60-70 हजार से पार जाती है तो कर्ज पर मकान खरीद लेता है। पैसे बचते नहीं हैं।

लेकिन कंपनियों ने तनख्वाह कटौती कर दी है। कुछ ने तो इंतजार ही नहीं किया, मार्च में ही ऐलान कर दिया और अप्रैल से लागू भी कर दिया। तनख्वाह आधी हो जाएगी तो वो ईएमआई कैसे भरेंगे? बच्चों की फीस कैसे भरेंगे? मेडिकल का खर्च कैसे वहन करेंगे? गांव-घर की मदद कैसे करेंगे? अनगिनत सवाल हैं और इन सवालों की वजह से उनका मानसिक संतुलन बिगड़ रहा है।

यह हाल कॉरपोरेट मीडिया का है। उन मीडिया संस्थानों का जो बड़े और ताकतवर हैं। छोटे और मझौले मीडिया संस्थानों की स्थिति तो भयावह है। जमीनी स्तर पर तैनात पत्रकारों की स्थिति भी बहुत खराब है।

स्ट्रिंगरों का हाल तो सबसे खराब है। जान जोखिम में डालकर खबरें भेज रहे हैं। और उन खबरों के एवज में उन्हें मिलता ही कितना है! जान चली जाएगी तो भी उन्हें पूछने वाला कोई नहीं। एक दो लोग चंदे की अपील कर देंगे और कुछ चंदा घर तक पहुंचा देंगे। उससे क्या होगा? कुछ नहीं।

लेकिन ये महज एक संकट है। कोरोना वायरस ने मीडिया के सामने कई संकट खड़े किए हैं। हमारे देश में मीडिया को पहले से ही भोंपू के तौर पर विकसित किया गया है। मतलब इसका स्वतंत्र वजूद नहीं है। आने वाले दिनों में ये और गुलाम हो जाएगा। सरकारों पर इसकी निर्भरता बढ़ जाएगी। स्टूडियो आधारित प्रोपैगेंडा मॉडल पर ही काम होगा। जमीनी खबरों की संख्या और घट जाएगी। अर्णब गोस्वामी जैसे लोग चांदी काटेंगे और पत्रकार मर जाएंगे।

यही नहीं बड़ी संख्या में पत्रकारों की छंटनी होगी। जब भी छंटनी होती है मध्य और ऊपरी पदों पर पिछड़े, दलित और आदिवासियों की संख्या और कम हो जाती है। उन्हें सबसे पहले निकाला जाता है। बॉस अपने किसी करीबी ब्राह्मण, ठाकुर, भूमिहार, कायस्थ को बचाने के लिए इनकी बलि चढ़ा देगा। मतलब कोरोना वायरस संकट के बाद जब आप मीडिया संस्थानों का स्वरूप देखिएगा तो वो और अधिक ब्राह्मणवादी नजर आएगा।

[bs-quote quote=”यह लेखक के निजी विचार हैं। यह लेख लेखक के फेसबुक वॉल से लिया गया है।” style=”style-13″ align=”left” author_name=”समरेंद्र सिंह” author_job=”वरिष्ठ पत्रकार” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/04/Samarendra-Singh.jpg”][/bs-quote]

आने वाले दिनों में मैं कोरोना वायरस से उत्पन्न चुनौतियों पर एक सीरीज लिखने जा रहा हूं। आपके सुझावों का स्वागत है। अगर आपको लगता है कि मीडिया के किसी पहलू पर खास चर्चा होनी चाहिए तो उसे आप कमेंट बॉक्स में या फिर इन बॉक्स में भेज सकते हैं। सुझाव ठीक होगा तो उसे इस बहस में शामिल किया जाएगा।

 

 

 

यह भी पढ़ें: किसानों को कोरोना योद्धा का दर्जा क्यों नहीं…

यह भी पढ़ें: जानें कि दुनिया के कितने लोग अंग्रेजी बोलते हैं और क्‍यों

[better-ads type=”banner” banner=”104009″ campaign=”none” count=”2″ columns=”1″ orderby=”rand” order=”ASC” align=”center” show-caption=”1″][/better-ads]

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हेलो एप्प इस्तेमाल करते हैं तो हमसे जुड़ें।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More